अरे ये मसूरी में क्या हुआ? उड़ी अधिकारियों की नींद, खतरे में साढ़े 11 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन
मसूरी नगर पालिका और वन प्रभाग की सीमा से लगे क्षेत्रों में अतिक्रमण का मामला सामने आया है। वन भूमि के 7375 सीमा स्तंभ गायब किए गए हैं जिनमें मसूरी पालिका से सटे क्षेत्रों में सबसे अधिक गड़बड़ी हुई है। इस क्षेत्र में वन विभाग के अधीन साढ़े 11 हजार एकड़ भूमि है अतिक्रमण की आशंका है। जमीनों के बंदोबस्त के दौरान चूक के कारण भूमि की लूट हुई।

सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून । मसूरी नगर पालिका और मसूरी वन प्रभाग की भूमि की सीमा से लगे क्षेत्रों में वन भूमि में बड़े स्तर पर अतिक्रमण का मामला सामने आया है। जिन क्षेत्रों में वन भूमि के 7375 बाउंड्री पिलर (सीमा स्तंभ) गायब किए गए हैं, उनमें मसूरी पालिका से सटे क्षेत्रों में ही सर्वाधिक घपला किया गया है।
इस क्षेत्र में वन विभाग के अधीन करीब साढ़े 11 हजार एकड़ भूमि है। इसमें से कितनी भूमि पर अतिक्रमण किया गया है और कितनी जमीन बेची जा चुकी है, इससे भी अधिकारी अभी अनभिज्ञ हैं।
सिर्फ मसूरी नगर पालिका की सीमा से ही लगी भूमि पर सर्वाधिक अतिक्रमण की आशंका कैसे जन्म ले रही है, इसके पीछे भी बड़ी कहानी छिपी है। इसकी शुरुआत तब होती है, जब जमींदारी खात्मे के बाद एक परिवार को 12.5 एकड़ भूमि रखने की अनुमति थी और अतिरिक्त भूमि को सरकार में निहित किया जा रहा था।
भारतीय वन अधिनियम के तहत अधिसूचित
अंगूरी नगर पालिका से ही लगे सात गांवों में ऐसी साढ़े 11 हजार एकड़ भूमि सरकार ने अपने कब्जे में ली थी। अधिकतर भूमि का स्वरूप होने के कारण इन्हें भारतीय वन अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था।
कुछ शर्तों के साथ वहां के ग्रामीणों को वनों के प्रयोग की अनुमति दी गई थी, लेकिन जमीनों पर अतिक्रमण और बिक्री का अधिकार नहीं था। लेकिन समय के साथ वन भूमि के पिलर खिसकाए जाते रहे और जमीनों के मूल मालिक, उनके वंशज ऐसी जमीनों की बिक्री करते चले गए। इस काम में सबसे बड़ी मदद जमीनों के बंदोबस्त के दौरान की गई चूक ने की।
वर्ष 1990 के आसपास जब जमीनों का बंदोबस्त कर नक्शा तैयार किया गया, तो उसका मिलान (सुपर इंपोज) वन भूमि के नक्शे से नहीं किया गया। यहीं से जमीनों की लूट की छूट भी मिल गई। ऐसे में राजस्व विभाग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
लिहाजा, दोनों नक्शे अपने-अपने हिसाब से आगे बढ़ते रहे और सीमा क्षेत्रों की तरफ धरातल पर ध्यान दिया ही नहीं गया। ऐसे में राजस्व विभाग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। दूसरी तरफ जिस वन विभाग की भूमि थी, वह खामोश रहा और नगर पालिका प्रशासन भी सिर्फ असेसमेंट तक सीमित रहा।
नगर पालिका में असेसमेंट कर जता रहे हक
इस तरह की बात भी सामने आ रही है कि वन भूमि पर अतिक्रमण और उसे विक्रय करने के लिए मसूरी नगर पालिका के असेसमेंट (कर निर्धारण) का भी सहारा लिया गया।
हालांकि, असेसमेंट सिर्फ कर के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका स्वामित्व से कोई वास्ता नहीं होता। गंभीर यह कि ऐसी भूमि पर निर्माण के लिए भी असेसमेंट को ही सहारा बनाया गया। यह जानने की भी कोशिश नहीं की गई कि संबंधित जमीनों का असल स्वामित्व किसके पास था।
इन जमीनों पर किया गया खेल
- क्षेत्र, भूमि (एकड़ में)
- चामासारी, 4960
- भीतरली, 1845
- रिखोली, 2473
- मकड़ैती, 97
- क्यारा, 1187
- कैरवान करणपुर, 341
- क्यारकुली भट्टा, 500
ग्रामीणों को सिर्फ वन भूमि में यह मिली थी छूट
- पशुओं की चराई
- जलाने के लिए लकड़ी
- पशुओं के लिए चारा पत्ती का प्रयोग
- खाद के लिए गिरी हुई सूखी पत्तियां
- शव जलाने के लिए लकड़ी
मसूरी वन प्रभाग में पिलर गायब होने और अतिक्रमण के मामले में संयुक्त सर्वे के बाद ही स्थिति स्पष्ट की जा सकती है। इस दिशा में जल्द निर्णय लिया जाएगा। - अमित कंवर, प्रभागीय वनाधिकारी (मसूरी)
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