महाराष्ट्र की तर्ज पर गुलदार के साथ रहना सीख रहा उत्तराखंड, अपनाया जा रहा ये प्लान
उत्तराखंड का वन विभाग गुलदार के साथ सह-अस्तित्व के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है। गुलदार कु दगड़िया पुस्तिका का विमोचन किया गया जो लोगों को तेंदुओ ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड, जो अपनी जैव विविधता और वन्यजीवों के लिए जाना जाता है, अब गुलदार के साथ सह-अस्तित्व की नई कहानी लिखने की ओर बढ़ रहा है। महाराष्ट्र की तर्ज पर उत्तराखंड में भी लिविंग विद लेपर्ड थीम पर कार्य किया जा रहा है।
इसी दिशा में उत्तराखंड वन विभाग ने तितली ट्रस्ट और वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी इंडिया के सहयोग से कार्यशाला का आयोजन किया। जिसमें आमजन को गुलदार के हमलों से बचाव के उपाय बताने के लिए जागरूक करने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही गुलदार कु दगड़िया पुस्तिका का भी विमोचन किया गया।
शुक्रवार को वन मुख्यालय स्थित मंथन सभागार में आयोजित कार्यशाला में वन विभाग के अधिकारियों व विभिन्न सहयोगी संस्थाओं के सदस्यों ने गुलदार-मानव संघर्ष पर चर्चा की। वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड में पिछले एक दशक में 150 से अधिक गुलदार-मानव संघर्ष की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें से कई जान गईं। खासकर पहाड़ी क्षेत्रों के गांवों में, जहां जंगल और मानव बस्तियां आपस में गुंथी हुई हैं, यह संघर्ष गहराता गया।
डब्ल्यूसीएस-इंडिया और तितली ट्रस्ट की ओर से वर्ष 2014 से किए गए शोध से पता चला है कि अधिकांश हमले संयोगवश मुठभेड़ की स्थिति में होते हैं, न कि शिकार की नीयत से। यह जानकारी वन विभाग को नीतिगत बदलाव और स्थानीय समाधान तलाशने में मददगार रही।
कार्यशाला में प्रमुख वन संरक्षक डा. धनंजय मोहन, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक रंजन कुमार मिश्रा, कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डा. साकेत बडोला और राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक डा. कोको रोसे उपस्थित रहे। उन्होंने तेंदुए के व्यवहार, वन क्षेत्र में मानव गतिविधियों के प्रभाव और सह-अस्तित्व के सफल माडल्स को साझा किया।
मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने कहा, अगर मीडिया डर और सनसनी को बढ़ावा देता है, तो संघर्ष और गहराएगा। लेकिन, जब मीडिया विज्ञान-सम्मत और सहानुभूति से रिपोर्ट करता है, तो वह न केवल जानकारी देता है बल्कि समाधान का रास्ता भी दिखाता है। प्रमुख वन संरक्षक ने कहा कि गुलदार को अक्सर गलत समझा जाता है। उसका व्यवहार जटिल है, लेकिन हर हमले को ''''आदमखोर'''' की सनसनी से जोड़ना समाधान नहीं है।
गुलदार के बारे में मिथक को तोड़ना जरूरी
कार्यशाला के दौरान एक विशेष बुकलेट का विमोचन किया गया। गुलदार के बारे में मिथकों को तोड़ना और उनके साथ रहना सीखना थीम पर गुलदार कु दगड़िया पुस्तिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह पुस्तिका सामान्य जन को गुलदार के व्यवहार, मानव-तेंदुआ मुठभेड़ की प्रकृति, और क्या करें/क्या न करें जैसी व्यावहारिक जानकारियों से लैस करती है।
महाराष्ट्र में जाकर लिया प्रशिक्षण
उत्तराखंड वन विभाग की टीम ने वर्ष 2016 में महाराष्ट्र में लिविंग विद लेपर्ड थीम पर किए जा रहे कार्य का अध्ययन किया था। यहां से टीम महाराष्ट्र जाकर प्रशिक्षण लेकर आई। जिसके बाद टिहरी वन प्रभाग और फिर नरेंद्रनगर वन प्रभाग में इस थीम पर कार्य किया गया और पिछले कुछ वर्षों में गुलदार-मानव संघर्ष की घटनाओं में कमी दर्ज की गई। पौड़ी वन प्रभाग में भी इस प्रयाेग का असर दिख रहा है।

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