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प्लास्टिक कचरे पर 10 नामी कंपनियों को भेजा नोटिस, पढ़िए पूरी खबर

यूईपीपीसीबी ने प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था न बनाने पर 10 नामी कंपनियों को नोटिस भेजा। ये वह कंपनियां हैं जिनके उत्पाद प्लास्टिक की बोतल डिब्बे आदि में आ रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 12 Sep 2019 04:45 PM (IST)Updated: Thu, 12 Sep 2019 04:45 PM (IST)
प्लास्टिक कचरे पर 10 नामी कंपनियों को भेजा नोटिस, पढ़िए पूरी खबर
प्लास्टिक कचरे पर 10 नामी कंपनियों को भेजा नोटिस, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, सुमन सेमवाल। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) ने स्वयं के प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की व्यवस्था न बनाने पर देश की 10 नामी कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं। ये वह कंपनियां हैं, जिनके उत्पाद प्लास्टिक की बोतल, डिब्बे, पाउच या सैशे आदि में आ रहे हैं। ऐसे उत्पादों की सबसे अधिक खपत देहरादून में है और उसी अनुपात में यहां प्लास्टिक की पैकेजिंग का कचरा भी जमा हो रहा है।

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प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने 13 जून को आदेश जारी कर कंपनियों को आदेश दिए थे कि उन्हें अपने वेस्ट प्लास्टिक के निस्तारण की जिम्मेदारी स्वयं उठानी होगी। इसके लिए चाहे वह अपने स्तर पर निस्तारण करें या फिर स्थानीय निकायों को पैसे देकर अपने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण कराएं।ï आदेश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल-2016 का हवाला देते हुए कहा गया था कि इसके लिए सबसे पहले संबंधित कंपनियों को बोर्ड में अपना पंजीकरण कराना होगा और यह भी बताना होगा कि उनके उत्पादों के जरिये कितना प्लास्टिक उत्तराखंड में पहुंच रहा है।

इससे पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य स्तर पर प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल-2016 की समीक्षा भी की थी। जिसमें स्पष्ट हुआ कि किसी भी उत्पादक, आयातक व ब्रांड स्वामित्व वाली कंपनी ने अपने प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का इंतजाम नहीं किया है। दूसरी तरफ प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल में स्पष्ट किया गया है कि रूल के प्रख्यापित होने के अधिकतम एक साल के भीतर सभी कंपनियों को अपना एक्शन प्लान प्रस्तुत करना होगा। साथ ही अधिकतम दो साल के भीतर प्लास्टिक कचरे के निस्तारण को कहा गया था। यह व्यवस्था करना तो दूर कंपनियों ने अब तक पंजीकरण भी नहीं कराया है। जिससे यह भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि उत्पादों में कितना प्लास्टिक कचरा प्रदेश में पहुंच रहा है। जून में दिए गए आदेश के बाद भी कंपनियों ने जब इस दिशा में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो पहले चरण में 10 नामी कंपनियों को नोटिस जारी किए गए हैं। इन कंपनियों के उत्पादों में ही पैकेजिंग का सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा दून व प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में पहुंच रहा है।

शासन की स्वीकृति पर भेजे गए नोटिस

कंपनियों के ऊंचे नाम को देखते हुए बोर्ड ने सीधे अपने स्तर पर नोटिस जारी नहीं किए। पहले नोटिस का प्रारूप व उसके लिखित टिप्पणी को शासन को भेजा गया। इस पर प्रमुख सचिव आनंद बर्धन की स्वीकृति के बाद ही यह नोटिस जारी किए गए।

 इन्हें जारी किया गया नोटिस

  • कंपनी, जिस पते पर नोटिस भेजा
  • नेस्ले इंडिया लि., वर्ल्‍ड ट्रेड सेंटर (दिल्ली)
  • आइटीसी लि., नेहरू रोड कोलकाता
  • पारले प्रोडक्ट्स प्रा.लि., विले पारले ईस्ट मुंबई
  • हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल प्रा.लि., भंडारा रोड नागपुर
  • पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क, लक्सर हरिद्वार
  • हिंदुस्तान कोका-कोला बेवरेजेस प्रा. लि., हैदरपुर हरियाणा
  • पेप्सिको इंडिया लि., गुडग़ांव हरियाणा
  • बीकानेरवाला प्रा.लि., लॉरेंस रोड दिल्ली
  • बिसलेरी इंटरनेशनल प्रा.लि., अंधेरी (ईस्ट) मुंबई।
  • ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज प्रा.लि., महेदेवपुरा, बेंगलुरू

उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाने की चेतावनी

बोर्ड के सदस्य सचिव ने कहा कि जो कंपनियां वैज्ञानिक तरीके से अपने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण अब तक सुनिश्चित कराने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहीं, उन पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में जुर्माना लगाया जाएगा। साथ ही भविष्य में उनके उत्पादों की बिक्री भी प्रतिबंधित कर दी जाएगी। जिन 10 कंपनियों को नोटिस जारी किए गए हैं, उन्हें भी यह चेतावनी दी गई।

 20 और बड़ी कंपनियों को नोटिस भेजने की तैयारी

प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल-2016 के नोडल अधिकारी बनाए गए प्रदीप जोशी ने बताया कि 10 नामी कंपनियों को नोटिस भेजने के बाद 20 और बड़ी कंपनियों को नोटिस भेजने की तैयारी की जा रही है। इसके बाद धीरे-धीरे उन सभी कंपनियों को नोटिस जारी किए जाएंगे, जिनके उत्पादों में प्लास्टिक पहुंच रहा है।

नोटिस मिलते ही दिया जवाब, नहीं पाया गया संतोषजनक

बोर्ड के नोडल अधिकारी प्रदीप जोशी ने बताया कि नोटिस मिलते ही कुछ कंपनियों ने जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि पंजीकरण के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में आवेदन किया है। यह सही है कि पंजीकरण पर अंतिम निर्णय केंद्रीय बोर्ड को लेना है, मगर राज्य को इस बारे में जानकारी अनिवार्य रूप से दी जानी है कि कंपनी अपने प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए क्या कदम उठा रही हैं।

 रूल-2016 का इस तरह नहीं किया जा रहा अनुपालन

  • रूल लागू होने के छह माह के भीतर यह तय करना था कि संबंधित कंपनी स्वयं अपने कचरे का निस्तारण करेंगी या स्थानीय निकायों के माध्यम से इस काम को कराएंगी।
  • प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए एक साल के भीतर प्लान तैयार कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकरण कराना।
  • दो साल की अवधि के भीतर कचरे का निस्तारण सुनिश्चित कराना।

300 टन का अनुमान, चाहिए 219 करोड़

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मोटे आकलन के अनुसार उत्पादों की पैकेजिंग से निकल रहे प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए करीब 219 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी।

नियमों के अनुसार या तो संबंधित कंपनियां स्वयं प्लांट लगाकर अपने कचरे को एकत्रित कर निस्तारित करें या संबंधित नगर निकाय के माध्यम से इस काम को धनराशि देकर कराएं। प्लास्टिक की पैकेजिंग में उत्पाद बेचने वाली कंपनियों ने अभी तक भी यह नहीं बताया है कि वह कितनी मात्रा में प्रदेश में प्लास्टिक पहुंचा रही हैं। फिर भी पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने स्तर पर अनुमान लगाया है कि हर रोज प्रदेश में करीब 300 टन (तीन लाख किलो) प्लास्टिक कचरा निकलता है। इतनी बड़ी मात्रा में कचरे के निस्तारण के लिए स्थानीय निकायों के पास संसाधन नहीं हैं और कंपनियां अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार नहीं। इसके चलते प्रदेश के तमाम क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुंचा रहा है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने बताया कि एक किलो प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए 20 रुपये की जरूरत पड़ती है। इस तरह देखें तो पूरे कचरे के निस्तारण के लिए सालभर में 219 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। निश्चित तौर पर इतनी बड़ी राशि को जुटा पाना स्थानीय निकायों के बूते की बात नहीं। हालांकि, अब प्लास्टिक में उत्पाद बेचने वाली कंपनियां अपने कचरे का निस्तारण स्वयं नहीं करेंगी तो उन पर सख्त कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।

पर्यटकों की आमद से अतिरिक्त बोझ

देहरादून, मसूरी समेत उत्तराखंड के तमाम पर्यटक स्थलों पर हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं। ऐसे में प्लास्टिक कचरे का अतिरिक्त बोझ भी उत्तराखंड पर बढ़ रहा है। इस स्थिति को देखते हुए भी समय रहते सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

जितना कचरा उतना पड़ेगा बोझ

ऐसा नहीं है कि प्लास्टिक कचरे के लिए सभी कंपनियों को भारी-भरकम संसाधन जुटाने पड़ेंगे या राशि खर्च करनी पड़ेगी। जो कंपनी अपने उत्पाद में जितना प्लास्टिक प्रदेश में छोड़ रही हैं, उसे उसी अनुपात में बोझ सहन करना पड़ेगा।

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नगर निगम को छोड़ा होगा पुराना ढर्रा

किसी भी बड़ी कंपनी के उत्पाद की बिक्री सीमित क्षेत्र तक नहीं है। ऐसे में कूड़े का उठान और प्लांट लगाकर उसका निस्तारण करना कंपनियों के लिए सुविधाजनक नहीं होगा। लिहाजा, देर सबेर कंपनियों को नगर निकायों से अनुबंध कर कचरे के निस्तारण का विकल्प अपनाना होगा। ऐसे में निश्चय ही नगर निकायों की आय बढ़ जाएगी, मगर इसी के अनुरूप उन्हें पुराना ढर्रा छोड़कर कूड़ा निस्तारण की दिशा में गंभीर प्रयास शुरू करने होंगे। देहरादून नगर निगम की ही बात करें तो अभी यहां रोजाना करीब 300 टन कचरा निकलता है, जिसमें से 230 टन के आसपास का ही उठान हो पाता है।

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