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    हिमालयी घाटियों में भारी वर्षा का खतरा, खड़े पहाड़ों में फंसकर जमकर बरस रहे बादल; वैज्ञानिकाें की चेतावनी

    Updated: Sun, 24 Aug 2025 09:40 AM (IST)

    वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने ऊंची घाटियों में वर्षाकाल में सावधानी बरतने की सलाह दी है। मानसून में नमी से भरी हवाएं पश्चिमी हवाओं से टकराकर बादल बनाती हैं जो भारी वर्षा का कारण बनती हैं। उत्तराखंड के कमजोर पहाड़ भूस्खलन के रूप में खिसकने लगते हैं जिससे नुकसान होता है। संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग और चेतावनी प्रणाली से नुकसान को कम किया जा सकता है।

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    नदी के पानी की फाइल फोटाे का प्रयोग किया गया है।

    सुमन सेमवाल, देहरादून। इस मानसून सीजन में वर्षा की तीव्रता के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में निरंतर बादल फटने या इस जैसे हालात बन रहे हैं। धराली पर मौसम का यही मिजाज भारी पड़ा। हर्षिल और इससे जुड़ी घाटियों और यमुनोत्री धाम में मलबे से यमुना की धारा अवरुद्ध होने के बाद अब थराली में अतिवृष्टि ने कहर बरपाया है।

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    वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बार-बार घट रही इस तरह की घटनाओं के कारणों पर तस्वीर साफ की है।

    विज्ञानियों ने ऊंची घाटियों में वर्षाकाल में अधिक सावधानी बरतने की दी सलाह

    संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. अमित कुमार के अनुसार मानसून सीजन में नमी से भरी पूर्वी हवाएं निचले क्षेत्रों से होकर पश्चिमी हिमालय तक पहुंच रही हैं। ये हवाएं ऊपरी क्षेत्रों (उच्च हिमालय) में बहने वाली पश्चिमी हवाओं से टकरा रही हैं। इनके संगम से

    'क्यूमुलोनिंबस' बादलों (गरज-चमक वाले बादल) का निर्माण होता है। इस स्थिति में जब बादलों के सम्मुख जब ऊंचे पहाड़ वाली घाटियां आती हैं तो यह इस तरह के संकरे क्षेत्रों में अटक जाते हैं। जिस कारण एक छोटे भूभाग में ही यह बरस पड़ते हैं। कई बार यह स्थिति बादल फटने जैसी होती है और कई बार निरंतर कई दिनों तक सामान्य से अधिक वर्षा होती है।

    पहाड़ों पर होती हैं ये घटनाएं अधिक

    वरिष्ठ विज्ञानी डॉक्टर अमित कुमार के अनुसार उत्तराखंड के पहाड़ कालांतर में ग्लेशियरों के पीछे खिसकने से शेष रह गए मलबे से बने हैं, लिहाजा यह बेहद कमजोर हैं। बादल फटने या अति वृष्टि में यह भूस्खलन के रूप में भरभराकर खिसकने लगते हैं। चूंकि, ऊंची घाटियों में ऐसी घटनाएं अधिक होती है तो नुकसान भी सर्वाधिक होता है।

    धराली और थराली की घटना से सीख लेकर मैपिंग की जरूरत

    वाडिया संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉक्टर अमित के अनुसार बादल फटने जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना बेहद कठिन है। लेकिन, हमें यह पता है कि कौन सी घाटी बादल फटने या अतिवृष्टि के लिए मुफीद हैं। लिहाजा, इस तरह के क्षेत्रों की मैपिंग कर वहां के निवासियों को भारी वर्षा की चेतावनी की स्थिति में पहले ही अलर्ट किया जा सकता है।

    बेशक, हम बादल फटने या इस जैसे हालात को रोक नहीं सकते हैं, लेकिन संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे व्यक्तियों को वर्षाकाल या भारी वर्षा की चेतावनी की दशा में सचेत जरूर कर सकते हैं। इससे जन हानि को रोका जा सकता है।

    जलवायु परिवर्तन से बन रही ग्लेशियर झीलें भी कर रही प्रभावित

    जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहे तामपान से ग्लेशियर झीलों का तेजी से निर्माण हो रहा है। यह झीलें भी सीधे तौर पर बादलों के संपर्क में आती हैं और बादल फटने या अतिवृष्टि के लिए अनुकूल माहौल बनाती हैं।