Move to Jagran APP

Dussehra 2022: दशहरे के दिन देहरादून के दो गांवों में होगा गागली युद्ध, वर्षों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा

Dussehra 2022 दशहरे के दिन कलंक से बचने को देहरादून के दो गांवों के बीच गागली युद्ध होगा। इस युद्ध की दोनों गांव (उत्पाल्टा व कुरौली) के ग्रामीणों ने तैयारियां पूर्ण कर ली है। इस युद्ध को देखने के लिए बड़ी संख्‍या में ग्रामीण उमड़ते हैं।

By bhagat singhEdited By: Sunil NegiPublished: Mon, 03 Oct 2022 06:02 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 06:02 PM (IST)
Dussehra 2022: दशहरे के दिन देहरादून के दो गांवों में होगा गागली युद्ध, वर्षों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा
पाइंता पर्व पर गागली युद्ध करते उत्पाल्टा व कुरोली के ग्रामीण। फाइल फोटो

भगत सिंह तोमर, साहिया: Dussehra 2022: देहरादून जनपद के जनजाति क्षेत्र जौनसार में वर्षों से चली आ रही गागली युद्ध की अनूठी परंपरा को लेकर क्षेत्र के लोगों में काफी उत्साह बना हुआ है। जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में पांच अक्टूबर को पाइंते यानी दशहरे पर रावण दहन के बजाय उत्पाल्टा व कुरौली के बीच गागली युद्ध होगा।

loksabha election banner

रोचक है इस युद्ध की कहानी

यह युद्ध पश्चाताप में होता है, जिसके पीछे दो बहनों से जुड़ी कहानी काफी रोचक है। दोनों गांवों के ग्रामीण युद्ध कर पश्चाताप करते हैं।

अरवी के पत्तों व डंठलों से लड़ते हैं जंग

पांच अक्टूबर को होने वाले गागली युद्ध की दोनों गांव के ग्रामीणों ने तैयारियां पूर्ण कर ली हैं। युद्ध में कुरौली व उत्पाल्टा के ग्रामीण गागली यानि अरवी के पत्तों व डंठलों से जंग लड़ते हैं। यह जंग ऐसी है जिसमें किसी की हार या जीत नहीं होती है।

ढोल-नगाड़ों व रणसिंघे के साथ आते ग्रामीण

कालसी ब्लाक क्षेत्र के कुरौली व उत्पाल्टा के ग्रामीण पाइंता पर्व पर अपने-अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठे होकर ढोल-नगाड़ों व रणसिंघे की धुन पर हाथ में गागली के डंठल व पत्तों को लहराते हुए नाचते गाते नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर देवदार नामक स्थल पर पहुंचते हैं। जहां पर दोनों गांवों के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध होता है।

  • गागली के पत्तों व डंठल से युद्ध इतना भयंकर होता है कि देखने वाला भी एक बार घबरा जाता है।

युद्ध में नहीं होती कोई हार जीत

उत्पाल्टा व कुरौली के ग्रामीण खत स्याणा राजेंद्र राय, कुंवर सिंह राय, जालम सिंह, गुलाब सिंह, रणवीर राय, हरि सिंह, सतपाल राय, पूरण सिंह, श्याम सिंह आदि का कहना है कि युद्ध में कोई हार जीत नहीं होती।

युद्ध समाप्त होने पर देते एक दूसरे को बधाई

युद्ध समाप्त होने पर दोनों गांवों के ग्रामीण गले मिलकर एक दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं। उसके बाद उत्पाल्टा गांव के सार्वजनिक स्थल पर ढोल नगाडों की थाप पर सामूहिक रूप से नृत्य का आयोजन होता है। जिसमें सभी ग्रामीण पारंपरिक लोक नृत्य तांदी, रासो, हारूल का आनंद लेते हैं।

यह भी पढ़ें:- Navratri 2022 : उत्‍तराखंड का ऐसा इलाका जहां केवल अष्टमी की ही होती है पूजा, नहीं मनाई जाती पूरी नवरात्रि

यह है गागली युद्ध का इतिहास

गागली युद्ध के पीछे किवदंती है कि कालसी ब्लाक के उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी व मुन्नी गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं में पानी भरने गई थीं। रानी अचानक कुएं में गिर गई।

  • मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की बात बताई तो ग्रामीणों ने मुन्नी पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगा दिया।
  • जिससे खिन्न होकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। इसके बाद ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ।

यह भी पढ़ें:- Dussehra 2022: उत्‍तराखंड में वर्षों से राम की जीत का जश्न मना रहे रहीम के बंदे, सामाजिक सद्भाव की अनूठी मिसाल

मूर्तियां बनाकर कुएं में की जाती विसर्जित

इसी घटना को याद कर पाइंता के दिन दो बहनों की मूर्तियां बनाकर कुएं में विसर्जित की जाती है। कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा व कुरौली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं। बताते हैं कि जिन परिवारों की रानी, मुन्नी थी, उन्हीं परिवारों में जब तक इस दिन कन्याओं का जन्म नहीं होता, तब तक यह पाइंता पर्व मनाया जाता रहेगा।

यह भी पढ़ें:- Dussehra 2022: चमोली में भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, दशहरे पर नहीं जलाया जाता लंकापति का पुतला


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.