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    गलियारे बाधित, स्वच्छंद विचरण कैसे करें गजराज; 6643.5 वर्ग किमी में फैला हाथियों का बसेरा

    Updated: Sat, 04 Oct 2025 02:39 PM (IST)

    उत्तराखंड में हाथियों के गलियारे बाधित होने से मानव-हाथी संघर्ष बढ़ रहा है। कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व समेत 13 वन प्रभागों में हाथियों का बसेरा है लेकिन गलियारों में रुकावटें हैं। वन विभाग गलियारों को निर्बाध करने और वासस्थल विकास पर ध्यान दे रहा है। पिछले पांच सालों में हाथियों के हमलों में कई लोगों की जान गई है।

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    आवाजाही के रास्तों में रुकावट के चलते मनुष्य से हो रहा टकराव. File

    केदार दत्त, जागरण देहरादून। देश में हाथियों के लिए उत्तर पश्चिमी सीमा का अंतिम पड़ाव है उत्तराखंड। एक दौर में यहां से हाथियों की आवाजाही बिहार तक हुआ करती थी। वन विभाग के अखिलेखों के अनुसार इसके लिए हाथी परंपरागत गलियारों अर्थात रास्तों का उपयोग करते थे, लेकिन वक्त के करवट बदलने के साथ ही ये सिमटते चले गए।

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    वर्तमान में कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत 13 वन प्रभागों के यमुना से लेकर शारदा नदी तक फैले 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों का बसेरा है, लेकिन इनकी आवाजाही के चिह्नित 11 परंपरागत गलियारे जगह-जगह बाधित हैं।

    ऐसे में उन्हें एक से दूसरे जंगल में जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार जंगल की सेहत और हाथियों की अच्छी संतति के लिए हाथियों की लंबी प्रवास यात्राएं आवश्यक हैं। यद्यपि, अब वन विभाग ने गलियारों को निर्बाध करने के लिए कदम उठाने के साथ ही हाथियों के लिए वासस्थल विकास पर ध्यान केंद्रित करने की ठानी है।

    जंगल और विकास के बीच सामंजस्य न होने का असर राज्य में हाथियों के विचरण पर भी पड़ा है। हाथियों की आवाजाही के परंपरागत गलियारों में कहीं मानव बस्तियां उग आई हैं तो कहीं सड़क व रेल मार्गों ने इनमें बाधाएं उत्पन्न की हैं। आवाजाही के रास्ते बाधित होने के कारण हाथी नए रास्तों की तलाश में आबादी की तरफ भी रुख कर रहे हैं। नतीजतन, उनका मनुष्य से टकराव हो रहा है।

    यद्यपि, पिछले 25 साल से हाथियों के बाधित गलियारों को निर्बाध रखने पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन ठोस पहल की प्रतीक्षा है। जानकारों का कहना है कि गलियारे निर्बाध होंगे तो हाथियों का मनुष्य से टकराव टालने में भी मदद मिलेगी।

    राज्य में हाथी

    • गणना वर्ष, संख्या
    • 2020, 2026
    • 2017, 1839
    • 2015, 1797
    • 2012, 1559

    यहां है हाथियों की मौजूदगी

    राजाजी टाइगर रिजर्व, कार्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा देहरादून, लैंसडौन, कालसी, हरिद्वार, नरेंद्रनगर, तराई पूर्वी, तराई केंद्रीय, रामनगर, हल्द्वानी, तराई पश्चिमी व चंपावत वन प्रभाग।

    चिह्नित हाथी गलियारे

    कासरो-बड़कोट, चीला-मोतीचूर, मोतीचूर-गौहरी, रवासन-सोनानदी (लैंसडौन), रवासन-सोनानदी (बिजनौर), दक्षिण पतली दून-चिलकिया, चिलकिया-कोटा, कोटा-मैलानी, फतेहपुर-गदगदिया, गौला रौखड़-गौराई -टाडा, किलपुरा-खटीमा-सुरई।

    ये प्रभाग हैं ज्यादा संवेदनशील

    कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे लैंसडौन, हरिद्वार व देहरादून वन प्रभागों को हाथी-मानव संघर्ष के दृष्टिकोण से अधिक संवेदनशील माना जाता है। कारण यह कि इन तीनों वन प्रभागों के जंगल कार्बेट व राजाजी में आने-जाने वाले हाथियों के लिए गलियारे का काम करते हैं। आबादी भी इन प्रभागों से लगे क्षेत्रों में अधिक हैं।

    पांच साल में हाथियों के हमले

    • वर्ष, मृतक, घायल
    • 2025 07, 03
    • 2024, 11, 07
    • 2023, 05, 07
    • 2022, 09, 13
    • 2021, 13, 17

    ‘हाथी गलियारों को निर्बाध रखने के दृष्टिगत प्रभावी कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारा जाएगा। इसके साथ ही जंगलों में हाथियों के लिए भोजन-पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हो, इस क्रम में वासस्थल विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।’ - आरके मिश्र, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखंड