Kargil Vijay Diwas: परिवार के अगाध प्रेम की अनूठी कहानी, शहीद बेटे की याद में बनाया मंदिर
देहरादून के एक परिवार ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए अपने बेटे राजेश गुरुंग की याद में एक मंदिर बनवाया है। राजेश 2-नागा रेजीमेंट में तैनात थे और टाइगर हिल पर लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उनकी मां बसंती देवी आज भी उन्हें याद करती हैं। राजेश ने आखिरी समय में अपने परिवार को एक चिट्ठी लिखी थी जो आज भी उनके होने का एहसास कराती है।

जागरण संवाददाता, देहरादून। ये एक साहसी परिवार की अपने वीर सपूत के प्रति अगाध प्रेम की अनूठी कहानी है। आमतौर पर माता-पिता की स्मृति में मंदिर बनाने के उदाहरण मिलते हैं, पर दून के इस परिवार ने कारगिल में शहीद अपने जिगर के टुकड़े की याद में पाई-पाई जोड़कर मंदिर बनाया और वहां बेटे की मूर्ति लगाई। मंशा ये थी कि लोग सदियों तक उनके बेटे की बहादुरी को याद रखें।
दून के चांदमारी गांव निवासी बलिदानी राजेश गुरुंग 2-नागा रेजीमेंट में तैनात थे। कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के कब्जे वाली अपनी चौकियों को वापस पाने के लिए भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर चढ़ाई की। इसमें सबसे आगे 2-नागा रेजीमेंट की पहली टुकड़ी के आठ जवान थे, जिनमें राजेश भी शामिल थे।
कई हफ्तों तक चले इस आपरेशन में भारतीय सेना ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। इसी दौरान छह जुलाई 1999 को राजेश बलिदान हो गए। उनकी मां बसंती देवी की आंखें आज भी राजेश का जिक्र आते ही नम हो जाती हैं। वह कहती हैं, ''''भले ही राजेश हमारे बीच नहीं है, मगर उसकी यादें जिंदा हैं। उसकी वीरता की निशानी को परिवार हमेशा सहेज कर रखना चाहता है। इसीलिए हमने यह मंदिर बनाया है।''''
..वो आखिरी चिट्ठी
बलिदानी राजेश ने अपने आखिरी समय में घर वालों को एक चिट्ठी लिखी थी। कई साल बाद भी राजेश की ये चिट्ठी उनके होने का एहसास दिलाती है। उन्होंने लिखा था, ''''पिताजी जिस जगह पर हम अभी मौजूद हैं, वहां से वापस लौट पाएंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता।
हां! अगर मैं जिंदा बच गया तो दो या तीन दिन बाद आपको फोन आएगा और अगर नहीं बचा तो मेरी जगह किसी और का फोन आएगा। फिर माहौल को हल्का करते हुए अपने साथ मौजूद अन्य साथियों की बात करते हैं। शिकायती लहजे में कहते हैं कि आप लोग क्यों नहीं चिट्ठी लिखते ? अंत में लिखते हैं, ''''बस यह लड़ाई खत्म हो जाए, फिर देखना आपका बेटा आपका और देश का नाम रोशन कर वापस लौटेगा।''''
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