सांसों का पहरेदार बना एथेनाल, उत्तराखंड में बचाई 75 हजार टन ऑक्सीजन
उत्तराखंड में एथेनॉल का उपयोग पर्यावरण और किसानों दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। पेट्रोल में 19% एथेनॉल मिलाने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो रहा है और ऑक्सीजन की बचत हो रही है। राज्य सेल्यूलोसिक एथेनॉल बनाने के लिए डेमो प्रोजेक्ट भी चला रहा है। किसानों को गन्ना मक्का और अन्य अनाज उगाने से सीधा फायदा मिल रहा है उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।

अश्वनी त्रिपाठी, जागरण देहरादून। केंद्र सरकार पेट्रोल में एथेनाल की मात्रा बढ़ाने पर विचार कर रही है। इस मुद्दे पर कई तरह की सहमति-असहमति के बीच एथेनाल उत्तराखंड की आबोहवा को असीमित लाभ पहुंचा रहा है।
सालाना 593 मिलियन लीटर पेट्रोल की खपत वाले उत्तराखंड में 19 प्रतिशत एथेनाल मिलाया जा रहा है। एथेनाल मिश्रित ईधन से सालाना एक लाख टन से अधिक कार्बन डाइआक्साइड को हवा में घुलने से रोककर लगभग 75 हजार टन ऑक्सीजन बचाई जा रही है, वहीं कार्बन मोनोआक्साइड, हाइड्रोकार्बन और अन्य कई प्रदूषित तत्वों का उत्सर्जन भी कम किया गया है।
केंद्र सरकार पेट्रोल में एथेनाल की मात्रा को बढ़ाकर 27 प्रतिशत तक करने पर विचार कर रही है। इसे लेकर कुछ समय पहले सरकार की ओर से संकेत भी दिए जा चुके हैं। इस पर अलग-अलग वर्गों के अपने मत हैं, लेकिन जब हम उत्तराखंड राज्य की दृष्टि से देखते हैं तो एथेनाल से पर्यावरण को होने वाले लाभ की तुलना में नुकसान दूर तक नहीं दिखते।
उत्तराखंड सिर्फ एथेनाल का प्रयोग करने में ही आगे नहीं आया है, बल्कि सेल्यूलोसिक इथेनाल बनाने के लिए डेमो प्रोजेक्ट भी चला रहा है। यह फसल के अवशेष व बायोमास से एथेनाल बनाने का नवाचार है। प्रयोग सफल हुआ तो खेतों में अवशेष जलाने की समस्या काफी कम होगी और हवा में धुआं भी घटेगा।
राज्य में एथेनाल उत्पादन
- इंडिया ग्लाइकोल्स लिमिटेड, काशीपुर- इस प्लांट की क्षमता लगभग 590 किलो लीटर प्रति दिन है।
- हरिद्वार- यहां 50 किलो लीटर प्रति दिन ग्रेन-बेस्ड एथेनाल का प्लांट प्रस्तावित है।
- सेल्यूलोसिक एथेनाल डेमो प्लांट- यह प्रोजेक्ट लकड़ी, फसल अवशेष जैसे बायोमास से सालाना लगभग 7.5 लाख लीटर एथेनाल का उत्पादन होगा।
किसानों की आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी
एथेनाल उत्तराखंड के लिए सिर्फ स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प नहीं, बल्कि उद्योग, निवेश और किसानों की आय बढ़ाने का नया रास्ता बनकर उभर रहा है। आने वाले समय में यह राज्य की ऊर्जा और आर्थिक आत्मनिर्भरता की मजबूत आधारशिला बन सकता है। गन्ना, मक्का और अन्य अनाज उगाने वाले किसानों को इसका सीधा फायदा मिलेगा।
वर्तमान में प्रदेश की निजी चीनी मिलों में एथेनाल का भी उत्पादन किया जा रहा है। अब सहकारी चीनी मिलों में भी इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं, जिसकी कार्ययोजना तैयार की जा रही है। - सौरभ बहुगुणा, मंत्री, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग
ऑक्सीजन की बचत का गणित
- उत्तराखंड में सालाना पेट्रोल खपत- 593 मिलियन लीटर
- इसमें डाला गया एथेनाल (19 प्रतिशत) - 112.6 मिलियन लीटर
- अनुमानित वार्षिक कार्बन डाइ आक्साइड की कमी (40 प्रतिशत) - 104,000 टन कार्बन डाइ आक्साइड / वर्ष
- 1 टन कार्बन व 2.66 टन ऑक्सीजन मिलकर बनाते 3.66 टन कार्बन डाइ आक्साइड
- 104,000 टन कार्बन डाइ आक्साइड बनाने में खर्च होने वाली ऑक्सीजन जो अब बच रही -75,700 टन
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।