IMA POP: आर्मी कैडेट कॉलेज के 48 कैडेट ग्रेजुएट, भारतीय सैन्य अकादमी की मुख्यधारा में हुए शामिल
आर्मी कैडेट कॉलेज के 48 कैडेट ग्रेजुएट होकर भारतीय सैन्य अकादमी की मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। अकादमी के कमांडेंट ले. जनरल नागेंद्र सिंह ने कैडेट को दीक्षित किया। अब ये कैडेट आइएमए में एक साल का प्रशिक्षण लेकर बतौर अधिकारी सेना में शामिल होंगे। कमांडेंट ने कहा कि एसीसी ने देश को बड़ी संख्या में जांबाज अफसर दिए हैं।

जागरण संंवाददाता, देहरादून। आर्मी कैडेट कालेज (एसीसी) के 48 कैडेट ग्रेजुएट होकर भारतीय सैन्य अकादमी की मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। शुक्रवार को अकादमी के चेटवुड सभागार में आयोजित एसीसी के 125 वें दीक्षा समारोह में इन कैडेट को उपाधि प्रदान की गई। अकादमी के कमांडेंट ले. जनरल नागेंद्र सिंह ने कैडेट को दीक्षित किया।
आइएमए में अब एक साल का प्रशिक्षण लेकर ये कैडेट बतौर अधिकारी सेना में शामिल होंगे। उपाधि पाने वालों में 18 कैडेट विज्ञान और 30 कैडेट कला वर्ग के हैं। कमांडेंट ले. जनरल नागेंद्र सिंह ने अफसर बनने की राह पर अग्रसर इन कैडेट के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
उन्होंने कहा कि एसीसी ने देश को बड़ी संख्या में जांबाज अफसर दिए हैं। कहा कि उपाधि पाने वाले कैडेट की जिंदगी का यह एक अहम पड़ाव है। देश की आन, बान और शान बनाए रखने की जिम्मेदारी अब उनके हाथों में होगी।
उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले कैडेट को बधाई देते हुए कहा कि वह अपने प्रदर्शन में निरंतरता बनाए रखें।कमांडेंट ने कहा कि चरित्र, आत्म-अनुशासन, साहस, प्रेरणा, सकारात्मक दृष्टिकोण और पेशेवर योग्यता एक सफल सैन्य अधिकारी के स्तंभ हैं। इससे पहले एसीसी के प्रधानाचार्य डा. नवीन कुमार ने कालेज की प्रगति रिपोर्ट पेश की।
इन्हें मिला पुरस्कार
- चीफ आफ आर्मी स्टाफ मेडल
- स्वर्ण- प्रवीण कुमार
- रजत- अमित कुंतल
- कांस्य-अमनदीप
- कमांडेंट सिल्वर मेडल
- सर्विस- अमित कुंतल
- कला–अमित कुंतल
- विज्ञान-प्रवीण कुमार
- कमांडेंट बैनर
- कारगिल कंपनी
सेना कैडेट कालेज विंग
- स्वतंत्रता से पूर्व सेना के भारतीयकरण की प्रकिया के क्रम में 1929 में नौगांव, मध्य प्रदेश में किचनर कालेज की स्थापना की गई। इसमें चयनित सैनिकों को कमीशन अफसर बनने का अवसर देकर उनकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास किया गया। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने तक इस कालेज को बन्द कर दिया गया।
- स्वतंत्रता के उपरान्त, सेना कैडेट कालेज (एसीसी) की स्थापना 16 मई 1960 को नौगांव में की गई। यह कालेज भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) के पोषक संस्थान के रूप में चयनित सैनिकों को कमीशन पूर्व का प्रशिक्षण प्रदान करता था। कॉलेज के पाठ्यक्रम में शैक्षणिक विषयों के साथ साथ सैन्य प्रशिक्षण को भी एकीकृत किया गया।
- नौगांव, रेलमार्ग से दूर होने के कारण सैनिकों को गहन प्रशिक्षण और सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान नहीं कर पा रहा था। इसके साथ ही उपयुक्त शैक्षणिक वातावरण की भी कमी थी। यह स्थान प्रगतिशील नजरिया बनाने के अनुकूल नहीं था जबकि स्वतन्त्रता के पश्चात इसकी आवश्यकता बढ़ गई थी। इसीलिए जून 1964 में यह कालेज पुणे स्थानांतरित कर दिया गया और सेना चयन बोर्ड में साक्षात्कार की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई
- 1971 में सरकार ने स्थायी कमीशन के लिए अनिवार्य योग्यता को बढ़ाकर स्नातक कर दिया। आईएमए में सीधे प्रवेश स्तर की योग्यता को स्नातक डिग्री तक बढ़ाने के परिणामस्वरूप एसीसी में प्रवेश की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को बढ़ाकर हायर सेकेंडरी कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के साथ ही एसीसी को भी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया। इसके फलस्वरूप कालेज के शैक्षणिक प्रशिक्षण की विषय वस्तु प्रकृति और स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आया। इस प्रकार एसीसी पूर्णतः डिग्री कॉलेज बन गया जिसमें योग्य शिक्षक और सैन्य अनुदेशक शामिल हो गए। तदानुसार 30 दिसम्बर 1974 को एसीसी का 19 कैडेटों वाला चौबीसवां कोर्स कला स्नातक उपाधि पाकर पास आउट होने वाला पहला बैच बना। जुलाई 1975 में कालेज को विज्ञान में स्नातक डिग्री प्रदान करने की मान्यता भी दे दी गई।
- इसके बाद यह कालेज जुलाई 1977 में देहरादून स्थानान्तरित हो गया तथा आईएमए के साथ स्थित होने के कारण इसे आर्मी कैडेट कालेज विंग (एसीसी विंग) के नाम से पुनः नामित किया गया। जुलाई 2006 में एसीसी विंग को आईएमए में उसकी पाँचवी बटालियन (सियाचिन बटालियन) के रूप में शामिल किया गया और इस प्रकार एसीसी को पूर्णतः आईएमए के साथ एकीकृत कर दिया गया।
- सेना की सम्मान बहादुरी, निस्वार्थ सेवा और बलिदान की पुरानी परम्पराओं को निभाते हुए एसीसी के पूर्व छात्रों ने मातृभूमि के सम्मान और सुरक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए। इस प्रकार उन्होंने युद्ध और शान्ति दोनों समय में बहादुरी के सर्वोच्च पुरस्कार जीते।
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