Kanwar Yatra 2022 : कितने प्रकार की होती है कांवड़ और क्या है इसका अर्थ? पढ़ें... यात्रा के कठोर नियम
Kanwar Yatra 2022 भगवान शिव के प्रसन्न करने का पर्व शुरू हो चुका है। इसके साथ ही उत्तराखंड केसरिया रंग में रंग गया है। कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करने की परंपरा कांवड़ यात्रा कहलाती है।
टीम जागरण, देहरादून : Kanwar Yatra 2022 : भगवान शिव के प्रसन्न करने का पर्व शुरू हो चुका है। इसके साथ ही उत्तराखंड केसरिया रंग में रंग गया है। हरिद्वार और ऋषिकेश में दूसरे प्रांतों के कांवड़ यात्री पहुंच रहे हैं। वहीं कांवड़ यात्रा के दौरान चार प्रकार से यात्रा की जाती है। इनके लिए कई नियम होते हैं और कांवड़ यात्रियों को कई नामों से जाना जाता है। कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करने की परंपरा कांवड़ यात्रा कहलाती है। वहीं आनंद रामायण में भी यह उल्लेख किया गया है कि भगवान राम ने भी कांवड़िया बनकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। आइए जानते हैं कांवड़ और कांवड़ यात्रियों को लेकर जानकारी...
कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था। विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
'कांवड़' (Kanwar) का अर्थ
- एक मीमांसा के अनुसार 'क' का अर्थ जीव और 'अ' का अर्थ विष्णु है, वर अर्थात जीव और सगुण परमात्मा का उत्तम धाम।
- इसी तरह 'कां' का अर्थ जल और आवर का अर्थ उसकी व्यवस्था कहा गया है।
- एक अन्य मान्यता के अनुसार भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर विष्णु ने गंगा से जब पृथ्वी पर जाने के लिए कहा तो वह अपने इष्ट के पैर छूती हुई पृथ्वी की ओर चल दीं। उनके वेग को धारण करने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाएं खोल दी और गंगा को सिर पर धारण किया। यहां से गंगा सगरपुत्रों के उद्धार के लिए बहने लगीं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ यात्री वही गंगाजल लेकर शिवालय तक जाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
- कांवड़ के एक अन्य अर्थ के अनुसार क अक्षर अग्नि का द्योतक है और आवर का अर्थ ठीक से वरण करना है।
कैसे बनती है कांवड़ (Kanwar)
- कांवड़ बनाने में बांस, फेविकोल, कपड़े, डमरू, फूल-माला, घुंघरू, मंदिर, लोहे का बारीक तार और मजबूत धागे का प्रयोग किया जाता है।
- हरिद्वार में कई जगह कांवड़ तैयार की जाती है।
- कांवड़ तैयार होने के बाद उसे फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजाया जाता है।
- इसके बाद गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है।
- धूप-दीप जलाकर बम भोले के जयकारों ओर भजनों के साथ कांवड़ यात्री जल भरने आते हैं और भगवान शिव को जला जढ़ाकर प्रसन्न होते हैं।
कांवड़ यात्रियों (Kanwariya) के लिए नियम
- बिना नहाए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते
- तेल, साबुन, कंघी का प्रयोग नहीं करते
- यात्रा में शामिल सभी कांवड़ यात्री एक-दूसरे को भोला, भोली कहकर बुलाते हैं
- ध्यान रखना होता है कि कांवड़ जमीन से न छूए
- डाक कांवड़ यात्रा में शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं
चार प्रकार से की जाती है यात्रा (Kanwar Yatra)
- सामान्य कांवड़ : यात्री जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। लेकिन उन्हें एक खास बात का ध्यान रखना होता है। आराम करने के दौरान कांवड़ जमीन से नहीं छूनी चाहिए। इस दौरान कांवड़ स्टैंड पर रखी जाती है।
- डाक कांवड़ : यात्री शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बगैर रुके लगातार चलते रहते हैं। वहीं इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं वर्जित होती हैं।
- खड़ी कांवड़ : भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता रहता है।
- दांडी कांवड़ : भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल यात्रा होती है, जिसमें कई दिन और कभी-कभी एक माह का समय तक लग जाता है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि जब समुद्रमंथन के बाद निकले विष पान कर भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया था। कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने और उसके प्रभाव को ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। इस जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवाना भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
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