हिंदी दिवस: राष्ट्र को जोड़ने की महत्वपूर्ण कड़ी, हिंदी का निखर रहा स्वरूप
हिंदी दिवस आज हिंदी दिवस है और देहरादून में कई लोग हिंदी भाषा के प्रति समर्पित हैं। दून पुस्तकालय बच्चों में हिंदी के प्रति रुचि जगा रहा है वहीं डा. इंद्रजीत सिंह युवाओं को हिंदी के लिए प्रेरित करते हैं। साहित्यकारों का कहना है कि हिंदी विश्व स्तर पर आगे बढ़ रही है और भावनात्मक रूप से जुड़ना जरूरी है।

सुमित थपलियाल, जागरण देहरादून। संस्कृति किसी भी समाज, राष्ट्र की धरोहर व पहचान होती है। वहीं, भाषाओं का काम मानवता को सशक्त करने का होता है। भाषाओं का अस्तित्व मानव जीवन को सफल बनाना होता है। हिंदी देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में है, जिसे अब युवा पीढ़ी भी समझ रही है। नई शिक्षा नीति ने भी हिंदी को प्राथमिकता देते हुए मजबूत किया है।
आज हम हिंदी दिवस मनाने जा रहे हैं। उत्तराखंड के साहित्यकारों को माने तो हिंदी का स्वरूप निखरा है। हालांकि हर दिन नदी की तरह आगे बढ़ रही राष्ट्रगौरव हिंदी के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वहीं कुंछ ऐसे भी लोग हैं जो निस्वार्स्थ भाव से हिंदी के प्रति समर्पित होकर सेवा कर रहे हैं। कोई युवा तो कोई बच्चों को हिंदी के प्रति रुचि बढ़ाने के साथ ही इसकी महत्ता की बारीकी भी बता रहे हैं।
दून पुस्तकालय में बाल विभाग कर रहा हिंदी भाषा का संवर्द्धन
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र का बाल अनुभाग लगातार हिन्दी भाषा के संवर्धन और प्रसार के लिए सक्रिय भूमिका निभा रहा है। यहां बाल अनुभाग में 576 से अधिक हिंदी पुस्तकें उपलब्ध हैं जिनमें छोटे बच्चों के लिए चित्र पुस्तकें व बड़े बच्चों के लिए मुंशी प्रेमचंद, रवींद्रनाथ ठाकुर और सआदत हसन मंटो जैसे लेखकों की कृतियां शामिल हैं। साथ ही कराड़ी टेल्स की हिंदी आडियो पुस्तकों को नसीरुद्दीन शाह और नंदिता दास जैसी जानी-मानी आवाज़ों ने जीवंत बनाया है।
यहां हर महीने दो से तीन दिन हिंदी को लेकर आयोजित रोचक प्रतियोगिता कराई जाती हैं। विशेष बात है कि यहां अंग्रेजी स्कूलों के बच्चों का उत्साह अधिक नजर आता है। बच्चों के कार्यक्रमों में भी हिंदी को प्राथमिकता दी जाती है। लगभग 80 प्रतिशत गतिविधियां हिंदी में ही आयोजित होती हैं जिनमें फिल्म प्रदर्शन, कहानी लेखन, कहानी सुनाना, कविता लेखन और स्पोकन वर्ड पोएट्री शामिल हैं।
यहां कुसुम कोहली के मार्गदर्शन में गुनियाल गांव की बालिकाओं बच्चियों ने स्वयं हस्तनिर्मित कहानी पुस्तिका तैयार कीं। इन पुस्तिकाओं में हिंदी में अपने जीवन और अनुभवों पर आधारित कहानियां लिखीं हैं, जो बच्चों की रचनात्मकता और भाषा के प्रति उनके लगाव को दर्शाती हैं। इसके अलावा, विभिन्न संगठन भी बच्चों के लिए कार्यक्रम कराते हैं। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएशन चंद्रशेखर तिवारी और बाल अनुभाग की संचालक मेघा बताते हैं कि हिंदी का कोई भी आयोजन हो तो यहां 20 से 30 बच्चे स्वत: पहुंच जाते हैं।
युवाओं को देश विदेश में हिंदी के लिए प्रेरित करते हैं डा. इंद्रजीत सिंह
केंद्रीय विद्यालय से सेवानिवृत्त प्राचार्य डा. इंद्रजीत सिंह साहित्य के प्रति जितने खुद उत्साहित रहते हैं उससे ज्यादा हिंदी के ज्ञान को युवाओं तक पहुंचाने में प्रयास करते हैं। विभिन्न स्कूल कालेज में हिंदी के प्रति युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं। मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी, मास्को (रूस), मारीशस के अलावा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिंदी की बारीकी और महत्ता को बताने पहुंचते हैं।
इसके अलावा सामाजिक संगठनों की ओर से होने वाले आयोजन में भी उनके हिंदी विषय पर वक्तव्य सुनने के लिए युवा भी उत्साहित रहते हैं। अबतक उनकी पुस्तकें जनकवि शैलेंद्र, धरती कहे पुकार के, तू प्यार का सागर है, भारतीय साहित्य के निर्माता: शैलेंद्र, भारत के पुश्किन शैलेंद्र प्रकाशित हैं। इसके अलावा गायिकी की गंगा:लता मंगेशकर , रूस के साहित्यिक तीर्थ स्थल भी जल्द प्रकाशित होगी।
उन्होंने नई पीढ़ी में हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए विद्यालय में ''''साहित्यकार से संवाद'''' कार्यक्रम शुरू किया। जिसमें विभिन्न साहित्यकार और लेखकों ने छात्रों को हिंदी के प्रति उत्साह बढ़ाया जाता है। वे बताते हैं कि हिंदी भारत की केवल राजभाषा और संपर्क भाषा ही नहीं है बल्कि हिंदी सौ करोड़ से अधिक भारतीयों के होंठों का श्रृंगार है। वर्तमान में वे उत्तराखंड भाषा संस्थान के सदस्य के रूप में पिछले तीन वर्ष से सहयोग कर रहे हैं।
साहित्यकार बोले हिंदी विश्व स्तर पर मुखरित होकर बढ़ रही आगे
साहित्यकार डा. मुनीराम सकलानी ''''मुनीन्द्र'''' बताते हैं कि किसी भी देश को अस्मिता उसकी भाषा में होती है। हिंदी विश्व स्तर पर मुखरित होकर आगे बढ़ रही है। आजकल जरूरी है कि हमें हिंदी से भावनात्मक रूप से जुड़ना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने सभी भाषण हिंदी में देते हैं, इससे नई पीढ़ी को विशेष तौर पर हिंदी के लिए प्रेरणा मिलेगी।
साहित्यकार व लेखक बीना बेंजवाल का कहना है कि हिंदी अब सीखने की सीमा स्कूलों तक ही समिति नहीं है बल्कि घर घर पहुंच गई है। हिंदी का महत्व बढ़ा है। सांस्कृतिक एकता की प्रतीक है जो हमें जो़ड़ती है। हिंदी साहित्य में समृद्ध तो है ही इसके अलावा फिल्म, व्यापार, पर्यटन के क्षेत्र में संपर्क सूत्र में बांधती है। जिससे यह मजबूत बन रही है। युवा लेखकों का कहना है कि हिंदी में लिखना हमारे लिए आसान होता है, क्योंकि मातृभाषा होने के कारण मन में भाव हिंदी में ही आते हैं।
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