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स्वतंत्रता के संघर्ष की गवाह है सौ साल पुरानी पानी की टंकी

देहरादून जिले के थानो गांव में स्थित सौ साल पुरानी पानी की टंकी गुमनाम आंदोलनकारियों के संघर्ष की गवाह है ।

By BhanuEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 10:20 AM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 09:00 AM (IST)
स्वतंत्रता के संघर्ष की गवाह है सौ साल पुरानी पानी की टंकी
स्वतंत्रता के संघर्ष की गवाह है सौ साल पुरानी पानी की टंकी

डोईवाला, [हरीश कोठारी]: स्वतंत्रता आंदोलन में देशभर से लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इनमें कई ऐसे आंदोलनकारी भी शामिल थे, जिन्होंने अपने गांव और शहरों में स्वतंत्रता की अलख तो जगाई, लेकिन उनका कहीं जिक्र नहीं होता। कुछ ऐसे ही गुमनाम आंदोलनकारियों के संघर्ष की गवाह है देहरादून जिले के थानो गांव में स्थित सौ साल पुरानी पानी की टंकी। 

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन से प्रभावित होकर इसी टंकी के पास क्षेत्र के सैकड़ों लोग अनशन पर बैठ गए थे। उन पर अंग्रेजों की लाठियों का भी कोई असर नहीं हुआ था। आज यह टंकी भले ही जीर्ण-शीर्ण हालत में हो, लेकिन क्षेत्र के युवाओं में आज भी जोश भरने का काम करती है।

थानो न्याय पंचायत की ग्राम पंचायत कंडोगल स्थित कन्या कर्मोत्तर विद्यालय परिसर में खड़ी पानी की यह टंकी आज भी स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्षों की कहानी बयां कर रही है। वर्ष 1942 में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान देशभर में संघर्ष की ज्वाला भड़क चुकी थी, जिसकी चिंगारी से थानो भी अछूता नहीं रहा। 

तब देशभर में चल रहे आंदोलन से प्रेरित होकर क्षेत्र के लोगों ने भी संघर्ष की ठानी और कई गांवों के लोग इसी पानी की टंकी के पास एकत्र होकर आंदोलन की रणनीति बनाने लगे। वर्ष 1945 के दौरान क्षेत्र के युवा पद्म ङ्क्षसह सोलंकी, वैद्य सेनपाल ङ्क्षसह भिडोला, गौरीश वर्मा, बुद्धदेव, शेरा के पंचम सिंह कृषाली, बमेत के पद्म सिंह रावत, बड़ासी के हरि सिंह गोदी, भूरिया सिंह व विशन सिंह और घंडोल के सूरत सिंह चौहान के नेतृत्व में सैकड़ों आंदोलनकारी इसी पानी की टंकी के पास अनशन पर बैठ गए।

अंग्रेजों ने जब यह देखा तो ग्रामीणों पर लाठीचार्ज कर उन्हें जेल में ठूंस दिया गया। इस घटना के करीब दो साल बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद भारत की सुबह हुई। लेकिन, देशभर के अनगिनत आजादी के दीवानों की तरह थानो के स्वतंत्रता सेनानी भी गुमनामी के अंधेरे में डूब गए। हालांकि, क्षेत्र के लोगों का मानना है कि उन तमाम लोगों का संघर्ष इस पानी की टंकी के रूप में जिंदा है। 

स्मारक बनाने की मांग

थानो निवासी समाजसेवी रमेश सोलंकी बताते हैं कि गांव के बुजुर्ग उस दौर के किस्से सुनाते थे। जिनसे लोगों का सिर आज भी गर्व से ऊंचा उठ जाता है। 

वहीं, आंदोलनकारियों के परिजन राजपाल सिंह सोलंकी, आनंद चौहान, तेजवीर भिडोला और विक्रम ङ्क्षसह कृषाली सरकार से पानी की टंकी को स्मारक बनाने की मांग कर रहे हैं। ताकि, आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वजों के इस बलिदान और संघर्ष को याद रख सकें। 

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