उधर राहुल गांधी की ओबीसी पर मोर्चाबंदी, इधर हरीश रावत का ब्राह्मण कार्ड; क्या उत्तराखंड में बदलेंगे सियासी समीकरण?
उत्तराखंड में कांग्रेस नेता हरीश रावत ब्राह्मणों को रिझाने में लगे हैं जो राहुल गांधी की ओबीसी राजनीति से अलग है। रावत कांग्रेस को स्वभाव से ब्राह्मण बताते हुए नेहरू जैसे नेताओं का उदाहरण दे रहे हैं। यह प्रयास कांग्रेस से ब्राह्मण मतदाताओं की दूरी कम करने के लिए है। 2017 में भाजपा की बड़ी जीत का एक कारण ब्राह्मण मतदाताओं का ध्रुवीकरण माना गया था।

रविंद्र बड़थ्वाल, जागरण, देहरादून । पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत यानी हरदा इन दिनों कांग्रेस के ब्राह्मण प्रेम की तान छेड़े हुए हैं। प्रदेश के इस सियासी धुरंधर का यह रवैया उनकी पार्टी के ही शीर्ष नेता व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से एकदम उलट है।
राहुल जहां ओबीसी और अनुसूचित जाति को साथ लेकर नयी मोर्चाबंदी के आगे कुछ सुनने को तैयार नहीं, वहीं हरदा की कोशिश है कि प्रदेश में ब्राह्मणों के समर्थन को वापस पाया जाए, ताकि सत्ता में वापसी की सूरत बन सके। कांग्रेस में इन दिनों देश और उत्तराखंड के मोर्चे पर राजनीति की अलग-अलग धाराएं बह रही हैं तो यह अकारण नहीं है। वर्ष 2017 और वर्ष 2022 में कांग्रेस को मिली बड़ी पराजय और भाजपा को प्रचंड जीत के केंद्र में हरदा की चिंता का मुख्य कारक यही ब्राह्मण फैक्टर माना जा रहा है।
अब तक हुए विधानसभा के पांच चुनाव
प्रदेश में अब तक विधानसभा के पांच चुनाव हो चुके हैं। इनमें से दो चुनाव के परिणाम ऐसा पहलू सामने रखते हैं, जिसे लेकर कांग्रेस में बेचैनी साफ नजर आती है। इस मध्य हिमालयी राज्य में चुनावी तस्वीर वर्ष 2014 के बाद तब उभरी, जब केंद्र की सत्ता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों में आई। इसके साथ ही सामाजिक समीकरणों ने तेजी से करवट ली।
विशेष रूप से दो मैदानी जिलों हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर को छोड़कर, शेष पूर्ण अथवा आंशिक पर्वतीय नौ जिलों में 70 में से 50 विधानसभा सीट हैं। हरिद्वार में 11 और ऊधम सिंह नगर में नौ विधानसभा सीट हैं। इन दोनों जिलों की कुल 20 विधानसभा सीट में 11 सीट कांग्रेस के पास हैं। शेष नौ जिलों की सीटों पर चुनाव के गणित को ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता सीधे प्रभावित करते हैं। इन दोनों समुदायों की पूरे प्रदेश में कुल औसत भागीदारी 60 प्रतिशत है तो नौ जिलों में यह बढ़कर 65 से 70 प्रतिशत हो जाती है।
वर्तमान में भाजपा के 47 और कांग्रेस के 20 विधायक हैं, जबकि बसपा का एक और दो विधायक निर्दल हैं। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में 19 सीट पाने वाली कांग्रेस ने विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज कर एक सीट और अपने खाते में और बढ़ाई है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 44.3 प्रतिशत तो कांग्रेस को लगभग 38 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। भाजपा के मत प्रतिशत का अंतर छह प्रतिशत से अधिक रहा।
वर्ष 2017 में भाजपा का मत प्रतिशत 46.5 पहुंचा था, जबकि कांग्रेस को 33.49 मत प्रतिशत पर सिमटना पड़ गया था। 13 प्रतिशत के इस अंतर के कारण भाजपा रिकार्ड 57 सीट जीतने में सफल रही।
वहीं इन दोनों चुनावों से पहले वर्ष 2002 से लेकर वर्ष 2012 में हुए तीन विधानसभा चुनाव में दो बार कांग्रेस और एक बार भाजपा ने सरकार बनाई। इन तीनों चुनावों में जीत का अंतर 0.66 प्रतिशत से 2.31 प्रतिशत से अधिक नहीं रहा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजपूत मतदाताओं पर भाजपा की पकड़ तो मजबूत हुई, लेकिन कांग्रेस ने भी अपनी पकड़ बहुत ढीली नहीं होने दी। वहीं, ब्राह्मण मतदाताओं का भाजपा के पक्ष में अपेक्षाकृत अधिक ध्रुवीकरण हुआ है। इसी ध्रुवीकरण के चलते भाजपा ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की।
कांग्रेस से ब्राह्मण समाज की दूरी कम करने के लिए ही संभवत: हरीश रावत को कहना पड़ा कि कांग्रेस स्वभाव से ब्राह्मण है। इसके लिए उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय से लेकर पंडित कमलापति त्रिपाठी और पंडित नारायण दत्त तिवारी जैसे नामों का हवाला दिया। हरदा का यह दांव कितना कारगर रहता है, यह आने वाले समय में ही पता चल पाएगा।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को प्राप्त मत का प्रतिशत:
- वर्ष, भाजपा, कांग्रेस
- 2022, 44.3, 37.90
- 2017, 46.51, 33.49
- 2012, 33.13, 33.79
- 2007, 31.90, 29.59
- 2002, 25.45, 26.91
वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर उत्तराखंड में मतदाताओं का ये है सामाजिक समीकरण:
- राजपूत-35 प्रतिशत
- ब्राह्मण-25 प्रतिशत
- अनुसूचित जाति-19 प्रतिशत
- अनुसूचित जनजाति-03 प्रतिशत
- ओबीसी व अन्य-19 प्रतिशत
- मुस्लिम-14 प्रतिशत
- अन्य अल्पसंख्यक-02 प्रतिशत
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