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Dussehra 2022: चमोली में भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, दशहरे पर नहीं जलाया जाता लंकापति का पुतला

Dussehra 2022 उत्‍तराखंड के चमोली जिले में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान शिव के साथ रावण की पूजा होती है। मान्‍यता है कि यहीं पर रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार वर्षों तक तपस्या की। यहां दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता।

By Jagran NewsEdited By: Sunil NegiPublished: Mon, 03 Oct 2022 04:46 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 04:46 PM (IST)
Dussehra 2022: चमोली में भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, दशहरे पर नहीं जलाया जाता लंकापति का पुतला
Dussehra 2022: उत्‍तराखंड के चमोली जनपद के घाट ब्‍लाक स्थित बैरासकुंड में भगवान शिव का मंदिर है।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Dussehra 2022: लंकापति रावण भगवान शिव का बड़ा भक्‍त था। उसने भोलेनाथ को प्रसन्‍न करने के लिए कठोर तप किया। उसने अमरता का वरदान पान के लिए अपने सिर काटकर शिव को चढ़ाए। आज हम आपको इसी जुड़ी कहानी बताने जा रहे हैं। चमोली जनपद में एक मंदिर ऐसा है जहां शिव के साथ रावण की पूजा होती है।

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भगवान शिव के साथ होती रावण की पूजा भी

उत्‍तराखंड के चमोली जनपद के घाट ब्‍लाक स्थित बैरासकुंड में भगवान शिव का मंदिर है। मान्‍यता है कि यह वहीं स्‍थान है जहां रावण ने भोलेनाथ को प्रसन्‍न करने को 10 हजार साल तक तपस्‍या की। यहां आज भी रावण शिला और यज्ञ कुंड है। यहां मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग भी है। यहां शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है।

यह है मान्‍यता

  • स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख मिला है कि रावण भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए तपस्‍या कर रहा था। इस दौरान रावण ने अपने 9 सिर यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिए थे।
  • जब रावण 10वें सिर को समर्पित करने लगा तो भोलेनाथ उसके सम्मुख साक्षात प्रकट हो गए। शिव ने तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर मनवांछित वरदान दिया।
  • लोक मान्यता है कि रावण ने भगवान शिव से इस स्थान पर हमेशा के लिए विराजने का वरदान मांगा था। आज भी इस स्‍थान को शिव की पवित्र भूमि के रूप में माना जाता है।

दशानन के नाम से पड़ा दशोली

मान्‍यता है कि रावण ने यही पर नाड़ी विज्ञान और शिव स्त्रोत की रचना की थी। बैरासकुंड में शिव दर्शनों को आने वाले श्रद्धालु रावण को भी श्रद्धा से देखते हैं। कुंड के पास रावण शिला है। यहां रावण की भी पूजा होती। ऐसा कहा जाता है कि पूरे क्षेत्र का नाम दशानन (रावण) के नाम से दशोली पड़ा। दशोली शब्द रावण के 10 सिर का अपभ्रंश है।

नहीं होता दशहरे पर रावण के पुतले का दहन

आज भी दशोली क्षेत्र में रामलीला की शुरुआत रावण के तप और शिव के उसे वरदान देने से होती है। इसके बाद ही राम के जन्म की लीला का मंचन होता है। महत्‍वपूर्ण यह है कि इस क्षेत्र में दशहरे पर रावण के पुतले का दहन नहीं होता है।

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ऐसे पहुंचें यहां तक

सबसे पहले आप ऋषिकेश से बदरीनाथ हाइवे पर 198 किलोमीटर की दूरी तय कर चमोली जनपद के नंदप्रयाग तक पहुंचें। नंदप्रयाग से वाहन से 24 किलोमीटर की दूरी तय कर गिरी पुल होते हुए बैरासकुंड तक पहुंचें।

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