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तीन राज्यों के चुनाव 2019 के परिणाम के संकेत नहीं: डॉ. डीएन भटकोटी

जागरण विमर्श में डीएवी पीजी कॉलेज के राजनीति शास्त्र के रिटायर्ड एचओडी डॉ. डीएन भटकोटी ने कहा कि तीन राज्यों के चुनाव 2019 के परिणाम के संकेत नहीं हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 25 Dec 2018 09:34 AM (IST)Updated: Tue, 25 Dec 2018 09:34 AM (IST)
तीन राज्यों के चुनाव 2019 के परिणाम के संकेत नहीं: डॉ. डीएन भटकोटी
तीन राज्यों के चुनाव 2019 के परिणाम के संकेत नहीं: डॉ. डीएन भटकोटी

देहरादून, जेएनएन। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनाव के परिणाम को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम का संकेत नहीं माना जा सकता है। इतना जरूर है कि इस चुनाव के बाद भाजपा व कांग्रेस दोनों को अपनी मौजूदा स्थिति पर मंथन करने और उसे बेहतर बनाने का अवसर मिल गया है। यह बात 'जागरण विमर्श' में डीएवी पीजी कॉलेज के राजनीति शास्त्र के रिटायर्ड एचओडी डॉ. डीएन भटकोटी ने कही।

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मंगलवार को दैनिक जागरण के पटेलनगर स्थित कार्यालय में 'तीन राज्यों के चुनाव नतीजों का संदेश' विषय पर जागरण विमर्श का आयोजन किया गया। विमर्श को संबोधित करते हुए डॉ. डीएन भटकोटी ने कहा कि तीन राज्यों के चुनाव परिणाम में न तो भाजपा हारी है, न ही कांग्रेस जीती है। चुनाव परिणाम को लेकर अति उत्साहित कांग्रेस सिर्फ छत्तीसगढ़ की जीत का श्रेय ले सकती है। 

वरना दो अन्य राज्यों में अंतर इतना अधिक नहीं है कि उसे वर्ष 2019 के परिणाम को लेकर किसी तरह का संदेश माना जाए। बात जब हालिया विधानसभा चुनाव की हो रही है तो तेलंगाना व मिजोरम को क्यों नजरंदाज किया जाना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस यदि तीन राज्यों की जीत को आधार बना रही है तो उसे इन दो राज्यों में मिली करारी शिकस्त पर भी मंथन करना चाहिए। इन दो राज्यों के परिणाम बताते हैं कि राजनीति का चश्मा पूरे देश के लिए एक नहीं हो सकता। 

क्षेत्रीयता और उसकी विशेषता का भी अपना अलग प्रभाव होता है, जो तेलंगाना और मिजोरम के परिणाम से स्पष्ट हो जाता है। भाजपा व कांग्रेस दोनों को यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि नेशनलिज्म व पैट्रियोटिज्म में बहुत बड़ा अंतर है। क्योंकि नेशनलिज्म को सिर्फ एक विचार में बांधा जा सकता है, जबकि पैट्रियोटिज्म में देश और क्षेत्र विशेष का तानाबाना छिपा होता है और इसमें नेशनलिज्म भी समाहित है। यही कारण है कि भाजपा के कांग्रेसमुक्त नारे को तीन राज्यों के चुनाव में बड़ा डेंट भी लगा है। हालांकि सवाल फिर खड़ा होता है कि क्या ये परिणाम कांग्रेस को मिल रही बढ़त के संकेत हैं तो इसे सही नहीं माना जा सकता है। 

इतना जरूर है कि कांग्रेस रिवाइवल की स्थिति में आ गई है और अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए वह गंभीरता के साथ मंथन कर सकती है। दूसरी तरफ मोदी लहर के बाद पहली दफा कुछ हद तक बदले परिदृश्य के बीच भाजपा को भी आत्ममंथन की जरूरत है। हालांकि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मतव्यवहार में काफी अंतर देखने को मिलता है।

विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय नेतृत्व का आकलन होता है, जबकि लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय नेतृत्व का आकलन किया जाता है। इस लिहाज से अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीस ही साबित होते हैं और फिलहाल उनकी छवि को तोड़ पाना संभव भी नहीं। यानी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अभी भी बढ़त की स्थिति में हैं। क्योंकि पांच बड़े राज्यों में अभी भी भाजपा की सरकार है और उसका असर भी कहीं न कहीं जरूर नजर आएगा।

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