उत्तराखंड में चट्टान खनन सरकार के लिए सरकार का नया सुरक्षा चक्र, आइआइआरएस व वाडिया संस्थान को कमान
उत्तराखंड सरकार ने चट्टान आधारित खनन के लिए नई प्रक्रिया तय की है। बागेश्वर में खनन से हुए नुकसान को देखते हुए सभी पट्टों का सर्वेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। नए पट्टों के लिए सुरक्षा मंजूरी जरूरी है और पुराने पट्टों को चार महीने में सर्वेक्षण कराना होगा वरना वे रद्द हो जाएंगे। यह फैसला सुरक्षित खनन सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।

विकास गुसाईं, जागरण, देहरादून। प्रदेश के बागेश्वर क्षेत्र में चट्टान आधारित खनन के कारण खेतों व मकानों में आई दरारों से क्षेत्र खतरे की जद में आ गया है। इसे देखते हुए अब सरकार सुरक्षित तरीके से चट्टान आधारित खनन कराने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।
इसके तहत अब चट्टानों पर आधारित खनन के सभी पट्टों का भूकंप व खनन के कारण क्षेत्र में आने वाले बदलावों का विस्तृत सर्वे कराया जाएगा। साथ ही नये पट्टों के लिए पट्टाधारक को इन क्षेत्रों का सर्वे कराना होगा। पट्टा सुरक्षित पाए जाने पर ही उसे खनन की अनुमति होगी। वहीं, पुराने पट्टा धारकों को भी चार माह के भीतर इसका सर्वे कराना होगा। तब तक सर्वे न कराने की स्थिति में यह खनन पट्टा निरस्त कर दिया जाएगा।
प्रदेश में इस समय चट्टान आधारित खनन मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं, इनमें एक लाइम स्टोन यानी चूना पत्थर और दूसरा सोप स्टोन यानी खडिय़ा का खनन है। यह खनन मुख्य रूप से बागेश्वर, पिथौरागढ़ व चमोली क्षेत्र में होता है। इसके लिए सरकार ने खनन पट्टे भी स्वीकृत हैं। अकेले बागेश्वर में खनन के तकरीबन 150 पट्टे हैं तो शेष अन्य जिलों में यह संख्या 100 के आसपास है।
अभी हाईकोर्ट के निर्देशों के क्रम में बागेश्वर में खनन पर रोक लगी हुई हैं। चट्टान आधारित खनन से नुकसान की आशंका को देखते हुए इससे संबंधित एक याचिका राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में लगाई गई थी। इस पर प्राधिकरण ने भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग को चट्टान आधारित खनन पट्टों के संचालन को सुरक्षा के मानकों को ध्यान में रखते हुए दिशा-निर्देश जारी करने को कहा था। इस क्रम में शासन ने इसके लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।
यह स्पष्ट किया गया है कि भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग राज्य के सभी स्वीकृत खनन पट्टों का अतिसूक्ष्म भूकंप निगरानी का कार्य वाडिया संस्था के सहयोग से कराएगा। भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आइआइआरएस) के साथ मिलकर खनन से क्षेत्र में आने वाले बदलाव का अध्ययन करेगा।
नये व स्वीकृत खनन पट्टा क्षेत्रों में ढलान स्थिरता विश्लेषण का कार्य आइआइटी रुड़की के माध्यम से निजी संस्थानों के जरिये कराया जाएगा। सभी रिपोर्ट अनुकूल आने पर ही खनन की अनुमति दी जाएगी। यह भी स्पष्ट किया गया है कि आइआइटी रुड़की के माध्यम से कराए जाने वाले अध्ययन का खर्च निजी खनन पट्टा धारकों को ही वहन करना होगा। सचिव भूतत्व एवं खनिकर्म बीके संत ने कहा कि सुरक्षित खनन के लिए यह दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
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