उत्तराखंड में वन सीमा को लेकर साफ होगी तस्वीर, अतिक्रमण पर भी लगेगा अंकुश
उत्तराखंड सरकार ने वन क्षेत्रों का आधुनिक तकनीक से सीमांकन कराने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी। जंगलों में अतिक्रमण और भूमि विवादों को कम करने के लिए जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम और जियोरेफ्रेसिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटियां बनेंगी। इससे वन सीमा की वास्तविक स्थिति सामने आएगी और वनों के प्रबंधन में मदद मिलेगी।

राज्य ब्यूरो, जागरण देहरादून। उत्तराखंड में जंगलों की सीमा को लेकर न केवल तस्वीर साफ होगी, बल्कि वहां अतिक्रमण पर भी अंकुश लग सकेगा। इसके लिए कैबिनेट ने वन क्षेत्रों का आधुनिक तकनीक से सीमांकन कराने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। इससे वन और निजी व अन्य विभागों की भूमि को लेकर अक्सर सामने आने वाले विवादों के मद्देनजर यह कदम उठाया जा रहा है। जंगलों के सीमांकन के लिए जियोग्राफिक इन्फार्मेंशन सिस्टम और जियोरेफ्रेसिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की भांति जंगल की जमीन भी अतिक्रमण से अछूती नहीं है। इसके साथ ही वन और निजी व अन्य विभागों की भूमि को लेकर कई बार सीमा विवाद की स्थिति आती है। कारण यह कि वन सीमा पर लगी अधिकांश मुनारें गायब हो चुकी हैं। ऐसे में अक्सर यह पता नहीं चलता कि जंगल की सीमा और निजी व अन्य विभागों की भूमि कहां तक है।
यही नहीं, भूमि से संबंधित प्रकरणों के कई विवाद लंबे समय से चले आ रहे हैं। इस सबको देखते हुए वन सीमा का डिजिटल तरीके से सीमांकन और इससे संबंधित अभिलेखों का डिजिटाइजेशन पर जोर दिया गया। इससे संबंधित प्रस्ताव बुधवार को कैबिनेट की बैठक में रखा गया, जिसे स्वीकृति दे दी गई।
अब राज्य में पायलट प्रोजेक्ट के तहत जियोग्राफिक इन्फार्मेंशन सिस्टम और जियोरेफ्रेसिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा। फिर इसे आगे बढ़ाया जाएगा। सीमांकन के दृष्टिगत राज्य स्तर पर मुख्य सचिव, जिला स्तर पर डीएम व तहसील स्तर पर एसडीएम की अध्यक्षता में कमेटियां गठित की जाएंगी।
सीमांकन होने पर वन सीमा की वास्तविक तस्वीर सामने आएगी। यह भी पता चल सकेगा कि कहां वन भूमि पर अतिक्रमण हुआ है। साथ ही सीमा को लेकर विवाद खत्म होंगे और वनों के प्रबंधन में प्रभावी मदद मिलेगी।
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