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    जौनसार-बावर में दुल्हन लेकर आती है बरात

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 20 Feb 2018 07:59 PM (IST)

    संवाद सूत्र, चकराता: देश-दुनिया में अनूठी परंपराओं के लिए विख्यात जनजातीय जौनसार बावर क्षेत्र

    जौनसार-बावर में दुल्हन लेकर आती है बरात

    संवाद सूत्र, चकराता: देश-दुनिया में अनूठी परंपराओं के लिए विख्यात जनजातीय जौनसार बावर क्षेत्र में दुल्हन के बरात लेकर दूल्हे के यहां आने की परंपरा आज भी कायम है। स्थानीय भाषा में इस विवाह को जोझोड़ा कहते हैं। हर पीढ़ी में बड़े बेटे का विवाह इसी परंपरा के अनुसार करने का रिवाज आज तक चला आ रहा है। मंगलवार को दियावी गांव से दुल्हन बरात लेकर देसोऊ गांव पहुंची। इस दौरान देसोऊ का पंचायती आंगन लोक के रंगों में सराबोर रहा।

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    मैदानी इलाकों में जहां दूल्हा बरात लेकर दुल्हन के घर जाता है, वहीं जौनसार बावर में आज भी दुल्हन के दूल्हे के यहां बरात लेकर जाने की परंपरा है। इस बरात में 80 से लेकर सौ बराती रहते हैं। मंगलवार को कालसी ब्लॉक के देसोऊ गांव में उत्तराखंड पुलिस के सिपाही विनय

    के घर भी दुल्हन बरात लेकर पहुंची। देसोऊ निवासी श्याम दत्त शर्मा

    के पुत्र विनय इन दिनों रुद्रप्रयाग में तैनात हैं। विवाह पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार संपन्न हुआ। विनय ने जीवनसाथी के रूप में चकराता ब्लॉक के दियावी गांव निवासी नारायण दत्त की पुत्री ¨रकी के साथ सात फेरे लिए।

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    महिलाओं को विशेष भोज

    जोझोड़े विवाह की परंपरा जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में पीढि़यों से चली आ रही है। परिवार का बड़ा बेटा चाहे कितने ही बड़े पद पर क्यों न हो, उसे इसी रस्मोरिवाज से शादी करनी होती है। इसके तहत पूरे गांव व खत (पट्टी) के लोगों को मेहमान के रूप में बुलाया जाता है। साथ ही गांव की महिलाओं को विशेष भोज दिया जाता है। इसे स्थानीय भाषा में रहिणी जीमाना कहते हैं।

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    शादी में फिजूलखर्ची नहीं

    जोझोड़े विवाह में फिजूलखर्ची से बचा जाता है। मैदानी क्षेत्र में जहां शादी समारोह में शामियाना, वे¨डग प्वाइंट, हलवाई आदि के नाम पर लाखों रुपये उड़ाए जाते हैं, वहीं फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाने जौनसार बावर में ग्रामीण मिल-जुलकर हाथ बंटाते हैं। स्थानीय भाषा में इसे रसवाड़ कहा जाता है।

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    दहेज मे मात्र पांच वस्तुएं

    जौनसार बावर में दहेज के नाम पर मात्र पांच वस्तुएं काठ का संदूक, बिस्तर, बंठा, परात व थाली देने का रिवाज है। स्थानीय भाषा में इसे पाइंता कहते हैं। जोझोड़े विवाह में गांव के बाजगी, बढ़ई, लोहार आदि को अलग से शादी का हिस्सा देने की परंपरा है। इसे स्थानीय भाषा में कुणभोज कहते हैं।