Twin Tower से खतरनाक हैं देहरादून के अवैध निर्माण, हाईकोर्ट के आदेश से लेकर भूविज्ञानियों की चेतावनी की भी परवाह नहीं
Twin Tower Blast दून घाटी न सिर्फ भूकंप के अति संवेदनशील और संवेदनशील जोन में है बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी संवेदनशील है। यहां तमाम निर्माण नदी-ना ...और पढ़ें

सुमन सेमवाल, देहरादून : Twin Tower Blast : नोएडा में हाई सिस्मिक जोन (भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र) में ट्विन टावर को ढहाए जाने के बाद वहां के फ्लैट खरीदार राहत महसूस कर रहे होंगे, क्योंकि उनकी सुरक्षा की चिंता का समाधान हो गया है।
लेकिन देहरादून में भी इसी तरह के हालाता हैं। बल्कि इस दिशा में हमारी मशीनरी सतर्क भी नहीं दिख रही। दून घाटी न सिर्फ भूकंप के अति संवेदनशील और संवेदनशील जोन में है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी संवेदनशील है। यहां तमाम निर्माण नदी-नालों की भूमि पर किए गए हैं। नदियों के कैचमेंट (जलग्रहण क्षेत्र) में निर्माण का हश्र सरखेत और भैंसवाड़ा क्षेत्र में बादल फटने की घटना के बाद सामने भी आ चुका है।
नाक के नीचे खड़े कर दिए गए तमाम बहुमंजिला निर्माण
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नदी, तालाब व जलाशयों से संबंधित भूमि की श्रेणी में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर कैसे दून घाटी में नदी-नालों की भूमि पर मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए), जिला प्रशासन व आवास विभाग की नाक के नीचे तमाम बहुमंजिला निर्माण खड़े कर दिए गए।
तमाम फुटहिल क्षेत्रों में पहाड़ों को समतल कर निर्माण
हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि दूनघाटी में पहाड़ी का कटान कर निर्माण नहीं किए जा सकते। इसके बाद भी बिधौली, मसूरी रोड, मालदेवता क्षेत्र समेत जिले के तमाम फुटहिल क्षेत्रों में पहाड़ों को समतल कर निर्माण किए जा रहे हैं।
इसके अलावा संवेदनशील दूनघाटी में मेन बाउंड्री थ्रस्ट व मेन फ्रंटल थ्रस्ट जैसे ऐतिहासिक फाल्ट समेत तमाम बड़े फाल्ट हैं। यहां की जमीन की संवेदनशीलता को देखते हुए वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान समेत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण जैसी एजेंसी समय-समय पर संस्तुति जारी करती रही हैं। फिर भी यहां निर्माण को लेकर अपेक्षित सतर्कता नहीं दिखाई जाती।
अवैध निर्माण के लंबित प्रकरणों की संख्या 28 हजार पार
दून में किए जा रहे अवैध निर्माण में यही प्रवृत्ति हावी रहती है कि किसी तरह सेटिंग करके अवैध निर्माण कर लिया जाए और बाद में कंपाउंडिंग के लिए नक्शा डाल दिया जाए।
यही वजह है कि देहरादून में अवैध निर्माण के लंबित प्रकरणों की संख्या 28 हजार पार कर गई है। जिनमें कंपाउंडिंग संभव होती हैं, उन्हें निस्तारित कर दिया जाता है। वहीं, कंपाउंडिंग सीमा से बाहर वाले निर्माण की फाइलों को दबाने के लिए भी नित नए जुगाड़ लगाए जाते हैं।
एमडीडीए व जिला प्रशासन के अधिकारी चुप
शिमला बाईपास रोड पर नदी श्रेणी की कई बीघा भूमि को कब्जे में लेकर खड़ी की गई ग्रुप हाउसिंग परियोजना पर एमडीडीए व जिला प्रशासन के अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। यह स्थिति तब है, जब नदी क्षेत्रों की रक्षा के लिए हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिए हैं। वहीं, नदी क्षेत्र की भूमि को महफूज रखने के लिए जिला प्रशासन समेत सिंचाई विभाग व एमडीडीए के पास कई अधिकार हैं।
कार्यभार संभालने के बाद मैंने अवैध निर्माण के विरुद्ध अभियान शुरू कराया है। अवैध प्लाटिंग से लेकर अवैध निर्माण पर निरंतर कार्रवाई की जा रही है। नदी क्षेत्रों व अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में किए जा रहे निर्माण पर सर्वे कराकर कार्रवाई की जाएगी।
- बीके संत, उपाध्यक्ष एमडीडीए

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