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    उत्तराखंड: कैबिनेट के इस निर्णय पर अभी तक जारी नहीं हुआ शासनादेश, जानिए

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Tue, 17 Nov 2020 11:06 PM (IST)

    परिवहन विभाग द्वारा विभिन्न वाहनों के रजिस्ट्रेशन के लिए वसूल किए जा रहे ग्रीन सेस के संबंध में कैबिनेट के फैसले पर अभी तक शासनादेश जारी नहीं हो पाया है। माना जा रहा है कि इसमें अभी एक और संशोधन कर कैबिनेट के सम्मुख रखा जाएगा।

    कैबिनेट के इस निर्णय पर अभी तक जारी नहीं हुआ शासनादेश।

    देहरादून, राज्य ब्यूरो। परिवहन विभाग द्वारा विभिन्न वाहनों के रजिस्ट्रेशन के लिए वसूल किए जा रहे ग्रीन सेस के संबंध में कैबिनेट के फैसले पर अभी तक शासनादेश जारी नहीं हो पाया है। माना जा रहा है कि इसमें अभी एक और संशोधन कर कैबिनेट के सम्मुख रखा जाएगा। इसके बाद ही इसमें कोई निर्णय होगा। दरअसल, कैबिनेट के फैसले से परिवहन विभाग को तकरीबन 90 करोड़ से अधिक का नुकसान हो रहा है। 

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    प्रदेश में वाहनों से हो रहे प्रदूषण को कम करने के उपायों और सड़क सुरक्षा के कार्यों के लिए 12 दिसंबर 2012 को सभी नए वाहनों के पंजीकरण पर ग्रीन सेस लागू किया था। इसमें पेट्रोल से चलने वाले चौपहिया वाहनों से 1500 रुपये, डीजल से चलने वाले चौपहिया वाहनों से 3000 रुपये और दुपहिया वाहनों से छह सौ रुपये शुल्क का प्रविधान किया गया। वहीं व्यावसायिक वाहनों पर फिटनेस के दौरान भी यही शुल्क लिया जाता है। निजी वाहनों में 15 वर्ष बाद रिन्यूअल के समय भी ग्रीन सेस लिया जाता है। प्रतिवर्ष इस मद में तकरीबन 12.5 करोड़ रुपये एकत्र होता है। 

    शुरुआत में ग्रीन सेस से मिलने वाले शुल्क को जमा करने लिए विभाग ने शहरी परिवहन निधि स्थापित की। इसके लिए नियमावली भी बनाई गई, लेकिन खामियों के चलते इसे मंजूरी नहीं मिल पाई। नतीजतन निधि का खाता नहीं खुल पाया। इस कारण तकरीबन सात वर्षों तक ग्रीन सेस का कोई इस्तेमाल हो ही नहीं सका। इसी वर्ष जुलाई में हुई कैबिनेट में ग्रीन सेस के संबंध में प्रस्ताव लाया गया। इसमें कहा गया कि सारा पैसा पहले की तरह ही कोषागार में जाएगा। उसके बाद सरकार यह तय करेगी कि निधि में कितना पैसा दिया जाए। 

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    यानी यह पैसा बजट के रूप में विभाग को मिलना था। कैबिनेट के इस निर्णय के चार माह बाद भी इस संबंध में शासनादेश नहीं हो पाया है। दरअसल, यह पैसा सड़क सुरक्षा के नाम पर लिया जा रहा है। इसे विभागीय बजट में शामिल किए जाने से विधिक समस्या उत्पन्न होने की आशंका जताई गई। ऐसे में अब इसमें नए सिरे से संशोधन पर विचार किया जा रहा है।

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