कैसे अफसर के कुक से बना नकल माफिया? पढ़ें उत्तराखंड के युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले हाकम सिंह की कहानी
उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं में नकल के मामले में हाकम सिंह का नाम सामने आया। वह राजनीति और ताकत के बल पर सालों से छाया हुआ था लेकिन नकल माफिया के रूप में बदनाम हो गया। उसने अधिकारियों से संपर्क बनाए और अकूत संपत्ति अर्जित की। अब उसका सफर जेल में ही खत्म हो जाएगा। मामला दिखाता है कि सत्ता और पैसा शिक्षा के साथ कैसे खिलवाड़ करते हैं।

सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून। उत्तराखंड में पहली बार वर्ष 2022 में सामने आए भर्ती परीक्षाओं में नकल कांड ने राज्य की राजनीति और नौकरशाही को झकझोर कर रख दिया था। इस कांड से जो सबसे चर्चित नाम सामने आया, वह था हाकम सिंह का।
राजनीति, कारोबार और बाहुबल की तिकड़ी पर वर्षों तक अपनी पकड़ बनाए रखने वाला हाकम सिंह अचानक ही उत्तराखंड में नकल माफिया के रूप में कुख्यात हो गया। सत्ता से नजदीकी, सरकारी मशीनरी पर पकड़ और पैसे की ताकत के बल पर उसका सफर बिना ब्रेक की गाड़ी की तरह सालों तक सरपट भागता रहा। लेकिन, सबसे बड़े नकल कांड में हाकम सिंह पूरे गिरोह के साथ 13 अगस्त 2022 को गिरफ्तार कर लिया गया।
पांच सितंबर 2023 को उसे सुप्रीम कोर्ट से जमानत भी मिल गई। लंबे समय तक खामोशी के बाद लगने लगा था कि हाकम अब दोबारा ऐसी जुर्रत नहीं कर पाएगा, लेकिन एक बार फिर उसने उत्तराखंड स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा में सेंधमारी की और नकल कराने की तैयारी भी कर ली। हालांकि, पुराने कांडों से सचेत सरकारी तंत्र ने इस बार उसे परीक्षा से एक दिन पहले ही दबोच लिया।
अधिकारी का कुक बना और संपर्कों से जमाई जड़ें
हाकम सिंह ने उत्तरकाशी के मोरी इलाके से छोटा काम शुरू किया और उत्तर प्रदेश के नकल माफिया तक कनेक्शन जोड़ लिए। हाकम सिंह की कहानी एक अधिकारी के कुक के साथ शुरू हुई, जो कि अधिकारी के लिए खाना बनाने का काम करता था। जानकारी के अनुसार हाकम सिंह उत्तरकाशी के एक प्रशासनिक अधिकारी के घर कुक का काम करने लगा।
कुछ दिनों बाद उस अधिकारी का ट्रांसफर हरिद्वार हुआ, तो वहां उसका आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ व्यक्तियों के साथ उठना बैठना हुआ। फिर वह पेपर लीक के धंधे से जुड़ गया। यहां उसकी मुलाकात यूपी के नकल माफिया से हो गई। इसके बाद हाकम ने इस धंधे में घुसने के लिए राजनीति का सहारा लिया।
वर्ष 2008 में वह पंचायत की राजनीति में सक्रिय हो गया। वर्ष 2019 के पंचायत चुनाव में वह जिला पंचायत सदस्य बन गया। इस बीच हाकम ने राजनीति में अच्छी पैठ बना ली। हाकम बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों से मिलकर फोटो भी खिंचवाने लगा। जिसका इस्तेमाल वह अपने धंधे में करने लगा।
हाकम सिंह ने मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक के साथ फोटो खिंचवाकर संवाद भी स्थापित कर लिए। इससे हाकम सिंह ने अकूत संपत्ति अर्जित कर सांकरी में आलीशान रिसार्ट तैयार करवा लिया था।
कारोबार और नेटवर्क के बूते बढ़ते चले गए हाकम के कदम
राजनीति के साथ-साथ हाकम सिंह ने कारोबार और ठेकेदारी में भी हाथ आजमाया। सड़कों के निर्माण, छोटे सरकारी कामों से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक उसकी पहुंच बढ़ती चली गई। उसने बड़े पैमाने पर ठेके लिए और ठेकेदारों का एक नेटवर्क तैयार किया। कहा जाता है कि यह नेटवर्क भी आगे चलकर नकल माफिया का आधार बना। क्योंकि शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े कुछ अधिकारी और कर्मचारी उनके नजदीक आ गए थे। धीरे-धीरे उन्होंने नकल के धंधे को संगठित रूप देना शुरू किया।
अब जेल की चहारदीवारी में सिमटेगा सफर
हाकम सिंह ने अपने नकल के नेटवर्क से खूब पैसा बटोरा। लेकिन, अपराधी चाहे कितना ही शातिर क्यों न हो, देर सबेर वह फंदे में फंस ही जाता है। क्योंकि हाकम सिंह का सफर यह दिखाता है कि सत्ता, पैसा और प्रभाव मिलकर किस तरह से शिक्षा और युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर सकते हैं। लेकिन यह भी सच है कि लंबे समय तक भले ही सिस्टम पर दबदबा बना रहे, अंततः कानून की पकड़ से कोई बच नहीं पाता।
हाकम सिंह का राजनीतिक और सामाजिक सफर अब एक बुरी कहानी बन चुका है। जब हाकम पहली बार गिरफ्तार हुआ तो भाजपा ने उसे बाहर कर पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया था। उसके रिसार्ट के बड़े हिस्से को अतिक्रमण के तहत ढहा दिया गया था। हालांकि, हाकम सिंह ने जेल से बाहर आने के बाद कुछ समय शांत रहते हुए फिर से नकल का धंधा जमाना शुरू कर दिया था। अब यह माना जा रहा है कि राजनीति, पैसा और ताकत पर आधारित हाकम का सफर अब जेल की चहारदीवारी में सीमित होकर रह जाएगा।
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