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Jhanda Ji Mela: हर वर्ष झंडेजी के आरोहण के समय होता है 'चमत्‍कार', इस बार भी श्रद्धालुओं ने किए इसके दर्शन

Jhanda Ji Mela देहरादून के संस्थापक श्री गुरु राम राय जी महाराज का हुआ था जन्म सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हरराय के बड़े पुत्र श्री गुरु राम राय जी महाराज ने वर्ष 1676 में दून में डेरा डाला था।

By Nirmala BohraEdited By: Nirmala BohraPublished: Tue, 14 Mar 2023 03:50 PM (IST)Updated: Tue, 14 Mar 2023 03:50 PM (IST)
Jhanda Ji Mela: हर वर्ष झंडेजी के आरोहण के समय होता है 'चमत्‍कार', इस बार भी श्रद्धालुओं ने किए इसके दर्शन
Jhanda Ji Mela: झंडेजी की परिक्रमा के लिए हर वर्ष पहुंचता है बाज

टीम जागरण, देहरादून: Jhanda Ji Mela: इन दिनों देहरादून में ऐतिहासिक झंडेजी मेला चल रहा है। जिसमें देश विदेश से श्रद्धालु दरबार साहिब में मत्‍था टेकने पहुंच रहे हैं। देहरादून शहर की स्‍थापना से इस मेले का गहरा संबंध है। वहीं मेले के पहले दिन झंडेजी के आरोहण के समय आसमान में चमत्‍कार होता दिखाई देता है।

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देहरादून के संस्थापक श्री गुरु राम राय जी महाराज का हुआ था जन्म सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हरराय के बड़े पुत्र श्री गुरु राम राय जी महाराज ने वर्ष 1676 में दून में डेरा डाला था। उन्हें ही देहरादून का संस्थापक माना जाता है।

होली के पांचवें दिन हुआ था श्री गुरु राम राय जी महाराज का जन्‍म

श्री गुरु राम राय जी महाराज का जन्म वर्ष 1646 में पंजाब के होशियारपुर जिले के कीरतपुर में होली के पांचवें दिन (चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को) हुआ था। इसीलिए दरबार साहिब में हर साल इस दिन झंडेजी के आरोहण के साथ मेला लगता है। श्री गुरु राम राय ने ही लोक कल्याण के लिए यहां विशाल ध्वज (झंडेजी) को स्थापित किया था।

झंडेजी की परिक्रमा के लिए हर वर्ष पहुंचता है बाज

इस दौरान हर वर्ष चमत्‍कार देखने को मिलता है। एक बाज आरोहण के बाद झंडेजी की परिक्रमा के लिए पहुंचता है। इस वर्ष भी वहां मौजूद हजारों श्रद्धालुओं ने इस चमत्‍कार को अपनी आंखों से देखा। श्रद्धालुओं ने हाथ जोड़कर गुरु महाराज के जयकारे लगाए।

झंडेजी के आरोहण के दौरान बाज की इस उपस्थिति को श्री गुरु राम राय महाराज की सूक्ष्म उपस्थिति माना जाता है। मेले आए श्रद्धालुओं का मानना है कि हर वर्ष बाज का आना एक चमत्‍कार की तरह है। उनका मानना है कि इस बाज के रूप में गुरुजी उन्‍हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

शुभ व आशीष का प्रतीक है दर्शनी गिलाफ

श्री झंडा मेला आयोजन समिति के व्यवस्थापक केसी जुयाल के अनुसार, झंडेजी में तीन तरह के गिलाफ के आवरण में सबसे भीतर 41 सादे गिलाफ, मध्य भाग में 21 शनील के गिलाफ, जबकि सबसे बाहरी भाग में एक दर्शनी गिलाफ चढ़ाया जाता है। इसमें सबसे बाहरी आवरण का विशेष महत्व इसलिए भी है कि जो भी श्रद्धालु आते हैं, सबसे बाहरी आवरण पर ही नजर पड़ती है।

2125 तक के लिए दर्शनी गिलाफ की बुकिंग

दर्शनी गिलाफ का अभिप्राय दर्शन से है, जो सबसे बाहरी आवरण होता है। यह सदियों से चला आ रहा है। दर्शनी गिलाफ ध्वजदंड पर सबसे ज्यादा खूबसूरत लगता है। इसे शुभ व आशीष का प्रतीक माना जाता है। मनोकामना पूर्ण के लिए लोग दर्शनी गिलाफ की बुकिंग कराते हैं। वर्ष 2125 तक के लिए दर्शनी गिलाफ की बुकिंग हो चुकी है।


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