FLASHBACK 2016: उत्तराखंड में जंगल की आग बुझाने को उतरी गई वायुसेना
वर्ष 2016 में अप्रैल-मई माह में उत्तराखंड के जंगलों में आग लगी। बेकाबू आग को रोकने के लिए वायुसेना उतारी गई। वायुसेना के दो एमआई-17 हेलीकॉप्टरों ने पानी का छिड़काव किया।
देहरादून, [जेएनएन]: वर्ष 2016 के अप्रेल और मई माह में उत्तराखंड को वनाग्नि आपदा से जूझना पड़ा। रानीखेत में आग बुझाने को सेना की मदद ली गई तो पौड़ी और नैनीताल में वायुसेना के दो एमआई-17 हेलीकॉप्टरों ने मोर्चा संभाला। वहीं, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, अर्द्धसैनिक बलों के साथ ही वन समेत विभिन्न विभागों के कार्मिक तमाम स्थानों पर आग बुझाने पर जुटे रहे। वनाग्नि आपदा में सात लोगों की मौत हुई, जबकि 14 लोग झुलस गए। वहीं, इससे 2269 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ।
उत्तराखंड में हर तीसरे-चौथे साल भयावह हो रही वनाग्नि
देवभूमि उत्तराखंड में हर तीसरे और चौथे साल में जंगल की आग सबसे अधिक विकराल रूप धारण कर रही है। बीते एक दशक में हुई वनाग्नि की घटनाओं पर नजर दौड़ाएं तो यही तस्वीर सामने आती है। विभाग के आला अधिकारी भी मानते हैं कि दावानल के मामले में तीसरे और चौथे साल का चक्र भारी पड़ता है। इस मर्तबा भी चौथे साल का चक्र है, जब जंगल इतने बड़े पैमाने पर धधक रहे हैं।
जंगलों में लगी आग रोकने के लिए उठाए जा रहे कदम नाकाफी: हरीश रावत
विभागीय आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2005 में दावानल की चपेट में आकर 3652 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इसके चौथे साल यानी 2009 में वनाग्नि से क्षति का आंकड़ा 4115 हेक्टेयर पहुंच गया। फिर तीसरे साल 2012 में वनाग्नि से क्षति हुई 2826.3 हेक्टेयर। अब चौथे साल यानी 2016 में जंगल की आग इतनी भयावह हुई है कि अब तक 2269 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है। साफ है कि तीसरे व चौथे साल वनाग्नि विभाग को खूब पसीना छुड़ा रही है। विभागीय अधिकारी भी इससे इत्तेफाक रखते हैं।
देखें तस्वीरें:- PICS: जंगल की आग, M-17 हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव शुरू
पहाड़ में चीड़ सबसे खतरनाक
दावानल को भड़काने में चीड़ का भी अहम रोल है, खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में। दरअसल, राज्य में करीब 18 फीसद हिस्से में चीड़ का फैलाव है। हर साल बड़े पैमाने पर चीड़ की पत्तियां (पिरुल) गिरती हैं। भूमि में पिरुल की परत बिछ जाती है, जो गर्मियों में सूखने पर आग का बड़ा कारण बनती है। इसके अलावा चीड़ का फल भी नीचे गिरकर लुढ़कता है, जो वनाग्नि के फैलने की वजह बनता है।
जंगल की आग बुझाने को उतरी वायुसेना, देखें तस्वीरे
जंगल की आग बुझाते समय सास-बहू झुलसी
अप्रैल माह में टिहरी में चंबा ब्लॉक के तिलवाल गांव में जंगल की आग बुझाते समय सास-बहु झुलस गई। हुआ यूं कि तिलवाल गांव में 27 अप्रैल 2016 को दोपहर ढाई बजे जंगल में लगी आग भड़क उठी। इस दौरान ग्रामीण महिला बसंती देवी 60 पत्नी स्व. पूरणानंद व उसकी बहू कौशल्या देवी 37 पत्नी प्यारे लाल आग बुझाने के लिए निकल गई। भयंकर आग की चपेट में दोनों आ गई। अन्य ग्रामीण भी उनकी चीख सुनकर वहां पहुंचे और किसी तरह दोनों महिलाओं को आग से बचाया। इसमें सास बहु झुल गए थे।
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जंगलों में लगी आग पर राष्ट्रपति ने भी जताई चिंता
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राज्यपाल डॉ. कृष्ण कांत पाल को पत्र लिखकर उत्तराखंड में जंगलों में आग के कारण जन-धन व पर्यावरण को हुए नुकसान पर अपनी चिंता जाहिर की थी। साथ ही उन्होंने जंगल की आग में प्राण गंवाने वालों के प्रति संवदेना व्यक्त की थी। उन्होंने पर्यावरण व जैवविविधता को बचाने के लिए राज्य सरकार, राहत कर्मियों, सिविल संगठनों व स्थानीय जनता के प्रयासों की सराहना करते हुए विश्वास जताया कि उत्तराखंड सरकार व यहां की जनता अपने दृढ़ संकल्प शक्ति से वनाग्नि की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करेंगे। राष्ट्रपति ने कहा था कि प्रभावित लोगों को हर सम्भव सहायता उपलब्ध करवाई जाए।
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