Famous Temples In Kotdwar: सिद्धबली मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामनाएं, यहां गुरु गोरखनाथ और हनुमान के बीच हुआ था भीषण युद्ध
Famous Temples In Kotdwar उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के कोटद्वार क्षेत्र में सिद्धबली मंदिर है। मान्यता है कि यहां गुरु गोरखनाथ और हनुमान के बीच युद्ध हुआ था। यहां हनुमान सिद्धबाबा के रूप में विराजमान हैं। सिद्धबली मंदिर में हर मनोकामनाएं पूरी होती है।

जागरण संवाददाता, कोटद्वार। 'गंगाद्वारोत्तरेभागे गंगाया: पाग्विभाके नदी कौमुद्वती ख्याता सर्वदरिद्रनाशिनी'। अर्थात गंगाद्वार (हरिद्वार) के उत्तर पूर्व इशान कोण के कौमुद तीर्थ के किनारे कौमुद्री नाम की प्रसिद्ध द्ररिता हरने वाली नदी निकलती है।
जिस प्रकार गंगाद्वार माया क्षेत्र हरिद्वार व कुब्जाम्र ऋषिकेश के नाम से प्रचलित हुए, उसी प्रकार कौमुद्री वर्तमान में खोह नदी के नाम से जानी जाने लगी। इस पौराणिक खोह नदी के तट पर सिद्धों का डांडा में अवस्थित है श्री सिद्धबली धाम।
नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 534 पर कोटद्वार शहर से करीब दो किमी. दूर खोह नदी के तट पर अवस्थित सिद्धबली धाम की महत्ता इतनी अधिक है कि कोटद्वार ही नहीं, बिजनौर, मेरठ, दिल्ली व मुंबई के साथ ही कई अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर शीश नवाते व मनोकामनाएं मांगते हैं।
मनोकामनाएं पूर्ण होने पर श्रद्धालु मंदिर में भंडारे का भी आयोजन करते हैं। मंदिर में भंडारे के लिए वर्ष 2032 तक की एडवांस बुकिंग हो रखी है। यूं तो मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है। लेकिन, जनवरी, फरवरी, मई, जून, अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर में मंदिर में अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं।
शनिवार, रविवार व मंगलवार को मंदिर में अवश्य भंडारा होता है। अन्य मौकों पर श्रद्धालु अपनी सुविधानुसार किसी भी दिन भंडारा कर सकते हैं। दिसंबर माह में मंदिर परिसर में तीन दिन का भव्य महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें भारी तादाद में श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं।
मंदिर की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय डाक विभाग की ओर से वर्ष 2008 में मंदिर के नाम डाक टिकट भी जारी किया गया।
मंदिर का महात्मय
कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा कहा जाता है। गोरख पुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्र नाथ पवनसुत बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे।
जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े। मान्यता है कि इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया।
जिसके बाद दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को परास्त नहीं कर पाया, जिसके बाद बजरंग बली अपने वास्तविक रूप में आ गए व गुरु गोरखनाथ के तपो बल से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा।
जिस पर गुरु गोरखनाथ ने बजरंग बली श्री हनुमान से इसी स्थान पर उनके प्रहरी के रूप में रहने की गुजारिश की। गुरु गोरखनाथ व बजरंग बली हनुमान के कारण ही इस स्थान का नाम 'सिद्धबली' पड़ा व आज भी यहां पवन पुत्र हनुमान प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद को साक्षात रूप में विराजमान रहते हैं।
यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर सिक्खों के गुरू गुरूनानक व एक मुस्लिम फकीर ने भी आराधना की थी।
स्फटिक शिवलिंग व शनि देव भी विराजमान
कोटद्वार में श्री सिद्धबली मंदिर परिसर में स्फटिक शिवलिंग में भगवान शिव विराजमान हैं, वहीं शनि देव जी महाराज का भी मंदिर इस परिसर में स्थापित है। हाल ही में मंदिर में मां जगदंबा की भी प्रतिमा स्थापित की गई।
कैसे पहुंचे
श्री सिद्धबली मंदिर तक पहुंचने के लिए निजी वाहन से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा कोटद्वार के झंडा चौक से भी आसानी से तिपहिया वाहन मिल जाते हैं। देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही देश के विभिन्न शहरों से कोटद्वार के लिए बस सेवाएं हैं। साथ ही दिल्ली से ररेल के जरिए भी आसानी से कोटद्वार पहुंचा जा सकता है।
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