यहां निर्मल और स्वच्छ गंगा की राह में रोड़ा बने थे सीवरेज-ड्रेनेज, एसटीपी ने दिलाई मुक्ति
गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे के तहत राज्य में आठ सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया। उनके ऐसा करते ही ये प्रयास अपनी सार्थकता और सफलता पर पहुंच गए।
हरिद्वार, जेएनएन। Namami Gange Project राष्ट्रीय नदी गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'नमामि गंगे' के तहत राज्य में आठ सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया। पीएम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐसा करते ही उत्तराखंड में गोमुख-गंगोत्री से हरिद्वार तक गंगा की निर्मलता को लेकर किए जा रहे प्रयास अपनी सार्थकता और सफलता पर पहुंच गए। योजना की शुरुआत में गंगा को प्रदूषण मुक्त निर्मल बनाने की राह में गंगा में गिर रहा सीवरेज और ड्रेनेेज बड़ा रोड़ा बने हुए थे। योजना के आरंभ में हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा में कुल 74 नाले रोजाना बड़ी मात्रा में गंदगी उड़ेल रहे थे, जबकि हरिद्वार और ऋषिकेश में इसके अलावा 150 एमएलडी से अधिक का मलयुक्त सीवरेज और नालों का गंंदा पानी गंगा में गिर उसकी पवित्रता को नष्ट कर रहा था।
सात जुलाई 2016 को हरिद्वार के ऋषिकुल मैदान से इस योजना की शुरुआत करते वक्त तत्कालीन केंद्रीय जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती भी काफी चिंतित थीं। पर चार वर्षों की लगातार कोशिसों और कार्य ने पीएम मोदी के साथ-साथ विश्व के करोड़ों सनातन धर्मियों और पर्यावरण प्रेमियों के गंगा को निर्मल करने के सपने को साकार कर दिया है। नमामि गंगे योजना के तहत हरिद्वार में गंगा में गिर रहे 22 बड़े नालों, ऋषिकेश में छह, मुनिकीरेती में 15, तपोवन में सात, स्वर्गाश्रम में 24 नालों के पानी को गंगा में जाने से रोकने का बड़ा काम किया गया है। इन नालों को टैप करने के साथ ही इनके ट्रीटमेंट के लिए एसटीपी के निर्माण के साथ-साथ पंपिंग स्टेशन का अपग्रेडेशन कार्य भी बड़े पैमाने पर किया गया।
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हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा में गिर रहे 150 एमएलडी सीवरेज जल के शत-प्रतिशत शोधन (ट्रीटमेंट) को इसके एसटीपी तक पहुंचाने का पुख्ता रास्ता तैयार किया गया। इसके लिए नमामि गंगे योजना के पहले चरण में गंगा के किनारे बसे शहरों में बनाए जाने वाले 60 एसटीपी में से आठ बड़े एसटीपी उत्तराखंड को दिए गए। इनमें से अधिकांश ने अपना काम शुरु कर दिया है। अब बिना शोधन सीवरेज या ड्रेनेज गंगा में नहीं गिर सकता। हालांकि, परियोजना के तहत कोशिश यह भी है कि शोधन के बाद यह जल न बहाया जाए, बल्कि इसका इस्तेमाल सिंचाई सहित अन्य कामों में लिया जाए। इस पर काम चल रहा है।
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