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    यहां घोसलों से झांकने लगे नन्हे परींदे, दो माह तक उड़ने की होगी ट्रेनिंग

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sat, 20 Jul 2019 09:02 PM (IST)

    कंजरवेशन रिजर्व आसन वेटलैंड में स्थानीय प्रजातियों के परिंदों की नेस्टिंग पूरी होने पर नन्हें परिंदों टाइफा घास के झुरमुटों व घोसलों से झांकने लगे हैं ...और पढ़ें

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    यहां घोसलों से झांकने लगे नन्हे परींदे, दो माह तक उड़ने की होगी ट्रेनिंग

    देहरादून, राजेश पंवार। देश के पहले कंजरवेशन रिजर्व आसन वेटलैंड में स्थानीय प्रजातियों के परिंदों की नेस्टिंग पूरी होने पर नन्हें परिंदों टाइफा घास के झुरमुटों व घोसलों से झांकने लगे हैं। वैसे तो उत्तराखंड की कुल 693 प्रजाति में से 330 प्रजातियों के परिंदे आसन नमभूमि क्षेत्र में आते हैं, लेकिन वर्तमान में करीब 28 स्थानीय प्रजातियों के परिंदे यहां मौजूद हैं।

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    अब अगस्त तक व्यस्क परिंदे अपने चूजों को उड़ने से लेकर शत्रु से बचने व जटिल परिस्थतियों से जूझने के गुर सिखाएंगे। सितंबर में ये नन्हें परिंदे प्रशिक्षित होकर अपने बूते ऊंची उड़ान भरने लगेंगे। वर्तमान में करीब एक हजार नन्हें परिंदों की वजह से चकराता वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी दीपचंद आर्य ने रेंजर आसन को गश्त बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। 

    आसन आद्र्रभूमि में अक्टूबर से मार्च तक साइबेरिया आदि ठंडे इलाकों से आए विदेशी परिंदों का प्रवास रहता है। जो मौसम में गर्माहट आते ही अपने मूल स्थान को लौट जाते हैं। इसके बाद अप्रैल से सितंबर तक आसन झील पर स्थानीय परिंदों का राज रहता है, जो यहां ब्रीडिंग से लेकर नेस्टिंग और चूजों की परवरिश तक करते हैं। जैसे ही विदेशी परिंदों के प्रवास का समय नजदीक आता है, ये नन्हें परिंदे आसमान में स्वछंद विचरण करने लगते हैं। स्थानीय प्रजातियों की ब्रीडिंग व नेस्टिंग मई-जून में समाप्त हो जाती है और जुलाई में नन्हें परिंदे आद्रभूमि में फुदकने लगते हैं। 

    चकराता वन प्रभाग की आसन रेंज के रेंजर जवाहर सिंह तोमर व वन बीट अधिकारी प्रदीप सक्सेना बताते हैं कि वर्तमान में 28 प्रजातियों के करीब एक हजार पङ्क्षरदे आसन नमभूमि में मौजूद हैं। टाइफा ग्रास व घोसलों से चूजों की चहचहाहट अद्भुत नजारा पेश कर रही है। यहां सबसे मनमोहक नजारा स्पाट बिल्ड डक पेश करती है। मादा स्पाट बिल्ड डक के पीछे चलते नन्हें परिंदों की लाइन देखना ज्यादा आकर्षक है। स्पाट बिल्ड डक एक बार में आठ से दस अंडे देती है और चूजे एक साथ ही अंडे से बाहर आते हैं। 

    स्थानीय परिंदों की खासियत यह है कि व्यस्क नर व मादा पक्षी एक साथ मिलकर जुलाई व अगस्त तक चूजों की परवरिश करते हैं। उन्हें उड़ने व कैसे सुरक्षित रहा जाए, इसकी पूरी ट्रेनिंग देते हैं। आधुनिक विश्वकर्मा कहलाने वाले बया वीवर पक्षियों के घोसलों से भी इन दिनों नन्हें परिंदे झांकने लगे हैं।

    आसन वेटलैंड में मौजूद प्रजातियां

    स्पाट बिल डक, लिटिल इग्रेट, लिटिल कोरमोरेंट, स्पोटेड ओवलेट, हिमालयन बुलबुल, पेंटेड स्टार्क, प्रीनिया, ग्रीन बी इटर, व्हाइट ब्रोड वेक्टेल, स्विप्ट स्वैलो, रोबिन, फ्लाईकेचर, रीवर लेपविंग, रेड वेंटेड लेपविंग, रेड  स्टार्ट, इंडियन कोरमोरेंट, नाइट हेरोन, पर्पल हेरोन,  किंगफिशर, व्हाइड थ्रोटेड किंगफिशर, कामन मोरहेन, लिटिल ग्रेब, इंडियन रोलर, राबिन आदि। 

    इसलिए खास है आसन वेटलैंड

    उत्तराखंड में वेसे तो हरिद्वार के भीमगौड़ा बैराज और ऋषिकेश के वीरभद्र बैराज में अक्टूबर से मार्च से विदेशी परिंदों का प्रवास रहता है, लेकिन पछवादून के आसन वेटलैंड की बात ही कुछ ओर है। आसन झील में टाइफा ग्रास के झुरमुट, मड टापू, पास ही बहती यमुना और सामने हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत हरे-भरे पहाड़ परिंदों के प्रवास को अनुकूल बना देते हैं। साथ ही डाकपत्थर बैराज झील भी परिंदों का प्रवास स्थल है। यहां भारी संख्या में सुर्खाब अपनी सुंदरता से पक्षी प्रेमियों को मोह लेता है। 

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