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    कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ पर सेना का अनूठा अभियान, घर-घर जाकर होगा बलिदानी परिवारों का सम्मान

    Updated: Fri, 04 Jul 2025 07:14 PM (IST)

    कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ पर भारतीय सेना ने शहीदों के परिवारों को सम्मानित करने की एक अनूठी पहल की। देहरादून में लांस नायक सुरमान सिंह की पत्नी कविता देवी को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। नायब सूबेदार सुधीर चंद्र ने कहा कि शहीदों के परिवार उनकी जिम्मेदारी हैं। कार्यक्रम में भारत माता की जय के नारे लगे और शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई।

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    कारगिल विजय दिवस सेना ने शहीद के परिवार को किया सम्मानित। प्रतीकात्‍मक

    जागरण संवाददाता, देहरादून। कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ पर भारतीय सेना ने राष्ट्रभक्ति और मानवीय संवेदना का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया , जिसने सभी के दिल को छू लिया है। इस बार सेना सिर्फ किसी एक कार्यक्रम तक सीमित नहीं है, बल्कि उसने घर-घर जाकर उन परिवारों को सम्मानित करना शुरू किया है, जिनके स्वजन कारगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे।

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    इसी कड़ी में जनपद देहरादून के नवादा रोड स्थित मिनी मसूरी में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में कारगिल युद्ध में बलिदान हुए लांस नायक सुरमान सिंह (सेना मेडल) की पत्नी कविता देवी को सेना की ओर से स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया। सम्मान प्राप्त करते समय कविता देवी की आंखें नम थीं, लेकिन उनके स्वर में अपार गर्व झलक रहा था।

    उन्होंने कहा कि यह पल मेरे लिए जीवनभर की पूंजी है। यह विशेष सम्मान नायब सूबेदार सुधीर चंद्र के नेतृत्व में नायक सुनील सिंह, नायक मुकेश चंद्र और राइफलमैन रोहित सिंह ने सौंपा। नायब सूबेदार सुधीर चंद्र ने कहा कि हमारे वे साथी जो मातृभूमि के लिए बलिदान हुए, अमर हैं। उनके परिवार हमारी जिम्मेदारी हैं और उनका सम्मान हमारी प्राथमिकता।

    यह केवल एक स्मृति चिन्ह नहीं, हमारी भावना है। कार्यक्रम की शुरुआत दो मिनट के मौन के साथ हुई। आयोजन में पूर्व सैनिक और बड़ी संख्या में स्थानीय नागारिक उपस्थित रहे। आयोजन स्थल देशभक्ति के नारों से गूंज उठा।

    इस अभियान का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यही है कि यह केवल एक प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उन परिवारों तक पहुंचने का प्रयास है जो सीमाओं के भीतर अपने बेटे, पति या पिता को खो चुके हैं। कार्यक्रम का समापन भारत माता की जय और शहीद अमर रहें जैसे नारों के साथ हुआ, लेकिन सबसे स्थायी स्मृति वह मौन सम्मान था, जो कविता देवी की आंखों में छलक आया।