Uttarakhand: एकीकृत हिमालयन एक्शन प्लान ही बचाएगा आपदा में जान, क्लाइमेट ट्रेंड्स संस्था ने तैयार की रिपोर्ट
जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव के कारण क्लाइमेट ट्रेंड्स संस्था ने हिमालय के लिए एक एकीकृत एक्शन प्लान बनाया है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में किए गए अध्ययन के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में आपदाओं से बचने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। मल्टी हैजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम और सख्त भूमि उपयोग नियमों पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्र को जलवायु संकट का रेड जोन बताया गया है, जहाँ आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।

जागरण संवाददाता, देहरादून। जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों के बढ़ते असर के बीच क्लाइमेट ट्रेंड्स संस्था ने एकीकृत हिमालयन एक्शन प्लान तैयार किया है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में किए गए अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें मल्टी हैजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम, सख्त भूमि उपयोग नियम और प्रकृति आधारित समाधानों पर जोर दिया गया है।
रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि हिमालयी क्षेत्र अब जलवायु संकट के रेड जोन में प्रवेश कर चुका है, जहां बेतरतीब निर्माण, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और बादल फटने जैसी घटनाएं मिलकर अभूतपूर्व आपदाओं को जन्म दे रही हैं।
बुधवार को आइएसबीटी के निकट स्थित एक होटल में संस्था की ओर से रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड और हिमालयी राज्यों में हर साल भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। लेकिन, असली खतरा उन मानवीय गतिविधियों से है, जो संवेदनशील इलाकों को और जोखिमग्रस्त बना रही हैं। जैसे बिना अनुमति निर्माण, सड़कों का अतिक्रमण और पहाड़ों की ढलानों पर नई बस्तियों का विस्तार।
रिपोर्ट में जापान, स्विट्जरलैंड और नार्वे जैसे देशों का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया गया है कि भारत को भी 2030 तक रोकी जा सकने वाली आपदा मृत्यु को शून्य करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसके लिए आठ प्रमुख कदम सुझाए गए हैं, जिनमें मल्टी-हैजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम की स्थापना पर जोर दिया गया है।
वास्तविक समय (रियल टाइम) में मौसम, जलविज्ञान और भूगर्भीय डेटा को जोड़कर चेतावनी जारी करने की एकीकृत प्रणाली। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति तक पहली बार में और हर बार चेतावनी पहुंचे। जोखिम वाले इलाकों में सख्त भूमि उपयोग नियम बनाए जाएं।
रेड जोन में निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध और आरेंज/येलो जोन में सख्त भवन मानक हों। योजनाबद्ध पुनर्वास और सुरक्षित बसावट को दीर्घकालिक रणनीति के रूप में अपनाने की सिफारिश की गई है। पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी ने संस्था के प्लान की सराहना करते हुए हिमालय के भौगोलिक व जलवायु परिस्थितियों पर प्रकाश डाला।
सूचना एवं प्रसारण उत्तराखंड के महाप्रबंधक नीलम भट्ट सिलस्वाल, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के उप निदेशक विनय कुमार, मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक डा. चंदर सिंह तोमर, भूविज्ञानी एवं सहायक संकाय दून विश्वविद्यालय प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल आदि ने भी विचार रखे।
हिमालयन रेजिलियंस मिशन की रूपरेखा
रिपोर्ट ने हिमालयन रेजिलियंस मिशन नाम से एक दशक-लंबी योजना शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। इसके पहले चरण में सबसे जोखिमग्रस्त इलाकों (जैसे उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और चमोली) में पायलट प्रोजेक्ट चलाए जाएंगे, जिनमें सेंसर इंस्टालेशन, पुनर्वास योजना और सामुदायिक आपदा तैयारी को जोड़ा जाएगा। दूसरे चरण में इसे नेपाल, भूटान और तिब्बत के साथ ट्रांस-बाउंड्री डेटा शेयरिंग सिस्टम के रूप में विस्तारित करने की सिफारिश की गई है।
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