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    हरिद्वार लोकसभा, ऋषिकेश विधानसभा भूमि है भूमिधरी नहीं, सरकार है छोटी सरकार नहीं

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 15 Mar 2019 08:14 PM (IST)

    जागरण संवाददाता ऋषिकेश एशिया के सबसे बड़े टिहरी बांध के लिए अपनी पुस्तैनी भूमि और प

    हरिद्वार लोकसभा, ऋषिकेश विधानसभा भूमि है भूमिधरी नहीं, सरकार है छोटी सरकार नहीं

    जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :

    एशिया के सबसे बड़े टिहरी बांध के लिए अपनी पुस्तैनी भूमि और पहचान खोने वाले बांध विस्थापित, विस्थापन के 19 वर्ष बाद भी अपनी पहचान के लिए तरस रहे हैं। ऋषिकेश के पशुलोक और श्यामपुर में विस्थापित हुए टिहरी बांध विस्थापितों को भूमि तो मिली, मगर अभी तक भूमिधरी का अधिकार नहीं मिल पाया। वहीं लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इन्हें सरकार चुनने का अधिकार तो है मगर, विकास की सबसे अहम मानी जाने वाली पंचायत व्यवस्था में इनका कोई अस्तित्व ही नहीं है। अपनी छोटी सरकार न होने के कारण बांध विस्थापित सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं से तो महरूम हैं ही, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे आवश्यक दस्तावेजों के लिए भी इन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। इन उन्नीस वर्षो में तमाम चुनाव आये, सरकारें बनी और चली गई, मगर विस्थापितों के हिस्से वायदे और आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं आया।

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    टिहरी बांध के लिए भागीरथी व भिलंगना घाटी के कई गांवों को वर्ष 2000 में ऋषिकेश के निकट पशुलोक और श्यामपुर में विस्थापित किया गया था। जिनमें प्रमुख रूप से डोबरा, मालीदेवल, असेना, गोदी, सिराई, उप्पू, लंबपोंगड़ी, खांड गांव, बड़कोट, क्यारी व पेंदार्स आदि शामिल थे। अपने मूल स्थानों पर इन गांवों की करीब सात ग्राम पंचायतें अस्तित्व में थी। मगर, यहां इन गांवों के विस्थापितों को पशुलोक के निर्मल ब्लॉक ए, बी व सी तथा आमबाग जबकि, श्यामपुर के निकट श्यामपुर ए, बी व सी में विस्थापन दिया गया था। वर्ष 2002-03 में टिहरी बांध की झील भरने के साथ ही जैसे-जैसे इन गांवों ने जल समाधि ली। यहां के वाशिदों ने अपने विस्थापन क्षेत्रों में शिफ्ट होना शुरू कर दिया था। अब वर्तमान में करीब एक दर्जन गांवों के तीन हजार परिवारों की करीब बीस हजार की आबादी इस विस्थापित क्षेत्र में निवासरत है। डेढ़ दशक से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी इन बांध स्थिापितों को अभी तक भूमिधरी का अधिकार नहीं मिल पाया। विस्थापन के बदले मिली भूमि पर यह लोग निवासरत हैं और कृषि कर रहे हैं। मगर, वास्तव में इस भूमि पर इन लोगों का कोई मालिकाना हक ही नहीं है। विस्थापन शर्तो में स्पष्ट था कि जो सरकारी और ढांचागत सुविधाएं और उन्हें अपने गांवों में मिल रही थी, वही विस्थापित क्षेत्र में दी जानी थी। अभी तक विस्थापित गांवों को राजस्व का दर्जा तक नहीं मिल पाया और न ही यहां पंचायतों का ही पुनर्गठन किया गया। भूमिधरी का अधिकार न होने और अपनी ग्राम पंचायत न होने के कारण विस्थापितों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की तमाम योजनाओं का लाभ भी यहां विस्थापितों को नहीं मिल पा रहा है। अपनी इन मांगों के लिए बांध विस्थापित आंदोलन भी कर चुके हैं, मगर अभी तक आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं मिल पाया।

    यह आती हैं दिक्कतें

    - अपनी ग्राम पंचायत न होने के कारण योजनाओं का लाभ नहीं मिलता

    - जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए भी दूसरी ग्राम पंचायतों पर आश्रित रहना पड़ता है।

    - समाज कल्याण की पेंशन योजनाओं का भी बांध विस्थापितों को लाभ नहीं

    - सरकारी नौकरियों की ज्वाइनिग की स्थिति में आवश्यक प्रमाण पत्रों के लिए आती है दिक्कतें

    - बैंक खाते खोलने में भी दिक्कतों का करना पड़ता है सामना

    - अपनी भूमि होने के बावजूद भूमिधरी का अधिकार न होने से बैंक नहीं देता ऋण

    - किसी अन्य व्यक्ति के लिए बैंक ग्रांटर भी नहीं बन सकते विस्थापित शासन में लंबित है राजस्व ग्राम का प्रस्ताव

    टिहरी बांध विस्थापितों के लंबे आंदोलन के बाद वर्ष 2017 में आयुक्त एवं सचिव राजस्व परिषद उत्तराखंड ने जिलाधिकारी देहरादून से बांध विस्थापित गांवों को राजस्व ग्राम बनाने संबंधी प्रस्ताव मांगा था। इस प्रस्ताव के क्रम में जिलाधिकारी देहरादून ने 17 फरवरी 2018 को राजस्व परिषद को आख्या दी। जिसमें जिलाधिकारी देहरादून ने विस्थिपित क्षेत्र में सात राजस्व ग्राम प्रस्तावित किये हैं। जिनमें प्रस्तावित राजस्व ग्राम मालीदेवल के अंतर्गत विस्थापित क्षेत्र निर्मल ब्लाक ए व ए(ई) को, विरयाणी पैंदार्स में निर्मल बाग को, असैना में श्यामपुर ब्लाक ए, लंबपोंगडी गोजियाड़ा में श्यामपुर ब्लाक सी व निर्मल ब्लाक सी को, सिराई में निर्मल ब्लाक बी आवासीय निर्मल ब्लाक बी पार्ट-2 को, सिराई राजगांव में निर्मल ब्लाक बी आवासीय व निर्मल ब्लाक बी पार्ट-1 को जबकि डोबरा में श्यामपुर ब्लाक बी को राजस्व ग्राम के लिए प्रस्तावित किया गया है।