Jagran Film Festival: फिल्म 'पुतुल' की टीम ने दर्शकों से किया संवाद, बोले- 'बड़ी बिल्डिंग बनाने से नहीं बनता घर'
जागरण फिल्म फेस्टिवल में फिल्म 'पुतुल' की टीम ने दर्शकों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि घर केवल इमारत से नहीं, संस्कारों से बनता है, जिसके लिए प्यार और मेलजोल जरूरी है। फिल्मकारों ने अपने अनुभव साझा किए और दर्शकों के सवालों के जवाब दिए। उन्होंने उत्तराखंड में फिल्म शूटिंग के अवसरों की सराहना की।

जागरण फिल्म फेस्टिवल के पहले दिन फिल्म ‘पुतुल’ के निर्माता-निर्देशक और कलाकारों ने किया दर्शकों से संवाद। जागरण
सुमित थपलियाल, जागरण देहरादून। जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ) में हिंदी फीचर फिल्म 'पुतुल' की टीम ने दर्शकों से संवाद के दौरान फिल्म के शुरू से लेकर आखिर तक के सफर और अपने अनुभवों को साझा किया। फिल्म के कथानक को वर्तमान परिस्थितियों से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि घर बड़ी बिल्डिंग बनाने से नहीं, बल्कि संस्कारों से बनता हैं। इसके लिए प्यार और मेलजोल का होना बेहद जरूरी है।
राजपुर रोड स्थित सिल्वर सिटी सिनेमाज में फिल्म ‘पुतुल’ के प्रदर्शन के बाद दर्शक फिल्म के निर्माता शरद मित्तल, निर्देशक राधेश्याम पिपलवा, अभिनेता रजत कपूर व अभिनेत्री आहना कुमरा से मिलने को लेकर उत्साहित नजर आए। फिल्मकारों रूबरू होते ही दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका अभिवादन किया। संवाद में रंगकर्मी अनुराग वर्मा ने प्रस्तोता की भूमिका निभाई।
दर्शकों ने प्रश्न किया कि फिल्म में 'थैंक्यू' जैसे शब्द लाना और संस्कार दिखाना किसका आइडिया था। इस पर फिल्म निर्देशक राधेश्याम पिपलवा ने बताया आज की पीढ़ी को थैंकलेस बोल देना वह स्वीकार नहीं कर सकते। बच्चे अगर संस्कारवान नहीं बन रहे तो इसके लिए भी कहीं न कहीं बड़े ही जिम्मेदार हैं। 30 साल की उम्र में दो लोग कपल बन जाते हैं। इसके बाद बड़ा मकान ले लेते हैं। लेकिन, बड़ा मकान लेने और बिल्डिंग खड़ी कर लेने भर से घर नहीं बनता। घर तो संस्कारों से बनता है। घर चलाने के लिए प्यार और आपसी मेलजोल जरूरी भी है।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि व्यावसायिकता में आने से पहले वह दुनिया के लिए लिखते थे। मुंबई में लगता है कि किसी देश में हैं, लेकिन इससे बाहर देहरादून, लखनऊ आकर देखते हैं कि बहुत कुछ अभी जिंदा है। निर्देशक पिपलवा ने बताया कि उनकी फिल्म 'चिड़ी बल्ला' भी जल्द पर्दे पर आने वाली है। यह हमारे इर्द-गिर्द घटने वाली परिस्थितियों से उपजी कहानी है। वह कहते हैं, आर्ट व सिनेमा की कोई जगह नहीं होती। सिनेमा तो जहां मन लगे, वहीं शुरू हो जाता है। अब तक उन्होंनं आठ भाषाओं में काम किया है और मौका मिला तो दुनिया की सभी भाषाओं में काम करना चाहेंगे। फिल्म में टीम के साथ काम करने के फायदे के बारे में उन्होंने बताया कि फिल्म ‘पुतुल’ ऐसी बच्ची की कहानी है, जो घर से गुम होकर एक पीड़ित महिला के घर पहुंच जाती है। यह दृश्य बिना अनुभवी टीम के नहीं फिल्माया जा सकता था।
उत्तराखंड में लगातार बड़ी फिल्मों की शूटिंग हो रही है, उन्हें लेकर आपका क्या कहना है? इस पर निर्देशक पिपलवा ने बताया कि हमने 20 से ज्यादा राज्यों में शूटिंग की। बहुत अच्छा सहयोग मिला। फिल्म फ्रेंडली का उत्तराखंड को अवार्ड मिलना बहुत अच्छा है। यह होना भी चाहिए था। मुझे लगता है जो समाज में घटित होता है, वही फिल्मों में भी दिखाई देता है और लोग इसे स्वीकारते भी हैं। अभिनेत्री आहना कुमरा ने अभिनेता रजत कपूर के साथ काम करने के अनुभव साझा करते हुए कहा, जब भी हम किसी स्क्रीनिंग के लिए आते हैं, लोग हमारे साथ जुड़ते चले जाते हैं और फिल्म को लेकर उत्सुकता रहती है।
मैंने सोचा था कि रजत के साथ नाटक करूंगी। शायद मेरी यह ख्वाहिश कुछ साल में पूरी हो जाए। मैंने दूसरी बार उनके साथ काम किया, बेहतरीन अनुभव रहा। मै जब 16 या 17 साल की थी, तब मैंने पहली बार उन्हें देखा था। तब फिल्म 'दिल चाहता' आई थी। मैं उन्हें आज तक जितना भी जान पाई हूं, नाटकों के माध्यम से जान पाई। मुझे इनके साथ दो बार कार्य करने का मौका मिला। जो रजत सीन करते होते हैं मै बस इन्हीं देखती रहती हूं। एक सन इन लो और फादर इन लो का रिलेशनशिप में उभरकर फिल्म में आया है। किसी का तलाक होता है तो उसमें सबसे पहले माता पिता प्रभावित होते हैं। रजत ने जिस तरह इस सोच के साथ कार्य किया वह अलग होता है।
अपने अनुभव साझा करते हुए आहना ने बताया कि मेरी शुरुआत मुंबई में पृथ्वी थियेटर से हुई। 14 साल की उम्र में मैंने पहला नाटक किया। इसके बाद कालेज में प्रतिभाग किया। फिल्म स्कूल ज्वाइन करने के बाद यहां नसीर सर, आकाश खुराना का साथ मिला। इन सभी में तब कामन था थियेटर और मैंने आज भी थियेटर करना नहीं छोड़ा। 13 नवंबर से हम दिल्ली थियेटर फेस्टिवल में जा रहे हैं, वहां भी हमारा नाटक होंगा। मैंने हाल ही में रियलिटी शो भी किया। जब तक एक माध्यम में कुछ काम न करूं, तब तक मैं उसे जज नहीं करती, इसलिए मुझे हर माध्यम से काम करने का बड़ा शौक है। अनुराग कश्यप के शो ‘युद्ध’ वर्ष 2012 में मुंबई में शूट किया गया। उन दिनों मै आरामनगर जा रही थी। उसी दौरान अनुराग कश्यप मिले और बोले, बच्चन की बेटी का रोल करोगी। मैंने तुम्हारा नाटक देखा था। इसके बाद आडिशन हुआ और फिर आगे सभी बेहतर होता गया। एक काम आपको दूसरा काम दे देता है।
फिल्म के अभिनेता रजत कपूर ने कहा कि हर क्षेत्र में जो आप करते हैं, वो समाज को प्रभावित करता ही है। हर सांस के साथ आप दुनिया बदल रहे हैं। एक-दो नहीं, बल्कि आठ बिलियन लोग दुनिया बदल रहे हैं और यही वजह है कि दुनिया में कुछ अलग हो रहा है। जो आज कर रहे हैं, हो सकता है उसका नतीजा 20 साल बाद दिखे, लेकिन बदलता जरूर दिखेगा। बताया कि जब मैने पहली बार फर्स्ट टाइम फिल्ममेकर के साथ काम किया, तब मन में रहता है कि नया है तो कुछ अलग होगा। कभी-कभी होता है कि रोल अच्छा है और डायरेक्टर कमाल का है तो स्क्रिप्ट बेहतर बन जाती है। वहीं, निर्माता शरद मित्तल ने बताया कि उन्होंने फिल्म आर्टिस्ट के रूप में बहुत कुछ सीखा।
कलाकार वही, जो पूरे मनोयोग के साथ करे कार्य
सत्र के दौरान शेफाली ने प्रश्न किया कि आज के दौर में नए कलाकार मानवीयता के साथ अपने आपको को कैसे खड़ा करें। उत्तर में रजत कपूर ने कहा कि पहले तो आप जिस क्षेत्र में कार्य में कर रहे हैं, उससे पूरी तरह से मन से जुड़ जाएं। दूसरा अपने कार्य में दयालुता जरूर रखें। दर्शक विरेंद्र सिंह रावत ने फिल्म पुतुल में रजत कपूर के नाना के किरदार को रोल माडल बताया। अभिनेता सतीश शर्मा ने फिल्म पुतुल में देहरादून के परिदृश्य पर दिखाई गई स्ट्राबेरी की खेती की सराहना की।
सिल्वर सिटी के निदेशक सुयश अग्रवाल ने निर्देशक और कलाकारों से फिल्म पुतुल के आइडिया को लेकर प्रश्न किया। इस पर निर्देशक राधेश्याम पिपलवा ने कहा कि फिल्म का आइडिया घर-घर की समस्या से आया है। काफी विचार-विमर्श और शोध के बाद इसे लिया गया। नवीन कंडवाल ने रजत कपूर से उनके लंबे अभिनय के बारे में प्रश्न किया। प्रत्युत्तर में रजत कपूर ने कहा कि अभिनय ही है, जो इतने लंबे समय तक हो गया।

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