अच्छी खबर : भारत में ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव 25 फीसद कम, यूएन को भेजी गई रिपोर्ट में खुलासा
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भेजी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव में 25 फीसद तक कमी आ गई है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों से जूझ रहे विश्व के लिए भारत से अच्छी खबर निकलकर आई है। देश में ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव में 25 फीसद तक कमी आ गई है। यही नहीं, ऊर्जा के अन्य विकल्पों की तरफ भी अच्छी प्रगति हुई है। वनों के कार्बन सोखने की क्षमता भी अपेक्षा के अनुरूप बढ़ाने का प्रबंध कर लिया गया है। इसकी रिपोर्ट हाल में ही पेरिस समझौते के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भी भेज दी गई है।
उक्त जानकारी पेरिस समझौते को लेकर देश में बनाई गई समिति के सदस्य भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) के सलाहकार एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीएस रावत ने जागरण के साथ साझा की। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीएस रावत ने बताया कि 2015 में किए गए पेरिस समझौते में यह आशंका थी कि जिस दर से ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे सदी के अंत तक तापमान में 3.5 से 04 डिग्री का इजाफा हो जाएगा। इसके बाद इस तापमान बढ़ोत्तरी को दो डिग्री तक सीमित रखने का निर्णय लेते हुए सभी देशों ने 2030 तक का लक्ष्य रखा। इसके लिए भारत को लक्ष्य की अवधि तक ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को 33 से 35 फीसद तक कम करना है।
ताजा रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रभाव 25 फीसद तक कम हो गया है। इसमें मुख्य भूमिका क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट ने निभाई, जिसमें ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले को विशेष विधि से साफ कर प्रयोग में लाया जाने लगा है। दूसरी तरफ, भारत ने खुद के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए उसमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाते हुए उसकी जगह सोलर, पनबिजली, न्यूक्लियर इनर्जी के विकल्प को अपनाना है और इसमें 40 फीसद लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 35 फीसद तक प्राप्त कर लिया गया है।
वनीकरण बढ़ाने की योजनाओं पर तेजी से काम
भारत के पास सबसे चुनौतीपूर्ण लक्ष्य वनों की कार्बन सोखने की क्षमता बढ़ाना भी है। इसके जरिये 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की क्षमता को 2.5 से 03 बिलियन टन तक बढ़ाना है। यानि की हर साल 200 से 250 मिलियन टन क्षमता में इजाफा किया जाना है, जबकि मौजूदा क्षमता 70-80 मिलियन टन के आसपास है। इसके लिए नमामि गंगे के तहत गंगा नदी के दोनों तरफ 80 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में पौधरोपण की प्रक्रिया को गति दी जा रही है। वहीं, नेशनल ग्रीन हाईवे मिशन के तहत 1.40 लाख किलोमीटर लंबाई पर हरित पट्टिका विकसित करने का निर्णय लिया गया है और वन क्षेत्रों के भीतर और बाहरी क्षेत्रों में भी वनीकरण को बढ़ाने की तमाम योजनाओं पर तेजी से काम चल रहा है।
ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव में इसलिए कमी जरूरी
ग्रीन हाउस गैसों का होना जीवन के लिए जितना जरूरी है, उतना ही इसके निरंतर बढ़ते उत्सर्जन नुकसान भी है। कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प आदि ग्रीन हाउस गैसें ही हैं, जो तापमान को अपेक्षाकृत बढ़ाने का काम करती हैं। यदि यह गैसें नहीं होतीं तो धरती का औसत तापमान 15 डिग्री की जगह माइनस 18 डिग्री सेल्सियस होता। वैज्ञानिकों का मत है कि विकास के नाम पर वृक्षों की अंधाधुंध कटान, बढ़ते प्रदूषण और औद्योगिकीकरण के चलते ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में निरंतर इजाफा हो रहा है। इसी कारण इन गैसों को सोखने और उत्सर्जन को नियंत्रित करने के उपायों पर काम करना बेहद जरूरी हो गया है।