बड़ा सवाल: क्या बिगड़े भूगोल को संवार पाएगा जीआइएस मास्टर प्लान
खामियों से भरे मास्टर प्लान को बाय-बाय करने की तैयारी एमडीडीए ने शुरू कर दी है और अब इसकी जगह लेगा जीआइएस आधारित मास्टर प्लान।
देहरादून, सुमन सेमवाल। देहरादून में वर्तमान में जो मास्टर प्लान लागू है, उसमें प्लान (नियोजन) के अलावा सब कुछ है। क्योंकि जिस मास्टर प्लान को वर्ष राज्य गठन के समय ही वर्ष 2000 या 2001 में लागू कर दिया जाना चाहिए था, उस पर 2005 में काम शुरू किया गया। इसके भी करीब नौ साल बाद नवंबर 2013 में यह तब लागू किया गया, जब धरातल पर मास्टर प्लान के विपरीत निर्माण कर दिए गए। यही कारण भी रहा कि इसका जोनल प्लान आज तक लागू नहीं किया जा सका है। खैर, खामियों से भरे इस मास्टर प्लान को बाय-बाय करने की तैयारी एमडीडीए ने शुरू कर दी है और इसकी जगह जीआइएस (जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम) आधारित मास्टर प्लान लागू करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। हालांकि, बड़ा सवाल फिर खड़ा हो गया है। वह यह कि यह मास्टर प्लान कब धरातल पर उतरेगा और धरातल पर पूरी तरह बिगड़ चुकी प्लानिंग में लैंडयूज (भूपयोग) किस तरह तय किए जाएंगे।
इस सच्चाई को कहने में भी कोई गुरेज नहीं है कि दून में मजाक बन चुके मास्टर प्लान के इस हश्र के लिए एमडीडीए के ही अधिकारी जिम्मेदार रहे हैं। क्योंकि वर्तमान में लागू मास्टर में तब तक विलंब किया जाता रहा, जब तक कि भूमाफिया ने अपनी जमीनों पर मनमाफिक निर्माण नहीं करा दिए। वर्ष 2013 में भी जब मास्टर प्लान लागू किया गया, उसमें भी हजारों बीघा वाले 23 से अधिक कृषि क्षेत्रों को आवासीय में परिवर्तित कर दिया गया।
वजह यह कि यहां पर बड़े पैमाने में भूमाफिया और प्रॉपर्टी डीलरों ने प्लॉटिंग कर भूखंडों को भोलेभाले लोगों को बेच दिया था। मास्टर प्लान लागू करने में जानबूझकर की गई अनदेखी का खामियाजा आज तक नजर आता है। दून के तमाम बाहरी इलाकों के साथ ही अभी भी कारगी, बंजारावाला, मोथरोंवाला, दूधली, शिमला बाईपास रोड के क्षेत्रों में बची खुची कृषि, सार्वजनिक, हरित श्रेणी की जमीनों पर प्लॉटिंग कर उन्हें बेचा जा रहा है। बेशक इनमें से बड़े पैमाने पर वह जमीनें हैं, जिनके आसपास पहले से ही रिहायशी भवन खड़े हो चुके हैं। इनका भूपयोग सिर्फ इसलिए आवासीय नहीं रखा गया, क्योंकि मास्टर प्लान में सभी तरह के भूपयोग के लिए जगह बनानी थी। इसी कारण आबादी के बीच ऐसे भूखंडों पर अभी भी प्लॉटिंग चल रही है और रोकथाम की जगह एमडीडीए के सुपरवाइजर, अवर व सहायक अभियंताओं आदि के लिए यह एक अवैध वसूली का जरिया भी बना है।
वर्षों से चली आ रही इस रीति के बीच एमडीडीए देहरादून व मसूरी के 55 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल पर जीआइएस आधारित मास्टर प्लान को लागू की कार्रवाई कर रहा है। इसके लिए संबंधित क्षेत्रों की सेटेलाइट मैपिंग कराने का भी निर्णय लिया गया है। ताकि धरातल की सटीक स्थिति सामने आ सके। ऐसे में सवाल फिर खड़ा होता है कि जहां वर्तमान मास्टर प्लान के विपरीत निर्माण हो चुके हैं, या हो रहे हैं, उन्हें अंतिम मानकर शेष भूखंड के हिसाब मास्टर प्लान तय किया जाएगा या भूपयोग की जानकारी सामने आने पर कार्रवाई की जाएगी। इन सबका जवाब अभी भविष्य की गर्त में छिपा है, लेकिन इतना जरूर दिखता है कि सालों खामियों से भरे मास्टर प्लान को ढोने के बाद दून के बिगड़ चुके भूगोल को सुधारने की चुनौती से पार पाना आसान नजर नहीं।
जोनल प्लान में थी आपत्तियों की भरमार
वर्ष 2013 में मास्टर प्लान को अंतिम रूप दिए जाने के बाद माना जा रहा था कि जोनल प्लान में धरातलीय खामियों को दूर कर दिया जाएगा। हालांकि, जब यह प्लान भी तैयार किया गया तो पता चला कि इसमें भी तमाम विसंगतियां हैं। बड़े-बड़े सरकारी भवनों व क्षेत्रों को तक प्लान में गायब कर दिया गया था। इसके अलावा प्लान में जहां कृषि भूमि दिखाई गई थी, वहां धरातल पर आबादी क्षेत्र पाया गया। वन भूमि और अन्य भूपयोग भी अलग-अलग पाए गए।
जोनल प्लान की खामियों पर अकेले उत्तराखंड इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा ने 246 आपत्तियां डाली थीं, जबकि इनमें से महज 35 आपत्तियों को ही सुनकर जोनल प्लान को आगे बढ़ा दिया गया। जीआइएस आधारित प्लान के लागू होने के बाद सभी आपत्तियों का स्वत: ही निस्तारण होने का दावा जरूर एमडीडीए अधिकारी कर रहे हैं।
इसरो की एजेंसी से मंगा रहे सेटेलाइट चित्र
नया मास्टर प्लान तैयार करने के लिए बीते साल नई दिल्ली स्थित मार्स कंपनी का चयन करने के बाद अब सेटेलाइट चित्र मंगाने को औपचारिकता पूरी कर ली गई है। इसके लिए इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) से सेटेलाइट चित्र मांगे गए हैं। सेटेलाइट से निर्धारित क्षेत्रफल की हाई रेजोल्यूशन पिक्चर ली जाएगी। इसकी तस्वीर इतनी बेहतर होगी कि धरातल पर 0.3 से 0.5 मीटर तक के भाग की स्थिति पूरी तरह नजर आ जाएगी। इसके बाद सेटेलाइट मैपिंग में खसरा नंबरों को सुपर इंपोज (हूबहू दर्ज) किया जाएगा।
इससे स्पष्ट हो जाएगा कि धरातल पर कितने भाग पर रिहायशी इलाका है या कमर्शियल, एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट आदि है। धरातलीय स्थिति के अनुसार ही मास्टर प्लान व जोनल प्लान भी तैयार किया जाएगा। दूसरी तरफ धरातल से डाटा जुटाने का काम भी शुरू कर दिया है। इसके तहत संबंधित कंपनी दून में मौजूद विभिन्न अवस्थापनाओं जैसे-स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय आदि की जानकारी जुटा रही है।
2.60 करोड़ के मास्टर प्लान में खामियां न होने का दावा
एमडीडीए अधिकारियों का कहना है कि इस मास्टर प्लान की सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि सेटेलाइट से मैपिंग किए जाने के चलते यह पूरी तरह सटीक होगा। जबकि अब तक के प्लान (वर्ष 2005-2025) में लैंडयूज व धरातलीय स्थिति में काफी भिन्नता है। क्योंकि वर्तमान में लागू मास्टर प्लान को धरातलीय सर्वे के आधार पर तैयार किया गया। सर्वे व इसके लागू होने में एक लंबा वक्त लग जाने के चलते धरातलीय स्थिति मास्टर प्लान से भिन्न हो गई। यही कारण है कि प्लान के धरातल से जुदा होने के चलते नक्शे पास कराने में लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके चलते लोग अवैध निर्माण करने को भी मजबूर हो जाते हैं।
इतने क्षेत्रफल पर होगी सेटेलाइट मैपिंग
देहरादून, 37432.96 हेक्टेयर
मसूरी, 17891.00 हेक्टेयर
कुल, 55323.96 हेक्टेयर
यह भी पढ़ें: प्रदेश की अस्थायी राजधानी में सियासी जमीन पर बिछी अतिक्रमण की बिसात
यह भी पढ़ें: 12900 हेक्टेयर भूमि का सर्वे नगर निगम के लिए बना चुनौती, जानिए वजह
यह भी पढ़ें: अधर में लटकी मसूरी मल्टीलेवल पार्किंग, रिपोर्ट तलब करेंगे सचिव