Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Uttarakhand News: काजीरंगा टाइगर रिजर्व में 318 वर्ग किमी घट गई घास की भूमि, पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 03:42 AM (IST)

    काजीरंगा टाइगर रिजर्व में बीते 100 वर्षों में घास के मैदानों में 318 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है जिससे पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो सकता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोध में यह खुलासा हुआ कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण घास भूमि कम हो रही है जबकि वन क्षेत्र बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों ने अनुकूली प्रबंधन पर जोर दिया है।

    Hero Image
    काजीरंगा टाइगर रिजर्व में 318 वर्ग किमी घट गई घास की भूमि

    सुमन सेमवाल, देहरादून। बाघों में सबसे अधिक घनत्व वाले टाइगर रिजर्व में से एक काजीरंगा में घास के मैदान तेजी से सिमट रहे हैं। 100 वर्षों के अंतराल में घास भूमि में 318 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। यह स्थिति टाइगर रिजर्व के पारिस्थितिक तंत्र के लिए असंतुलन की स्थिति पैदा कर सकती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    घास भूमि में कमी की यह चौंकाने वाली जानकारी भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के ताजा शोध में सामने आई। इस शोध को मंगलवार को संस्थान में आयोजित आंतरिक शोध संगोष्ठी में साझा किया गया।

    विज्ञानियों के अनुसार, असम के ब्रह्मपुत्र तटीय क्षेत्र में स्थित काजीरंगा टाइगर रिजर्व (केटीआर) ने बीते 100 वर्षों में भारी पारिस्थितिकी बदलाव देखे हैं। भूमि उपयोग में निरंतर परिवर्तन और जलवायु अस्थिरता के कारण यहां के घास के मैदान, जंगल और जल स्रोतों का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है।

    दरअसल, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) वित्तपोषित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं (उमर सईद, रश्मि दास, सैयद ऐनुल हुसैन और डा. रुचि बडोला) ने वर्ष 1913 से 2023 तक के ऐतिहासिक नक्शों, उपग्रह चित्रों और मौसमीय आंकड़ों का विश्लेषण किया।

    वर्ष 2018 से 2024 तक किए गए अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 1913 से अब तक काजीरंगा की 318 वर्ग किलोमीटर घासभूमि समाप्त हो चुकी है। वहीं दूसरी तरफ, एक और चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि वन क्षेत्र में 34,997 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

    यह विस्तार ऐसी वनस्पतियों के रूप में हुआ, जिसने घास के मैदान को लील लिया। ऐसे में यह चिंता बढ़ गई है कि घास पर निर्भर वन्यजीवों का अभाव पैदा हो सकता है। इसी तरह के वन्यजीव बाघों का भोजन भी होते हैं। लिहाजा, अध्ययन के आंकड़े टाइगर रिजर्व के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी चुनौती बन सकते हैं।

    जलाशयों में भी कमी

    भारतीय वन्यजीव संस्थान के अध्ययन में टाइगर रिजर्व के जलाशयों में भी उतार-चढ़ाव देखा गया। वर्ष 2013 तक इनमें विस्तार हुआ, लेकिन 2023 तक इनमें कमी आने लगी। दूसरी तरफ पिछली एक सदी में इस क्षेत्र में अधिकतम तापमान घटा है। अधिकतम तामपान 37.5° डिग्री सेल्सियस से घटकर 36° डिग्री सेल्सियस तक आ गया, जबकि न्यूनतम तापमान बढ़कर 6° से 8° डिग्री सेल्सियस हो गया है। इसके अलावा क्षेत्र में आर्द्रता, वर्षा और मिट्टी की नमी में भी वृद्धि दर्ज की गई।

    मानव और प्रकृति दोनों की भूमिका

    रिपोर्ट में कहा गया है कि ये बदलाव केवल जलवायु परिवर्तन का परिणाम नहीं हैं, बल्कि कृषि विस्तार, बुनियादी ढांचे के निर्माण और वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों ने भी काजीरंगा की पारिस्थितिकी को गहराई से प्रभावित किया है।

    भविष्य के लिए चेतावनी जारी और सुझाया समाधान

    अध्ययन में विज्ञानियों ने चेताया है कि यदि मौजूदा प्रवृत्तियां जारी रहीं, तो रिजर्व के पारिस्थितिक संतुलन पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है। शोधकर्ताओं ने अनुकूली प्रबंधन (एडेप्टिव मैनेजमेंट) की जरूरत बताई है। जिसमें घास भूमि पुनर्जीवन, जल संतुलन बनाए रखने और जलवायु सहनशीलता बढ़ाने पर जोर दिया गया है।