योजना का नाम बदलने के बाद सरकार ने नहीं ली इनकी सुध
उत्तराखंड में सरकार बदली और योजना का नाम भी नतीजा पुरानी योजना की पात्र 27 हजार से ज्यादा बालिकाएं इस लाभ को पाने से वंचित रह गईं।
देहरादून विकास गुसाईं। प्रदेश में सरकार बदली और योजना का नाम भी, नतीजा पुरानी योजना की पात्र 27 हजार से ज्यादा बालिकाएं इस लाभ को पाने से वंचित रह गईं। दरअसल, राज्य में नई सरकार बनने के बाद वर्ष 2017 में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग और समाज कल्याण विभाग में कन्याओं के लिए संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को एकीकृत कर नंदा गौरा योजना के नाम से नई योजना शुरू की। इस योजना के तहत पात्र लाभार्थियों को 62 हजार रुपये दिए जाने का प्रविधान है। इससे पहले प्रदेश में इस योजना का नाम हमारी कन्या हमारा अभियान था। इसके के तहत कन्या को जन्म के समय पांच हजार और एक वर्ष बाद 10 हजार रुपये दिए जाने का प्रविधान था। योजना के तहत वर्ष 2015-16 में 12089 और 2016-17 में 27302 चयनित बालिकाओं को लाभ नहीं मिल पाया। योजना का नाम बदलने के बाद सरकार ने इनकी सुध ही नहीं ली।
कब बनेगा औद्योगिक कॉरिडोर
प्रदेश में निवेश सम्मेलन के जरिये बड़े उद्योगों को आकर्षित करने के दावे तो हुए, लेकिन इस दिशा में अभी तक बहुत अधिक काम नहीं हो पाया है। औद्योगिक कॉरीडोर के जरिये बड़े उद्योगों को आकर्षित करने की दिशा में कदम आगे नहीं बढ़ पाए। कारण, अभी तक इसके लिए 4500 एकड़ जमीन का न मिलना है। दरअसल, केंद्र सरकार ने कुछ वषों पहले उत्तर और पूर्वी भारत को जोड़ने के लिए अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक कॉरीडोर योजना बनाई। यह कॉरीडोर पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड होते हुए कोलकाता तक पहुंचेगा। इस योजना में इन राज्यों के 21 शहर इस कॉरीडोर से जुड़ेंगे। कॉरीडोर मार्ग से 200 किमी के दायरे तक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाना है। उत्तराखंड ने इसके लिए ऊधमसिंह नगर को चिह्न्ति किया। यहां खुरपिया और पराग फार्म की करीब ढाई हजार हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है, लेकिन शेष जमीन नहीं तलाशी जा सकी है।
कब उतरेगा सी प्लेन
प्रदेश की झीलों व नदियों में तेजी से तैरती नाव और सी प्लेन को देखने के लिए जनता की निगाहें तरस गई हैं। सरकार द्वारा जोर-शोर से की गई कवायद के बावजूद ये योजना परवान नहीं चढ़ पाई है। इसके लिए जो नीति बनाई जानी थी वह धरातल पर ही नहीं उतर पाई है। दरअसल, प्रदेश सरकार का फोकस मुख्यतया पर्यटन क्षेत्र रहता आया है। टिहरी झील को पर्यटन के एक बड़े गंतव्य के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। यहां मोटर बोट चलाने के साथ ही सी-प्लेन उतारने की योजना है। इसके अलावा प्रदेश की अन्य झीलों व नदियों में भी मोटर बोट संचालित करने की दिशा में भी कदम उठाने की बात हुई। इसमें सुरक्षा के मानकों को सुनिश्चित करने के लिए नीति बनाने की चर्चा भी चली। दूसरे राज्यों की नीतियों का अध्ययन हुआ। फौरी प्रस्ताव बनाया गया जिस पर आज तक मुहर नहीं लग पाई है।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंडः राशन कार्ड में तुरंत जुड़ेगा नए सदस्य का नाम, मिलेगा नए सदस्यों का राशन
औली में स्कीइंग प्रशिक्षण
औली की बर्फीली ढलानों पर स्कीईंग का अलग ही रोमांच है। इसे विदेशों की तर्ज पर ट्रेनिंग सेंटर बनाने और अल्पाइन विलेज विकसित करने का खाका खींचा गया। कहा गया कि यहां बडे गोल झूले लगाए जाएंगे, जिनमें बच्चों के पकड़ने के लिए हैंडल लगे होंगे। झूला घूमेगा तो बच्चे इसके साथ घूमते हुए स्वयं स्कीईंग सीखेंगे। इससे यहां बड़ी संख्या में पर्यटकों आने की संभावना भी जताई गई। बावजूद इसकेयोजना अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाई है। देखा जाए तो औली में इसकी पार संभावनाएं भी हैं। यहां समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं होती हैं। हालांकि, सब कुछ कुदरत के भरोसे ही होता है। अच्छी बर्फबारी हुई तो सब अच्छा और इसका पूरा श्रेय सरकार लेती है। बर्फबारी कम हुई तो फिर यहां बनाई गई स्नो मेकिंग मशीन भी ढंग से काम नहीं कर पाती है। रखरखाव के अभाव में अन्य उपकरण भी खराब हो रहे हैं।
यह भी पढ़ें: Positive India: पहले देश की सेवा और अब कोरोना वॉरियर बन निभा रहे हैं फर्ज