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    सिर्फ भूधंसाव नहीं बल्कि इस वजह से भी दरक रही हैं Joshimath की दीवारें, सर्वे रिपोर्ट में हैरान करने वाले तथ्य

    By Suman semwalEdited By: Anil Pandey
    Updated: Wed, 11 Jan 2023 08:25 AM (IST)

    सरकार को सौंपी गई विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि जोशीमठ क्षेत्र में तमाम भवनों के निर्माण में तकनीक से समझौता किया गया है। इसी तरह के भवनों में सर्वाधिक दरारें भी देखने को मिल रही हैं।

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    विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में जोशीमठ के भवनों के निर्माण की गुणवत्ता पर भी जताई गई चिंता । जागरण

    सुमन सेमवाल, देहरादूनः जोशीमठ में भवनों पर उभर रही मोटी-मोटी दरारों के पीछे का प्रमुख कारण बेशक भूधंसाव है, लेकिन स्थिति को गंभीर बनाने में भवनों की कमजोर गुणवत्ता का भी हाथ है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि यह आकलन किया है विज्ञानियों की टीम ने। सरकार को सौंपी गई विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि जोशीमठ क्षेत्र में तमाम भवनों के निर्माण में तकनीक से समझौता किया गया है। इसी तरह के भवनों में सर्वाधिक दरारें भी देखने को मिल रही हैं।

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    विशेषज्ञों की रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में भवनों की नींव में अपेक्षित सपोर्ट नहीं पाया गया। कुछ भवन ऐसे भी हैं, जिनमें नींव का अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। साथ ही नींव को रिटेनिग वाल का सपोर्ट भी नहीं दिया गया है। यह स्थित तब है, जब तमाम क्षेत्रों में पहाड़ी का ढाल 70 डिग्री तक है और अधिकतर ढाल 45 डिग्री से अधिक के हैं। रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने गांधीग्राम का जिक्र करते हुए कहा है कि यहां के भवन बड़ी संख्या में अपेक्षित तकनीक को नजरंदाज कर बनाए गए हैं।

    12 मीटर की ऊंचाई के मानक की अनदेखी

    उत्तराखंड आवास विभाग के भवन की ऊंचाई के मानकों की बात करें तो पर्वतीय क्षेत्रों में इसे अधिकतम 12 मीटर तय किया गया है। इसका मतलब यह है कि किसी भवन में अधिकतर चार मंजिल का निर्माण किया जा सकता है। हालांकि, इससे इतर जोशीमठ में पांच व छह मंजिला भवन भी खड़े किए गए हैं।

    नींव का आधार समान होना चाहिए

    देवभूमि आर्किटेक्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके सिंह के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्रों में जमीन ढालदार होती है। यहां भवन निर्माण के लिए पहला फाउंडेशन पिलर जिस गहराई में बनाया जाता है, उससे ऊपर का पिलर भी उसी गहराई में होना चाहिए। इसके लिए ऊपरी क्षेत्र के पिलर के लिए अधिक गहराई की जरूरत पड़ती है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो छत का भार पिलरों पर अलग-अलग पड़ेगा। तमाम निर्माण में इन बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है। इसके चलते भवन के अलग-अलग पिलर समान भर वहन नहीं कर पाएंगे। जिस पिलर पर अधिक भर होगा, वह भूधंसाव की स्थिति में सबसे पहले भवन को कमजोर बनाएगा।

    भूकंप के सर्वाधिक संवेदनशील जोन-पांच में है जोशीमठ

    जोशीमठ की जमीन न सिर्फ कमजोर है, बल्कि यह पूरा क्षेत्र भूकंप के सर्वाधिक संवेदनशील जोन पांच में स्थित है। साथ ही जोशीमठ के नीचे से हिमालय की उत्पत्ति के समय अस्तित्व में आई ऐतिहासिक फाल्ट लाइन मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) गुजर रही है। जिसका मतलब यह है कि पूरे क्षेत्र में भूगर्भीय हलचल भी जारी रहती है। विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में इसका उल्लेख सिस्मिक जोनेशन मैप (आइएस: 1893-1, 2016) के रूप में किया गया है। ऐसे में यहां भवन निर्माण में नियमों की अनदेखी बेहद खतरनाक साबित हो रही है।

    छह-सात मंजिला भवनों के लोड को उठा पाने में सक्षम नहीं है जोशीमठ

    रुड़की स्थित उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक और पूर्व विज्ञानी सीबीआरआइ डा. शांतनु सरकार का कहना है कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा एक शहर है। ऐसे में यहां की मिट्टी कमजोर है। यह छह-सात मंजिला भवनों के लोड को उठा पाने में सक्षम नहीं है। वहीं, पानी का रिसाव और सीवरेज सिस्टम भी ठीक नहीं है। भवनों का निर्माण मानकों के अनुरूप हुआ है या नहीं। इस संबंध में विस्तृत अध्ययन के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। 

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