लाइसेंस शुल्क पर व्यापारी आक्रोशित, महापौर से मुलाकात कर जताई नाराजगी
प्रदेश उद्योग व्यापार एवं उद्योग व्यापार मंडल समिति के प्रतिनिधिमंडल ने महापौर सुनील उनियाल गामा से मुलाकात कर शुल्क लागू करने का प्रस्ताव निरस्त करने की मांग की।
देहरादून, जेएनएन। नगर निगम की ओर से शहर में व्यापार पर श्रेणी के हिसाब से लगाए जा रहे लाइसेंस शुल्क पर विवाद बढ़ता जा रहा है। प्रदेश उद्योग व्यापार एवं उद्योग व्यापार मंडल समिति के प्रतिनिधिमंडल ने महापौर सुनील उनियाल गामा से मुलाकात कर शुल्क लागू करने का प्रस्ताव निरस्त करने की मांग की। इसके अलावा भवन कर में की 40 फीसद की वृद्धि भी वापस लेने की मांग की गई।
नगर निगम की ओर से सभी व्यापारियों, थ्री व्हीलर, टेंपो, ढाबा, होटल, पेट्रोल पंप, वेडिंग प्वाइंट व सिटी बस संचालन समेत सभी तरह के व्यापारियों पर लाइसेंस शुल्क लगाया जा रहा है। बीते दिनों निगम ने इस शुल्क की दरें सार्वजनिक कीं और आपत्ति मांगी। यह दरें फरवरी से लागू की जाएंगी। इसे लेकर व्यापारी वर्ग खासा नाराज है और आंदोलन की चेतावनी दे रहा। इस संबंध में व्यापार मंडल के महामंत्री विनय गोयल के साथ व्यापारियों के प्रतिनिधिमंडल ने निगम में महापौर से मुलाकात की।
व्यापारियों का कहना था कि साल 2016 में जब जीएसटी लगाया गया था, तब केंद्र व राज्य सरकार ने भरोसा दिया था कि इसके बाद कारोबार पर सभी तरह के टैक्स से निजात मिलेगी। इसके बावजूद नगर निगम, श्रम विभाग व मंडी समिति की ओर से लाइसेंस शुल्क के नाम पर व्यापारियों का लगातार उत्पीड़न हो रहा है। महामंत्री गोयल ने कहा कि व्यापारी वर्ग का उत्पीड़न किसी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस दौरान राजेंद्र गोयल और पुनीत मित्तल समेत विवेक अग्रवाल, अनुज गोयल, राजकुमार अरोड़ा, महावीर प्रसाद गुप्ता, राजकुमार दीवान, मुकुल अग्रवाल व संजीव अग्रवाल समेत दर्जनों व्यापारी निगम में मौजूद रहे। वहीं, महापौर ने व्यापारियों को भरोसा दिया कि किसी का भी उत्पीड़न नहीं होगा। प्रस्तावित दरों पर फिर से विचार किया जाएगा।
व्यापारियों की प्रमुख मांगें
- सभी व्यवसायिक अचल संपत्तियों पर नगर निगम द्वारा पूर्व में ही प्रापर्टी टैक्स का लगभग पांच गुना भारी भरकम टैक्स लिया जा रहा है। उसी संपत्ति पर लाइसेंस शुल्क लगाना अव्यवहारिक व अवैधानिक है।
- वर्ष 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लगाए जाते समय सभी व्यापारियों को यह भरोसा दिया गया था कि जो भी टैक्स पूर्व में लगते रहे हैं उन सभी को खत्म कर एक जीएसटी ही देना होगा। फिर भी हर विभाग नए-नए शुल्क लगा रहा है।
- वर्ष 2000 में केंद्र में अटल सरकार में व्यापारियों को इंस्पेक्टर राज से मुक्त करने का अभियान आरंभ किया गया था। जिससे उद्योग एवं व्यापार प्रगति करें, लेकिन तमाम महकमें व्यापारियों को दोबारा इंस्पेक्टर राज की ओर धकेलना चाह रहे।
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- सरकारी नीतियों के कारण एवं जीएसटी के कारण सभी कारोबार मंदी में है। इसका प्रमाण जीडीपी में दिख रहा।
- नगर निगम द्वारा 40 फीसद बढ़ाकर जो हाउस टैक्स लिया जा रहा है, व्यापारियों ने उसका भी विरोध किया। वृद्धि वापिस लेने व पुराने रेट पर हाउस टैक्स लेने की मांग की गई।
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