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    Jagran Samvadi Dehradun: साहित्य, कला और संस्कृति का अनूठा संगम, संवादधर्मी समाज को नई दृष्टि देकर उत्सव ने ली विदाई

    Updated: Sun, 29 Jun 2025 08:49 PM (IST)

    देहरादून में जागरण संवाद कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें साहित्य कला और संस्कृति पर चर्चा की गई। राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कार्यक्रम की सराहना की। विभिन्न सत्रों में लेखकों और कलाकारों ने अपने विचार साझा किए। अमोल की अमानत पुस्तक का विमोचन हुआ और हिंदी में रचनात्मकता के संकट पर भी बात हुई। वक्ताओं ने आपातकाल और संविधान पर भी अपने विचार रखे।

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    फिल्म अभिनेता व निर्देशक अमोल पालेकर मध्य। साथ में उनकी पत्नी संध्या गोखले व संचालनकर्ता यतीन्द्र मिश्र। जागरण

    जागरण संवाददाता, देहरादून। इंद्रधनुषी आभा बिखेरते हुए अभिव्यक्ति के उत्सव ''''जागरण संवादी'''' ने रविवार को देहरादून से विदाई ली। ''''हिंदी हैं अभियान'''' के तहत आयोजित इस दो दिवसीय उत्सव के अंतिम दिन सिनेमा, संगीत, लोक संस्कृति, राजनीति आदि विषयों पर विचारों की ऐसी गंगा बही श्रोता उसमें भावविभोर हो गोते लगाते नजर आए।

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    समापन पर बतौर मुख्य अतिथि मौजूद राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने अभिव्यक्ति के उत्सव की सराहना करते हुए कहा कि संवादी विचारों का मंथन ही नहीं, संवेदनाओं की साझेदारी है। संवादी साहित्य, संस्कृति और कला का अनूठा संगम और आत्माओं के बीच का संवाद बन चुका है। उन्होंने हिंदी के ध्वजवाहक के रूप में दैनिक जागरण के इस प्रयास को भारतीयता और राष्ट्रीयता का प्रतिबिंब बताया।

    साथ ही संवादी के मंथन को सृजन व समाधान की ओर ले जाने का आह्वान किया। साथ ही इस आयोजन के लिए जागरण परिवार को शुभकामनाएं दी। इस मौके पर राज्यपाल ने ''''हिंदी हैं हम'''' अभियान के तहत हिंदी शब्दकोष में नई जोड़ी जा रही शब्दमाला पर तैयार पुस्तक ''''शब्दार्थ'''' का विमोचन भी किया।

    पहला सत्र

    देहरादून के मसूरी रोड स्थित फेयरफील्ड बाय मैरियट होटल में आयोजित ''''जागरण संवादी'''' के अंतिम दिन पहले सत्र की शुरुआत अमोल की अमानत से हुई। ''''अमानत'''' अभिनेता अमोल पालेकर की आत्मकथा का हिंदी रूपांतरण है, जिसे अमोल व उनकी पत्नी संध्या गोखले ने लिखा है। यह कोई सामान्य आत्मकथा नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से पाठक अमोल की हर खूबी-हर खामी से परिचित होता है।

    उनकी रील और रियल लाइफ में क्या समानता और क्या भिन्नता है, यह जानने का अवसर यह पुस्तक प्रदान करती है। इस पर अमोल व संध्या से संवाद किया है सिनेमा एवं संगीत अध्येता यतींद्र मिश्र ने। पुस्तक में अमोल व संध्या ने आत्मकथात्मक शैली में अपने जीवन के विविध पहलुओं को साझाा किया है। पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें अमोल की 23 फिल्मों के क्यूआर कोड दिए गए हैं, ताकि उनके प्रशंसक व सिने प्रेमी उन्हें स्कैन कर आसानी से फिल्मों को देख सकें।

    दूसरा सत्र

    दूसरे सत्र में ''''हिंदी में रचनात्मकता का संकट'''' विषय पर चर्चा हुई, जिसमें लेखिका एवं कवयित्री गगन गिल, उपन्यासकार एवं पटकथा लेखिका अनु सिंह चौधरी, कथाकार ममता सिंह व लेखिका दीपाली मलिक से लेखक नवीन चौधरी ने संवाद किया। सार यही था कि हिंदी साहित्य का बीता कल किताबों वाला ज्यादा था तो आज इंटरनेट मीडिया व शार्टकट का अधिक है। वहीं साहित्य आज इंटरनेट मीडिया में मौजूद है। हां, यह बात विमर्श व चिंतन की जरूर है कि नई पीढ़ी उस साहित्य के प्रति कितनी समर्पित है। साहित्य के अलावा रेडियो व सिनेमा में भी आमूलचूल परिवर्तन आ गया है। ऐसे में हिंदी की रचनात्मकता को बनाए रखने के लिए जरूरी है पाठक-श्रोता-दर्शकों की जरूरतों को समझने की।

    तीसरा सत्र

    आपतकाल पर केंद्रित तीसरे सत्र का विषय था ''''दमन के 50 वर्ष'''' और चर्चा के लिए मंच पर मौजूद थे कवि एवं गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र, दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी व स्तंभकार अभिजीत अय्यर मित्रा। उनसे संवाद किया दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने। सार यही था कि आपातकाल विशुद्ध रूप से राजनीति का विषय है, इसलिए इसे विस्तृत दायरे में देख जाने की जरूरत है और इसके प्रत्येक पहलू पर गहनता से शोध किया जाना चाहिए।

    आपातकाल में संविधान की हत्या कर किस तरह लोकतंत्र का गला घोंटने का प्रयास किया गया। हालांकि, आपातकाल का एक पहलू यह भी है कि इसके बाद लोकतांत्रिक कर्तव्य की दृष्टि से अधिक परिपक्व हुई।

    चौथा सत्र

    चौथे सत्र में मंच पर थे लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी और उनसे ''''माटी की महक'''' विषय पर संवाद किया लोक सेवक एवं साहित्यकार ललित मोहन रयाल ने। उनके संवाद और नेगी के जवाबों का अलग ही आकर्षण है। उनके हर प्रश्न का उत्तर नेगी के गीतों में है। सचमुच नेगी के गीतों में माटी की महक गहरे तक समाई हुई है।

    पहाड़ का शायद ही ऐसा कोई रैबासी होगा, जिसकी हर धड़कन को उनके गीतों में महसूस न किया जाता हो। नेगी ने पहाड़ की लोकभाषा, संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज और सरोकारों को न केवल स्पर्श किया, बल्कि विदेशी धरती पर पली-बढ़ी पीढ़ियों को अपनी जड़ों से भी जोड़े रखा। उनके गीतों में पहाड़ का जो बिंब उभरकर आता है, वह अद्भुत है। इसीलिए इन गीतों की सुमधुर लहरियां जब कानों में पड़ती हैं तो तन-मन आल्हादित होकर झूम उठता है। मन का मयूर थिरकने लगता है।

    पांचवां सत्र

    पांचवें सत्र में उपन्यासकार चेतन भगत से ''''लिखते-लिखते प्यार हो जाए'''' विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर गीतांजलि काला ने संवाद किया। चर्चा का सार यह है कि लेखन में सकारात्मक सोच के साथ जीना जरूरी है। चेतन कहते हैं कि उनका शुरुआती साहित्य दोस्ती और प्यार की कहानियों पर केंद्रित था। लेकिन समय के साथ इसकी विषयवस्तु बदली और अब वह परिपक्व लोगों की प्रेम कहानी पर अपने लेखन को आगे बढ़ा रहे हैं। वह चाहते हैं कि इससे लोगों के जीवन में खुशी आए और वे हमेशा मुस्कराते रहें।

    छठवां सत्र

    छठे सत्र में राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला के बीच संविधान पर चर्चा के दौरान तीखी नोकझोंक हुई। शहजाद ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में सेक्यूलर, समाजवाद व अखंडता शब्द जोड़े जाने को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़े किए। वहीं, तहसीन ने कहा कि वर्तमान सरकार ने आपातकाल से सबक नहीं लिया और मनमाने ढंग से निर्णय थोपे जा रहे हैं। इसमें दोनों के साथ संवाद किया प्रशांत कश्यप में। इसके साथ ही संवादी दून से विदा हुआ।