Move to Jagran APP

कहानी ऐसी पहाड़ी वीरांगना की जो कहलाई उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई, तुर्कों को किया था चित, होती है घरों में पूजा

Mata Jiya Rani कत्यूरी सम्राट प्रीतम देव की महारानी जिया का नाम उत्तराखंड की वीर और पौराणिक गाथाओं में सम्मान से लिया जाता है। कहा जाता है कि जिया रानी हल्‍द्वानी के रानीबाग में रहीं थीं और उन्होंने यहां अपना बाग सजाया था।

By Nirmala BohraEdited By: Published: Sat, 26 Nov 2022 02:52 PM (IST)Updated: Sat, 26 Nov 2022 02:52 PM (IST)
कहानी ऐसी पहाड़ी वीरांगना की जो कहलाई उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई, तुर्कों को किया था चित, होती है घरों में पूजा
Mata Jiya Rani : माता जिया रानी की गुफा आज भी रानीबाग में स्थित है।

टीम जागरण, देहरादून : Mata Jiya Rani : कत्यूरी सम्राट प्रीतम देव की महारानी जिया का नाम उत्तराखंड की वीर और पौराणिक गाथाओं में सम्मान से लिया जाता है। कत्यूरी राजवंश में माता को जिया कहा जाता है, इसलिए उन्हें जिया रानी कहा जाता है।

loksabha election banner

इतिहासकारों और स्‍थानीय लोगों के मुताबिक जिया रानी धामदेव की मां थी और प्रख्यात उत्तराखंडी लोककथा नायक मालूशाही की दादी थीं। कहा जाता है कि जिया रानी हल्‍द्वानी के रानीबाग में रहीं थीं और उन्होंने यहां अपना बाग सजाया था। जिस कारण इस जगह का नाम रानीबाग पड़ा। जिया रानी पर कई कहावते प्रचलित हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में...

  • रानीबाग में जिया रानी का मंदिर है। माता जिया रानी की गुफा आज भी रानीबाग में स्थित है।
  • मान्‍यता है कि वह गुफा से वह सीधे हरिद्वार निकली थीं।
  • यहां एक विशाल शिला है, जिसे जिया रानी का घाघरा मानकर लोग पूजते हैं।
  • स्‍थानीय परंपराओं के अनुसार माता जिया रानी कत्यूरी वंश की रानी थीं।
  • हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर रानीबाग में कत्यूरी वंश के लोग और सैकड़ों स्‍थानीय लोग अपने परिवार सहित सामूहित पूजा करते हैं। जिसे जागर हैं।
  • उत्तराखंड में जिया रानी की गुफा के बारे में एक किवदंती प्रचलित है।
  • कहा जाता है रानी जिया कत्यूरी राजा पृथ्वीपाल उर्फ प्रीतमदेव की पत्नी थी।
  • वह रानीबाग में चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थीं।
  • रानी जिया बेहद सुंदर थीं। जैसे ही रानी नहाने के लिए नदी पर पहुंचीं तो वहां रुहेलों की सेना ने वहां घेरा डाल दिया।
  • इस दौरान उन्होंने अपने ईष्ट देवताओं का स्मरण किया और गार्गी नदी के पत्थरों में ही समा गईं।
  • नदी के किनारे एक विचित्र रंग की शिला आज भी वहां देखने को मिलती है, जिसे चित्रशिला कहा जाता है।
  • जिया रानी को कुमाऊं में न्याय की देवी के रूप में पूजा जाता है। इतना ही नहीं जिया रानी कई कुलों की आराध्‍य देवी भी हैं।

यह भी पढ़ें - Khalanga War : गोरखा सैनिकों ने कंपा दी थी अंग्रेजों की रूह, पत्थरों की बरसात से फिरंगी सेना को किया था पस्‍त

क्या है माता जिया रानी का असली नाम?

  • जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थीं।
  • मौला देवी राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थीं।
  • मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को जिया कहा जाता था, इसलिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।

क्‍यों कहलाई कुमाऊं की रानी लक्ष्मीबाई?

माता जिया रानी को कुमाऊं की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि माता जिया रानी ने रोहिलो और तुर्कों के आक्रमण के दौरान कुमाऊं की रक्षा की थी और युद्ध में बलिदानी हुईं थी।

स्‍थानीय लोगों का मानना है कि युद्ध के समय जिया रानी ने हीरे-मोती जड़ित लहंगा पहना था। जो बाद में पत्थर बन गया। ये पत्थर आज भी है रानीबाग में मौजूद हैं और इसे चित्रशीला नाम से जाना जाता है।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.