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    तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर...कभी बदरीनाथ तक फैले थे सतोपंथ और भागीरथी खड़क ग्लेशियर, शोध में हुआ खुलासा

    Updated: Thu, 11 Dec 2025 09:00 AM (IST)

    उत्तराखंड में चौखंबा पर्वत समूह की करीब 7138 मीटर ऊंचाई से निकले वाले सतोपंथ और भागीरथी खड़क ग्लेशियर आज से 18 से 20 हजार साल पहले तक बदरीनाथ क्षेत्र ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, देहरादून। चौखंबा पर्वत समूह की करीब 7138 मीटर ऊंचाई से निकले वाले सतोपंथ और भागीरथी खड़क ग्लेशियर आज से 18 से 20 हजार साल पहले तक बदरीनाथ क्षेत्र तक फैले थे। इन दोनों ग्लेशियर का निचला सिरा आज 4200 से 3900 मीटर के आसपास है, जबकि उस दौर में ग्लेशियरों का विस्तार 2604 मीटर की ऊंचाई तक था।

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    यह निष्कर्ष वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने ऑप्टिकल ल्यूमिनेसेंस डेटिंग (ओएसएल) तकनीक के माध्यम से निकाला है।

    इस अध्ययन को बुधवार से वाडिया में शुरू हुई छठी राष्ट्रीय ल्यूमिनेसेंस डेटिंग एंड इट्स एप्लिकेशन कार्यशाला (तीन दिवसीय) में प्रस्तुत किया जा रहा है।

    शोध पत्र के अनुसार ग्लेशियर क्षेत्रों में आए बदलाव को तीन चरणों में दर्शाया गया है। 18 से 20 हजार साल पहले को पहला चरण मानते हुए ग्लेशियर क्षेत्रों का विस्तार बदरीनाथ और माणा क्षेत्र में 2604 मीटर तक पाया गया। कहा गया कि उस दौर में यह पूरी घाटी हिमनद से ढकी थी।

    हालांकि, 12 हजार साल पहले ग्लेशियर कुछ पीछे खिसके और इनका विस्तार 3550 मीटर तक पाया गया। दूसरी तरफ तीसरे चरण में 4500 साल पहले ग्लेशियर थोड़ा और ऊपर सरके और 3700 मीटर की ऊंचाई पर अपना नया दायरा बना लिया।

    अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि समय के साथ ग्लेशियर का दायरा निरंतर ऊपर की तरफ सिमट रहा है। हिमनदों (ग्लेशियर) के ये पुराने निशान हमें चेतावनी दे रहे हैं कि यदि मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन यदि ऐसे ही बढ़ता रहा तो हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल सकती है।

    ओएसएल डेटिंग ने ऐसे खोली ग्लेशियरों की कहानी

    यह ऐसी वैज्ञानिक तकनीक है, जो मिट्टी और रेत में मौजूद क्वार्ट्ज और फेल्डस्पार जैसे खनिजों की मदद से बताती है कि वह आखिरी बार सूरज की रोशनी के संपर्क में कब आए।

    जब तलछट (सेडिमेंट) नदी, बर्फ या ग्लेशियर के साथ बहती है तो धूप में आती है और उसकी घड़ी शून्य (रीसेट) हो जाती है। बाद में जब वह मिट्टी किसी जगह जम जाती है और धूप से कट जाती है तो उसमें ऊर्जा जमा होने लगती है।

    प्रयोगशाला में उस ऊर्जा को मापकर वैज्ञानिक गणना करते हैं कि वह सेडिमेंट कितने समय पहले जमा हुआ था। इसी तरह ओएसएल हमें हजारों साल पुरानी मिट्टी की उम्र बताता है, जिससे ग्लेशियर के फैलने और सिकुड़ने का समय पता चलता है।