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    Famous Temples In Pauri: ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां किया था विश्राम, यहां हैं चिमटानुमा और त्रिशूलनुमा देवदार के पेड़

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 28 Jun 2022 05:59 PM (IST)

    Famous Temples In Pauri उत्‍तराखंड के पौड़ी जनपद के लैंसडोन से करीब 36 किमी की दूरी पर स्थित है ताड़केश्‍वर मंदिर। मान्‍यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने ताड़कासुर का वध करने के बाद विश्राम किया था।

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    लैंसडौन से करीब 36 किलोमीटर दूर स्थित ताड़केश्वर धाम ।

    अजय खंतवाल, कोटद्वार (पौड़ी)। अगर आप जनपद पौड़ी के अंतर्गत पर्यटन नगरी लैंसडौन पहुंचे हैं तो लैंसडौन से करीब 36 किलोमीटर दूर स्थित ताड़केश्वर धाम का भ्रमण अवश्य कीजिए।

    समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर देवदार के वृक्षों से घिरे इस पावन स्थल में पहुंच पर्यटकों को बेहद सुकून महसूस होता है। इस मंदिर को भगवान शिव की विश्राम स्थली भी कहा जाता है।

    स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित उत्तर वाहिनी नदियों विष गंगा व मधु गंगा के उद्गम स्थल को ताड़केश्वर धाम में माना गया है। मंदिर परिसर में मौजूद चिमटानुमा व त्रिशूलनुमा देवदार के पेड़ श्रद्धालुओं की आस्था को प्रबल करते हैं।

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    ये है मान्‍यता

    मान्यता है कि ताड़कासुर राक्षस का वध करने के उपरांत भगवान शिव ने इसी स्थान पर आकर विश्राम किया। विश्राम के दौरान जब भगवान शिव को सूर्य की तेज किरणों से बचाने के लिए माता पार्वती ने शिव के चारों ओर देवदार के सात वृक्ष लगाए, जो आज भी ताड़केश्वर मंदिर के अहाते में मौजूद हैं।

    हालांकि, यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर करीब 1500 वर्ष पूर्व एक सिद्ध संत पहुंचे थे। संत गलत कार्य करने वालों को फटकार लगाने के साथ ही उन्हें आर्थिक व शारीरिक दंड की चेतावनी भी देते थे।

    क्षेत्र के लोग इन संत को शिवांश मानते थे। इस पूरे क्षेत्र में इन संत का बहुत प्रभाव था। संत की फटकार (ताड़ना) के चलते ही इस स्थान का नाम ताड़केश्वर पड़ा।

    मान्यता यह भी है कि शिव को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने अपने शरीर को ताड़ना देते हुए इसी जगह भगवान शिव की प्रार्थना की थी।

    यहां ऐसे पहुंचे

    कोटद्वार-रिखणीखाल मोटर मार्ग पर चखुलियाखाल से पांच किमी. की दूरी पर स्थित ताड़केश्वर धाम। कोटद्वार से चखुलियाखाल तक लगातार बसें व जीप-टैक्सियां का आवागमन रहता है। निजी वाहनों से आने वाले श्रद्धालु मंदिर तक अपने वाहन से पहुंच सकते हैं। लेकिन, सवारी वाहनों से आने वाले यात्रियों को पांच किमी. की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है।

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