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दून के चार चौराहों के चौड़ीकरण में सिस्टम खुद भटका, Dehradun News पढ़िए पूरी खबर

दून के चार चौराहों के चौड़ीकरण में सिस्टम खुद भटककर रह गया। इनमें से तीन चौक पर आंशिक काम पूरा होने के बाद मामला हाईकोर्ट में चला गया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 01:48 PM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2019 01:48 PM (IST)
दून के चार चौराहों के चौड़ीकरण में सिस्टम खुद भटका, Dehradun News पढ़िए पूरी खबर
दून के चार चौराहों के चौड़ीकरण में सिस्टम खुद भटका, Dehradun News पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, सुमन सेमवाल। वर्ष 2008-09 में जब जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) शुरू किया गया था तो सरकार ने बड़ी उम्मीद से दून के चौराहों/तिराहों के चौड़ीकरण की योजना बनाई थी। तय किया गया था कि शहर के प्रमुख 16 चौराहों का चौड़ीकरण किया जाएगा। नई योजना थी इसलिए, इसकी कसरत में ही दो साल निकल गए। वर्ष 2011 में जाकर चौड़ीकरण पर काम शुरू किया गया, जबकि काम 2012 तक समाप्त किया जाना था। जैसे-तैसे दो साल का एक्सटेंशन मिलने के बाद 12 चौराहों का चौड़ीकरण कर लिया गया, मगर चार चौराहों के चौड़ीकरण में सिस्टम खुद भटककर रह गया। यह चौराहे हैं लैंसडौन चौक, कनक चौक, एस्लेहॉल और ग्लोब चौक। इनमें से तीन चौक पर आंशिक काम पूरा होने के बाद मामला हाईकोर्ट में चला गया और ग्लोब चौक पर प्रशासन स्वयं नजूल (सरकारी) भूमि छुड़ाने में असफल साबित हो गया। वर्ष 2014 में जब जेएनएनयूआरएम का समय पूरा हुआ, तब तक भी एस्लेहॉल चौक/तिराहे (60 फीसद) को छोड़कर किसी का भी काम 20 फीसद से आगे नहीं बढ़ पाया। अब यह योजना समाप्त हो चुकी है, लिहाजा कार्यदाई संस्थान लोनिवि प्रांतीय खंड (देहरादून) ने इस फाइल को भी बंद कर दिया है।

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इन अड़चनों से पार नहीं पा सके अधिकारी

कनक चौक: शुरुआती कसरत से आगे नहीं बढ़ी बात

गांधी पार्क व परेड ग्राउंड की तरफ पेड़ों के कटान व चहारदीवारी पीछे खिसकाने को लेकर मामला हाईकोर्ट में लंबित चल रहा है। ऐसे में इस चौक पर शुरुआती अवस्था में करीब 20 फीसद ही काम हो गया, जो अब धरातल पर नजर भी नहीं आता है। ऐसे में इस चौक पर हर समय जाम की स्थिति बनी रहती है। इस चौक पर अक्सर सचिवालय व मुख्यमंत्री आवास की तरफ कूच करने वाले प्रदर्शनकारियों का भी दबाव देखने को मिलता है।

 

लैंसडौन चौक: एक तरफ खुला, तो दूसरी तरफ संकरा

इस चौराहे पर भी गांधी पार्क व परेड गाउंड की भूमि के अधिग्रहण का मामला हाईकोर्ट में लंबित है। साथ ही बांस के एक झुरमुट को काटने पर प्रतिबंध है। ऐसे में चौक के दो छोर (पवेलियन ग्राउंड व भाजपा महानगर कार्यालय) की तरफ ही काम हो पाया है। इस चौक पर भी योजना के अनुरूप प्रगति महज 20 फीसद पर अटकी है। देखने में यह चौक एक तरफ खुला हुआ और दूसरे भाग पर संकरा नजर आता है। यहां धरना स्थल होने के कारण आए दिन भीड़ की स्थिति बनी रहती है। इस चौक पर यदि कुछ व्यवस्थित नजर आता है तो वह है इसकी रोटरी। यह कार्य भी सिर्फ एमडीडीए की सक्रियता से पूरा हो पाया।

एस्लेहॉल तिराहा: मुख्य जंक्शन पर अधिग्रहण का अडंगा

यही एकमात्र ऐसा चौक पर जिस पर 60 फीसद काम हो चुका था, मगर गांधी पार्क वाले हिस्से की भूमि के मामले में कोर्ट का स्टे होने के चलते चौक चौड़ीकरण पूरा आकार नहीं ले पाया। घंटाघर व राजपुर रोड से जुड़ा होने के चलते इस जंक्शन पर वाहनों का भारी दबाव रहता है। इसके चलते चौक पर जाम की समस्या आम हो चुकी है। गांधी पार्क के समक्ष होने वाले धरना प्रदर्शन व सचिवालय, मुख्यमंत्री आवास की कूच की स्थिति में हालात विकट हो जाते हैं।

ग्लोब चौक: इच्छाशक्ति का रहा अभाव

इस चौक पर न तो कोर्ट का अड़ंगा था, न ही कोई बड़ी समस्या। सिर्फ अधिकारियों की इच्छाशक्ति के चलते इसकी प्रगति 15 फीसद से आगे नहीं बढ़ पाई। यहां पर एक निजी स्कूल के कब्जे वाली 3312 वर्गमीटर भूमि का अधिग्रहण किया जाना था। भूमि भी सरकार की है और इसके बाद भी मामला उच्च हस्तक्षेप के चलते आगे नहीं बढ़ पाया। प्रकरण को लटकाने के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव पहले 23 जून 2012 को एमडीडीए को भेज दिया गया और फिर वहां से 13 जून को जिलाधिकारी कार्यालय। तब से प्रकरण फाइलों में दबकर रह गया।

  

अप्रैल 2014 के बाद कुछ भी कसरत नहीं

कनक, एस्लेहॉल व लैंसडौन चौक के चौड़ीकरण पर एक जनवरी 2011 को हाईकोर्ट ने स्टे कर दिया था। इसके बाद लोनिवि के प्रांतीय खंड ने 15 अप्रैल 2014 को इस पर अंतिम शपथ पत्र दाखिल किया। इसके बाद प्रकरण में क्या पैरवी की गई, इसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है। यानि कि बीते पांच साल से अधिक समय से अधिकारियों ने भी चौड़ीकरण पर हाथ खड़े कर रखे हैं। तब से अब तक खंड में चार अधिशासी अभियंता बदल चुके हैं और वर्तमान के अधिशासी अभियंता को भी मालूम नहीं कि कोर्ट में चल रहे वाद का अपडेट क्या है।

नगर निगम व शहरी विकास के बाद लोनिवि भी चित्त

कोर्ट में लंबित तीन चौराहों के प्रकरण में शुरुआत में नगर निगम व शहरी विकास निदेशालय की तरफ से पैरवी की जा रही थी। लोनिवि अधिकारियों को लगा कि कोर्ट के समक्ष प्रभावी पैरवी नहीं हो पा रही है, लिहाजा गढ़वाल मंडल आयुक्त की समीक्षा बैठक (17 जुलाई 2012) में दो जनवरी 2013 को लोनिवि ने स्वयं कोर्ट में दस्तक दी। हालांकि, इसके कुछ समय बाद ही लोनिवि का जोश भी ठंडा पड़ गया।

9.99 हेक्टेयर भूमि देने के बाद भी सफलता नहीं

चौड़ीकरण कार्य में पेड़ों के कटान, गांधी पार्क व परेड ग्राउंड की आंशिक भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ याचिका का निस्तारण करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिए थे कि राज्य सरकार इस भूमि के बदले समतुल्य भूमि अन्यत्र सार्वजनिक प्रयोग के लिए दे। यह आदेश पांच दिसंबर 2013 को जारी किए गए थे। इसके बाद राज्य सरकार ने जवाब दिया कि तरला नांगल में 9.99 हेक्टेयर भूमि सिटी पार्क निर्माण के लिए सिडकुल को हस्तांतरित कर दी गई है। हालांकि, लंबे समय तक कार्रवाई न होने पर कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई और तब से प्रकरण लंबित चल रहा है। अब अधिकारियों ने भी प्रकरण में दिलचस्पी लेना बंद कर दिया।

करने से 27 चौक चौड़े, काम 16 पर, पूरे हुए 12 ही

जेएनएनयूआरएम में पहले 27 चौराहों का प्रस्ताव भेजा गया था। कुल बजट प्रस्ताव 27.58 करोड़ रुपये का तैयार किया गया। हालांकि, इतनी अहम परियोजना में अधिकारी जमीन अधिग्रहण का खर्च जोडऩा ही भूल गए। फिर तय किया गया कि पहले 16 चौराहों को ही चौड़ा किया जाएगा। कुल प्रगति पर नजर डाली जाए तो पूरा बजट खर्च करने के बाद भी 12 चौराहों पर ही काम पूरा हो पाया है।

इन चौराहों/तिराहों का ही काम पूरा

शिमला बाईपास, सेंट ज्यूड्स, धर्मपुर, द्वारिका स्टोर, विकास भवन, सहस्रधारा क्रॉसिंग, तहसील, दर्शनलाल, कारगी, निरंजनपुर सब्जी मंडी, कौलागढ़, बल्लूपुर।

ये चौक प्रस्ताव से छूटे तो अफसर भी भूल गए

लोनिवि के पहले प्रस्ताव में प्रिंस चौक, एमकेपी चौक, सहारनपुर चौक, दून अस्पताल चौक, लालपुल तिराहे को भी शामिल किया गया था। समय के साथ इन सभी जंक्शन पर हर समय जाम की स्थिति बनी रहती है। वर्ष 2012 में यातायात पुलिस की ओर बनाए गए ट्रैफिक प्लान में भी ये जंक्शन शामिल किए गए हैं। बावजूद इसके इन सभी स्थलों पर यातायात सुधार के फौरी इंतजाम (डिवाइडर, वन-वे आदि) के अलावा कुछ खास नहीं हो पाया है। ऐसे में जाम की स्थिति में आमजन के अलावा पुलिस को भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है।

जगमोहन सिंह चौहान (अधिशासी अभियंता, लोनिवि) का कहना है कि जेएनएनयूआरएम के काम बंद हो चुके हैं। जिन चौराहों/तिराहों पर काम बाकी रह गया था, उन पर आगे कोई काम नहीं किया गया। कोर्ट में चल रहे वाद पर क्या-क्या कार्रवाई की गई, इसकी अभी जानकारी नहीं है। प्रयास किए जाएंगे कि किसी दूसरी योजना में अधूरे काम और शेष जंक्शन को बेहतर बनाया जा सके।

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