Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उत्तराखंड के नाम से बन रहीं नकली दवाएं, ड्रग एसोसिएशन ने जताई चिंता

    उत्तराखंड ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने नकली दवाओं के मुद्दे पर चिंता जताई है। उनका आरोप है कि कुछ बाहरी तत्व उत्तराखंड के नाम पर घटिया दवाएं बेच रहे हैं जिससे राज्य की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। एसोसिएशन ने सरकार से दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने एनएसक्यू दवाओं को नकली कहने पर भी आपत्ति जताई।

    By Sukant mamgain Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 03 Jul 2025 10:24 AM (IST)
    Hero Image
    ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने जताई कड़ी नाराजगी। जागरण

    जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि बाहरी राज्यों में उत्तराखंड के नाम से दवाएं बनाकर बेची जा रही हैं। जबकि उत्तराखंड के जिस पते का इस्तेमाल दवा के रैपर पर किया जा रहा है, वहां कोई फैक्ट्री ही नहीं है। इससे न केवल फार्मा सेक्टर की साख को धक्का लग रहा है, बल्कि राज्य की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो रही है। एसोसिएशन ने ऐसी फर्जी दवा कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बुधवार को प्रेस क्लब में पत्रकारों से बात करते हुए एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने यह गंभीर आरोप लगाए। अध्यक्ष प्रमोद कालानी ने कहा कि उत्तराखंड में बनी दवाएं गुणवत्ता और वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप होती हैं। लेकिन कुछ शरारती तत्व बाहरी राज्यों में घटिया दवाएं बनाकर उन पर उत्तराखंड का पता दर्ज कर रहे हैं, जिससे पूरा ब्रांड और फार्मा हब बदनाम हो रहा है।

    उन्होंने कहा कि गैरकानूनी गतिविधियों को उत्तराखंड की औद्योगिक पहचान से जोड़ा जा रहा है, जबकि हकीकत में राज्य की दवा इकाइयां पूरी तरह से मापदंडों का पालन करती हैं। एसोसिएशन ने सरकार और औषधि नियंत्रण विभाग से मांग की है कि जो कंपनियां फर्जी पते और उत्तराखंड की आड़ में नकली दवा बाजार में उतार रही हैं, उनके खिलाफ तत्काल जांच कर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए।

    एनएसक्यू दवाओं को नकली कहना गलत

    एसोसिएशन के सदस्य पीके बंसल ने स्पष्ट किया कि एनएसक्यू (नान स्टैंडर्ड क्वालिटी) दवाओं को अक्सर नकली कहकर प्रचारित किया जाता है, जबकि ऐसी अधिकांश दवाएं पीएच लेवल, डिसइंटीग्रेशन टाइम या लेबलिंग त्रुटि जैसी तकनीकी खामियों के कारण अस्थायी रूप से फेल होती हैं। उन्होंने कहा कि यह सीधे-सीधे 'फेक मेडिसिन' कहना गलत है।

    फेल सैंपल की होती है अपील प्रक्रिया

    महासचिव संजय सिकारिया ने कहा कि हाल में जिन 27 सैंपल फेल होने की बात कही जा रही है, वे भी मामूली तकनीकी कारणों से फेल हुए हैं। उन्होंने बताया कि नियमानुसार, कंपनियों को 28 दिनों के भीतर हायर टेस्टिंग लैब (कोलकाता) में अपील का अधिकार होता है। यदि वहां से भी सैंपल फेल हो, तभी उसे नकली या सब-स्टैंडर्ड माना जाता है।

    जलवायु परिवर्तन का भी पड़ता है असर

    एसोसिएशन के सदस्य रमेश जैन ने कहा कि दवाओं की गुणवत्ता पर जलवायु परिवर्तन का भी असर पड़ता है। कुछ दवाएं भौगोलिक और मौसमीय बदलाव से प्रभावित होती हैं, लेकिन उन्हें सीधे नकली कहना वैज्ञानिक रूप से अनुचित है।