उत्तराखंड में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं लेने से कतरा रहे 55.7 प्रतिशत परिवार, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 में सामने आया सच
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) सामने आया है कि उत्तराखंड में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं लेने से 55.7 प्रतिशत परिवार कतरा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि बीते वर्षों में इस की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

जागरण संवाददाता, देहरादून: सरकार भले ही अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त रखने का दावा करती है, लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) ने इन दावों का सच सामने ला दिया है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर नागरिकों की उदासीनता के मामले में उत्तराखंड हिमालयी राज्यों में सबसे ऊपर है।
इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 55.7 प्रतिशत लोग सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं करते। गंभीर बात यह भी है कि बीते वर्षों में इस संख्या में बढ़ोतरी हुई है। 2015-16 में यह आंकड़ा 50.5 प्रतिशत था।
सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग नहीं करने के तीन प्रमुख कारण हैं। पहला और सबसे सामान्य कारण है, अच्छे तरीके से देखभाल न होना। सर्वे के दौरान उत्तराखंड में 53.4 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में देखभाल की खराब गुणवत्ता के कारण वह वहां नहीं जाते।
दूसरा कारण लंबा इंतजार है। राज्य के 56.8 प्रतिशत नागरिकों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए लंबा इंतजार करना होता है।
तीसरा कारण आसपास सरकारी अस्पताल का नहीं होना है। 47.3 प्रतिशत परिवारों ने कहा है कि नजदीक में कोई सरकारी अस्पताल नहीं होने के कारण वह सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते।
इसके अलावा 27.9 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि सरकारी अस्पतालों की टाइमिंग सुविधाजनक नहीं है। 19.8 प्रतिशत नागरिक ऐसे हैं, जिनका सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ न उठाने का कारण स्वास्थ्य कर्मियों की गैरमौजूदगी है।
इस बाबत पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डा. आरपी भट्ट का मानना है कि सरकारी अस्पतालों में संसाधन कम नहीं हैं। खामियां सिस्टम में हैं। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को अधिक प्रभावी बनाने के लिए तीन स्तर पर कदम उठाने होंगे। नीतिगत, प्रबंधकीय और क्रियान्वयन के स्तर पर।
वह कहते हैं कि मौजूदा दौर में निजी अस्पतालों की संख्या बढ़ी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि निजी अस्पताल विशुद्ध रूप से बिजनेस कर रहे हैं। उन्हें पता है कि जैसी सेवा देंगे, वैसा नाम स्थापित होगा और आर्थिक पक्ष भी उसी अनुसार मजबूत होगा।
गुणवत्तायुक्त सेवाएं उनकी जरूरत हैं। वहीं, कर्मचारियों के लिए वहां 'हायर एंड फायर' की नीति है। तभी वहां एक कार्योन्मुखी सोच है। इसके उलट सरकारी सेवाएं पुराने ढर्रे पर चल रही हैं।
बजट की कमी, वित्तीय कुप्रबंधन, मानव संसाधन की कमी, उपलब्ध संसाधनों की शिथिलता व निष्क्रियता, उपकरणों की कमी या देखरेख में कोताही, प्रबंधकीय अयोग्यता, प्रशिक्षण और सामथ्र्य विकास की सुस्त कोशिशों के चलते स्वास्थ्य मशीनरी की सेहत गड़बड़ाई हुई है।
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठाने वाले लोग (प्रतिशत में)
उत्तराखंड--------55.7
बंगाल------------29.9
नगालैंड----------29.2
मेघालय--------21.6
असम-----------16.7
हिमाचल प्रदेश-------16.6
मणिपुर--------16.5
सिक्किम--------12.2
मिजोरम--------11.3
जम्मू-कश्मीर--------8.9
त्रिपुरा--------7.2
अरुणाचल प्रदेश--------5.4
लद्दाख----------------0.4

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