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    Uttarakhand के किसानों ने बदला फसल का ट्रेंड, ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती और सूखे को भी झेल लेता है यह अनाज

    Millets Farming उत्तराखंड के किसानों ने फसल का ट्रेंड बदल दिया है। अब वे कम लागत कम पानी और कम मेहनत वाली मोटे अनाज की खेती पर ध्यान दे रहे हैं। कौणी की फसल एक बार के लिए सूखे को भी झेल लेती है। किसानों को नकदी फसलों के साथ ही पारंपरिक मोटे अनाज की खेती भी जरूर करनी चाहिए।

    By rajesh panwar Edited By: Nirmala Bohra Updated: Thu, 19 Sep 2024 01:34 PM (IST)
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    Millets Farming: फायदे देखकर पारंपरिक मोटे अनाज की खेती के लिए प्रेरित हुए किसान. Concept Photo

    भगत सिंह तोमर, जागरण साहिया। Millets Farming: साहिया क्षेत्र के किसानों ने फिर से मोटे अनाज की खेती पर फोकस किया है। यहां पर बड़े पैमाने पर किसान कौणी की खेती कर रहे हैं। मिलेट्स वर्ष होने के कारण भी किसान फायदे देखकर पारंपरिक मोटे अनाज की खेती के लिए प्रेरित हुए हैं।

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    पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक कृषि करने वाले किसान कई फसलों का उत्पादन करते हैं। बावजूद इसके धीरे-धीरे किसानों ने भी आधुनिकता की इस दौड़ में खुद को पिछड़ता हुआ देख खेती किसानी के तरीकों में बदलाव किया। किसान अधिक आय वाली फसलों पर जोर दे रहे हैं। नकदी फसलों के उत्पादन में जौनसार बावर के किसान पहले से ही अग्रणी हैं।

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    पौष्टिकता का खजाना माने जाने वाले मोटे अनाज का उत्पादन खर्च नाम मात्र का होने पर किसानों ने अब इस पर फोकस किया है। जौनसार के ईच्छला गांव के किसान अतर सिंह ने बताया कि कौणी का उपयोग पहले बहुत ज्यादा होता था। बुजुर्गों द्वारा बच्चों को खसरा, बुखार में कौणी को खिलाया जाता था। शुगर के लिए भी इसे लाभदायक माना जाता है।

    कई साल तक किया जा सकता है स्टोर

    कौणी, मंडुवा और अन्य मोटे अनाजों को बोना किसानों ने छोड़ दिया था, किसान नकदी फसल पर ज्यादा जोर दे रहे थे, लेकिन अब किसानों में मोटे अनाज के प्रति जागरूकता आई है।

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    इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते है कि कोंदा (रागी), झंगौरा, चैणी और कौणी ऐसा मोटा अनाज है, जिसका दाने पर कवर होता है। जो कई साल तक स्टोर किया जा सकता है। इन अनाजों में कीड़ा नहीं लगता है। इन फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान तोते का झुंड नुकसान पहुंचाता है।

    सभी मोटे अनाज पौष्टिकता से भरपूर

    कौणी की फसल उत्पादन करने में किसानों को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। यह फसल एक बार के लिए सूखे को भी झेल लेती है। किसानों को नकदी फसलों के साथ ही पारंपरिक मोटे अनाज की खेती भी जरूर करनी चाहिए।

    कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के विज्ञानी डा. संजय सिंह राठी का कहना है कि कौणी समेत सभी मोटे अनाज पौष्टिकता से भरपूर हैं। कम लागत, कम पानी में कौणी तैयार हो जाती है। कौणी को किसी भी प्रकार के कीट, रोग नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इनको पोषक तत्व अनाज मोटे अनाज की श्रेणी में रखते हैं। इनकी खेती बहुत ही लंबे समय से पर्वतीय अंचल उत्तराखंड, हिमाचल, और उत्तर भारतीय राज्य में होती है।