62 साल बाद मिग-21 रिटायर, Indian Air Force का था गौरव, देहरादून से जुड़ी खास यादें
भारतीय वायुसेना का मिग-21 जो छह दशक तक आसमान का प्रहरी रहा अब इतिहास बन गया है। दून निवासी एयर मार्शल (रिटा.) बृजेश धर जयाल जिन्होंने पहली बार इस विमान को उड़ाया की यादें ताज़ा हो गई हैं। 1963 में उन्होंने पहली बार मिग-21 उड़ाया और अंबाला में पहले सुपरसोनिक स्क्वाड्रन की स्थापना की। जयाल के अनुसार मिग-21 भारत की ढाल था और उनके जीवन का अहम हिस्सा रहा।

जासं, देहरादून। भारतीय वायुसेना का छह दशक तक आसमान का प्रहरी रहा मिग-21 अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है। इस सुपरसोनिक जेट ने भारत को न सिर्फ़ नई ताक़त दी, बल्कि कई युद्धों और मिशनों में अपनी अहम भूमिका निभाई।
मिग-21 की विदाई के साथ ही दून निवासी एयर मार्शल (रिटा.) बृजेश धर जयाल की यादें भी ताज़ा हो गई हैं। जयाल उन चुनिंदा पायलटों में शामिल रहे, जिन्होंने भारत के लिए पहली बार इस विमान को उड़ाया था।
रूस में मिली पहली ट्रेनिंग
साल 1962 के बाद जब भारत ने मिग-21 को अपनाने का फ़ैसला किया, तब आठ भारतीय पायलटों को सोवियत संघ भेजा गया। इनमें से एक बृजेश धर जयाल थे। उस समय उनकी उम्र महज़ 27 वर्ष थी। लुगोवाया एयरबेस पर 11 जनवरी 1963 को उन्होंने पहली बार मिग-21 उड़ाया। जयाल बताते हैं कि उस समय कॉकपिट के सभी मीटर और डायल रूसी भाषा में थे। इसके लिए उन्हें पहले डेढ़ महीने क्लासरूम में पढ़ाई और भाषा की ट्रेनिंग दी गई।
पहला सुपरसोनिक स्क्वाड्रन
भारत लौटने के बाद जनवरी 1963 में अंबाला में 28 स्क्वाड्रन की स्थापना की गई। यह भारतीय वायुसेना का पहला सुपरसोनिक स्क्वाड्रन था, जिसमें मिग-21 शामिल हुआ। जयाल इसके सह-संस्थापकों में थे। शुरुआती दिनों में पायलटों और इंजीनियरों के पास सीमित संसाधन थे, कई बार हैंगर न होने पर तंबुओं से ही काम चलाना पड़ा। लेकिन इन्हीं हालात में भारत ने सुपरसोनिक युग में कदम रखा।
रोमांचक किस्से और सीख
सोवियत ट्रेनिंग के दौरान की एक घटना जयाल आज भी याद करते हैं। लैंडिंग के दौरान अचानक एक सैनिक रनवे पार करने लगा। उन्होंने नियम तोड़ते हुए तुरंत ‘गो-राउंड’ का निर्णय लिया और हादसा टाल दिया।
बाद में ब्रीफिंग में नाराज़गी ज़रूर जताई गई, लेकिन साथी पायलटों ने उनके फ़ैसले को सही ठहराया।एचएएल नासिक में तीन साल तक उन्होंने टेस्ट पायलट के रूप में काम किया। हर नए विमान की टेस्ट फ्लाइट उन्होंने की। जयपुर में 1963 की गणतंत्र दिवस फ्लाईपास्ट की प्रैक्टिस के दौरान हुई टक्कर से भी उन्होंने सीखा कि हर हादसा ऑपरेशनल सुरक्षा को और मज़बूत करता है।
“उड़ता ताबूत” नहीं, बल्कि ढाल था
1972 के बाद मिग-21 से जुड़ी दुर्घटनाओं ने इसे ‘उड़ता ताबूत’ का नाम दिलाया। लेकिन जयाल इस धारणा से असहमत हैं। वह कहते हैं कि मिग-21 ने भारत की ढाल बनकर काम किया। यह बेहतरीन मशीन थी जिसने हर बार अपनी क्षमता साबित की। इसे बलि का बकरा बनाना दुर्भाग्य है।
आख़िरी उड़ान और जीवन का रिश्ता
जयाल ने मिग-21 के साथ 1685 उड़ानें भरीं। उनकी आख़िरी उड़ान 18 नवंबर 1992 को जोधपुर में हुई, जब वह दक्षिण पश्चिमी कमांड के कमांडिंग-इन-चीफ़ थे। वह कहते हैं कि मेरी मेहनत, मेरी लगन सब मिग-21 से जुड़े हैं।
यह सिर्फ़ विमान नहीं, बल्कि मेरे जीवन का हिस्सा रहा है। आज 90 वर्ष की उम्र में भी एयर मार्शल (रिटा.) बृजेश धर जयाल मिग-21 को भारतीय वायुसेना की शान और अपने जीवन का सबसे बड़ा गौरव मानते हैं।
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