बदरीनाथ के लिए रवाना हुई तेल कलश यात्रा, सादगी से संपन्न हुई तिलों का तेल निकालने की रस्म
नरेंन्द्रनगर राजमहल में तिल का तेल पिरोने के बाद गाड़ू घड़ा मंगलवार को बदरीनाथ धाम के लिए रवाना हो गया है।
देहरादून, जेएनएन। भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए मंगलवार को नरेंद्रनगर राजमहल में टिहरी सांसद महारानी राज्यलक्ष्मी शाह की अगुआई में सुहागिनों ने तिलों का तेल पिरोया। इस दौरान शारीरिक दूरी के नियमों का पूरी तरह पालन किया गया। शाम छह बजे गाडू घड़ा (तेल कलश) यात्रा बदरीनाथ धाम के लिए रवाना हुई। यात्रा का पहला पड़ाव चेला चेतराम धर्मशाला ऋषिकेश है।
मंगलवार सुबह करीब 10.30 बजे राजमहल में राजपुरोहित संपूर्णानंद जोशी, आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल व पंडित हेतराम थपलियाल ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना संपन्न कराई। इसके बाद सुहागिनों ने सादगीपूर्ण वातावरण में भगवान बदरी विशाल के अभिषेक को तिलों का तेल पिरोने की रस्म शुरू की। इस अवसर पर डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के अध्यक्ष विनोद डिमरी, महासचिव राजेंद्र डिमरी, सचिव दिनेश डिमरी, सदस्य टीकाराम डिमरी, रविग्राम उमटा मूल पंचायत के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी आदि मौजूद रहे।
शाम छह बजे श्री बदरीनाथ डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के पांच सदस्य तेल कलश को लेकर दो वाहनों से बदरीनाथ के लिए रवाना हुए। यात्रा बुधवार को ऋषिकेश से सीधे चमोली जिले के डिम्मर गांव स्थित श्री लक्ष्मी-नारायण मंदिर पहुंचेगी।
इसी तेल से होता है भगवान का अभिषेक
नरेंद्रनगर राजमहल में पिरोये गए तिलों के तेल से ही कपाट खुलने पर सबसे पहले भगवान बदरी विशाल का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद ही भगवान के स्नान-पूजन की क्रियाएं संपन्न होती हैं। परंपरा के अनुसार टिहरी रियासत (पूर्व में गढ़वाल रियासत) के राजाओं को बोलांदा बदरी (बोलने वाले बदरी) कहा जाता है। यही कारण है कि बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि एवं मुहूर्त राजाओं की कुंडली के हिसाब से निकाले जाते हैैं। नरेंद्रनगर राजमहल में पीत वस्त्रों में सुसज्जित राजपरिवार से जुड़ी सुहागिनें तिलों का तेल निकालती हैं। इस दौरान सुहागिनें व्रत धारण कर पीले रंग के कपड़े से मुंह व सिर ढककर रखती हैं। तेल निकालने के बाद उसे एक घड़े में भरा जाता है, जिसे गाडू घड़ा कहते हैं।
11 मई तक डिम्मर में रहेगा तेल कलश
देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि 11 मई तक तेल कलश डिम्मर गांव स्थित श्री लक्ष्मी-नारायण मंदिर में रहेगा। इसी दिन कलश की सांकेतिक पूजा-अर्चना होगी। 12 मई को कलश जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर पहुंचेगा। 13 मई को नृसिंह मंदिर से बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी की अगुआई में तेल कलश के साथ आदि शंकराचार्य की गद्दी योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर पहुंचेगी।
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14 मई को यात्रा बदरीनाथ धाम के लिए रवाना होगी। इसमें गरुडज़ी, देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान नारायण के बालसखा उद्धवजी की डोली भी शामिल होंगी। 15 मई को ब्रह्ममुहूर्त में 4.30 बजे बदरीनाथ धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे।
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