कवि सम्मेलन में सजी महफिल, कविताओं के जरिये नेताओं पर कसे गए तंज
देहरादून में अपनत्व फाउंडेशन की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आए कवियों ने कविताओं के जरिए समां बांधा।
देहरादून, जेएनएन। अश्कों पे सियासत का होता नहीं यकीन, घड़ियाल की आंखों से आंसू नहीं बहते, खादी के जिस लिबास पे दिखते लहू के दाग, खादी के उस लिबास में बापू नहीं रहते..कवि सम्मेलन में उत्तर प्रदेश से आए कवि कमलेश राजहंस ने कुछ इस तरह अपनी प्रस्तुति से सियासत पर तंज कसे।
रविवार शाम आइआरडीटी सभागार में अपनत्व फाउंडेशन की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आए कवियों ने कविताओं के जरिए ऐसा समां बांधा कि सभागार ठहाकों से गूंज उठा। वीर रस से लेकर मार्मिक कविताओं की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गाजियाबाद से आए कवि पंडित सुरेश नीरव की वहशी ग्लोबल वार्मिंग के कातिलाना तेवर हैं, पांव बूढ़ी पृथ्वी के अब तो डगमगाने हैं, गलते हुए ग्लेशियर हैं सूखते मुहाने हैं, हांफती सी नदियों के लापता ठिकाने हैं ने दर्शकों की जमकर वाहवाही लूटी।
कीर्तिनगर से आए कवि जेके माटी की, जिसने खामोशी से जिंदगी के दिन गुजारे हैं, उनसे पूछना जाकर कि फलक में कितने तारे हैं, इस खुले देश में हम सिर्फ जिस्म ढकते रहे, यहां कौन गांधी हुआ किसने कपड़े उतारे हैं कविता ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। रुड़की निवासी कवि नीरज नैथानी बोले, खंजर सी धार हूं, पैना हथियार हूं, हां जी अखबार हूं, हां जी अखबार हूं।
वहीं, लखनऊ से आए श्यामल मजूमदार ने अपनी कविता शुरू की तो समा बंध गया। वो बोले, अंगुली पकड़के जाने कब वो चलना सीख गया, चार कदम चल कर ही मुझको छलना सीख गया। उसकी इस नादानी पर मैं रो भी नहीं सकता, सूरज ढले ना ढले मैं ढलना सीख गया। कवि अतुल शर्मा की कविता ने भी लोगों के दिल को छू लिया। कवि सम्मेलन में कुछ इस तरह कवियों की महफिल ने शाम को रंगीन किया।
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इस दौरान मौजूद अन्य कवि राकेश जुगरान, श्रीकांत श्री, जयकृष्ण पैन्यूली समेत अन्य कविताओं ने भी प्रस्तुति दी। अपनत्व संस्था की सचिव प्रतिभा नैथानी ने बताया कि आरोग्यधाम अस्पताल के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान संस्था की कोषाध्यक्ष दीपशिखा गुसाईं, आरोग्यधाम अस्पताल से डॉ. विपुल कंडवाल समेत अन्य मौजूद रहे।
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