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    अब आपदा से पहले मिलेगी चेतावनी, सूर्य की किरणें करेंगी मदद; पढ़ें क्‍या है रिमोट सेंसिंग व जीआइएस?

    Updated: Fri, 22 Aug 2025 04:08 PM (IST)

    उत्तराखंड में आपदाओं के बाद रिमोट सेंसिंग और जीआइएस मैपिंग की चर्चा है। यह तकनीक सूर्य के प्रकाश से काम करती है जिसमें उपग्रह रेडिएशन को ग्रहण कर डेटा भेजते हैं। जीआइएस इस डेटा का विश्लेषण कर आपदा की संभावना का पता लगाता है। इसरो ने एक सैटेलाइट भी लॉन्च किया है जो बादल एकत्र होते ही सूचना देगा जिससे आपदा प्रबंधन में मदद मिलेगी।

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    धराली आपदा के बाद रिमोट सेंसिंग व जीआइएस मैपिंग को लेकर चर्चा तेज।

    अश्वनी त्रिपाठी, जागरण, देहरादून। उत्तराखंड में आई धराली आपदा के बाद रिमोट सेंसिंग व जीआइएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) मैपिंग को लेकर चर्चा काफी तेज हो गई है। राज्य सरकार ने आपदाओं के पूर्व अनुमान के लिए रिमोट सेंसिंग व जीआइएस मैपिंग प्रयोगशालाओं को सक्रिय रहने के निर्देश दिए हैं।

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    आम आदमी के मन में भी यह बड़ा सवाल है कि आखिर यह विधियां कितनी कारगर हैं, यह कैसे काम करती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह पूरा सिस्टम सूर्य के प्रकाश से काम करता है। धरती के विभिन्न हिस्सों में सूर्य की किरणें पड़ने पर अलग-अलग तरह का इलेक्ट्रो मेग्नेटिक रेडियेशन पैदा होता है।

    रिमोट सेंसिंग प्रक्रिया में आकाशीय उपग्रह इस रेडियेशन को ग्रहण कर उसकी डिजिटल रिपोर्ट धरती पर भेजता है। इस रिपोर्ट का जीआइएस में विभिन्न पहलुओं से अध्ययन कर यह पता लगाया जाता है कि संबंधित स्थान पर असामान्य हुई स्थिति से कितने घंटे बाद किस तरह की आपदा आने की संभावना है।

    दून विश्वविद्यालय में नित्यानंद हिमालय शोध व अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर डीडी चौनियाल बताते हैं कि उत्तराखंड समेत सभी पहाड़ी राज्यों के लिए जीआइएस बेहद कारगर है। यह कंप्यूटर आधारित तकनीकी है, जो धरातलीय व गैर धरातलीय डाटा का विश्लेषण कर आपदा का पूर्वानुमान लगाती है। उन्होंने बताया कि रिमोट सेंसिंग में आकाशीय सेटेलाइट धरातल की तस्वीर लेते हैं।

    अलग-अलग विशेषज्ञ तस्वीरों के आधार पर धरातल पर स्थिति का आकलन करते हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि आने वाले समय में वहां पर किस प्रकार की स्थितियां पैदा हो सकती हैं।

    उन्होंने बताया कि इसरो ने हाल ही में एक सेटेलाइट छोड़ा है, जो पहाड़ में बादल एकत्र होते ही पूर्व सूचना देगा। चेताएगा कि कहां पर बादल एकत्र हैं, इससे कितनी दूरी तक के गांवों या आबादी के प्रभावित होने का खतरा है। इसी तरह भूकंप व लैंड स्लाइड से पूर्व भी यह सिस्टम अलार्म देने का काम करेगा।

    तस्वीर, सेंसर नेटवर्क और क्षेत्र सर्वेक्षण से तैयार होता माडल

    राज्य आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष विनय रूहेला ने बताया कि आपदा का पूर्वानुमान लगाने के लिए जीआइएस तकनीक का प्रयोग आपदा प्रबंधन विभाग पहले भी कर रहा था, अब विशेषज्ञ एजेंसियों के माध्यम से इसका प्रयोग बढ़ाया जाएगा।

    आपदा प्रबंधन के संदर्भ में, जीआइएस खतरों का मानचित्रण करने, कमजोरियों का आकलन करने और प्रतिक्रिया प्रयासों के समन्वय में मदद करती है। यह तकनीक उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों, सेंसर नेटवर्क और क्षेत्र सर्वेक्षण सहित विभिन्न डाटा स्रोतों का उपयोग कर गतिशील मानचित्र व माडल तैयार करती है, जो आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में निर्णय लेने में सहायक होते हैं।

    आपदा के बाद, जीआइएस घटना से पहले व बाद की तस्वीरों की तुलना कर क्षति का आकलन करने में मदद करता है, जिससे पुनर्निर्माण प्रयासों के लिए संसाधनों का आवंटन आसान हो जाता है।