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टिहरी झील को अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने का सपना अभी तक नहीं हुआ पूरा

तकरीबन 42 वर्ग किलोमीटर में फैली टिहरी झील को अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने का सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 03:49 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 03:49 PM (IST)
टिहरी झील को अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने का सपना अभी तक नहीं हुआ पूरा
टिहरी झील को अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने का सपना अभी तक नहीं हुआ पूरा

देहरादून, विकास गुसाईं। टिहरी की विशाल झील। इसके भीतर समाया है एक पूरा शहर, जिसने विकास के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। यह अब केवल किस्से-कहानियों का हिस्सा रह गया। तकरीबन 42 वर्ग किलोमीटर में फैली इस झील को अंतर्राष्ट्रीय टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने का सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। यूं तो पर्यटन विभाग देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्रतिवर्ष यहां कार्यक्रम आयोजित करता है लेकिन अभी इसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने का मकसद पूरा नहीं हुआ है। झील में सफर का आनंद लेने के लिए कुछ चुनिंदा बोट को छोड़ दें तो यहां साहसिक खेलों को बढ़ावा देने की योजनाएं फाइलों से बाहर निकलने के लिए अभी तक हाथ पैर ही मार रही हैं। टिहरी झील को विकसित करने के लिए मास्टर प्लान अब तक आकार नहीं ले पाया है। स्कूबा डाईविंग और सी प्लेन उतारने जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं भी फिलहाल धरातल पर नहीं उतर पाई हैं।बिजली पर हक को इंतजार

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टिहरी के बाशिंदों ने टिहरी बांध के लिए बड़ी कुर्बानियां दी। कुर्बानी पर्यावरण की, कुर्बानी अपने घर की, अपने खेत की, अपने गांव की और अपने वर्तमान की। उम्मीद थी कि उनकी यह कुर्बानी पर्वतीय क्षेत्र के काम आएगी। पहाड़ का हर गांव बिजली से जगमगाएगा। अलग राज्य बना तो उम्मीदें और परवान चढ़ीं। बांध परियोजना की शर्तों के मुताबिक प्रदेश को 25 फीसद बिजली मिलनी थी। उत्तर प्रदेश ने परिसंपत्तियों का बटवारा तो किया लेकिन 25 फीसद बिजली देने के मामले में कन्नी काट ली। उत्तराखंड को परियोजना क्षेत्र का राज्य होने के नाते केवल 12.5 प्रतिशत रायल्टी ही मिल पा रही है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जब भाजपा सरकारें आई तो लगा यह मसला अब बातचीत से हल हो जाएगा। अफसोस ऐसा नहीं हो पाया है। उत्तर प्रदेश से कई बार वार्ता करने के बावजूद अभी तक इस मसले का कोई हल ही नहीं निकल सका है।

फाइलों में रेंग रही रिंग रोड

राजधानी, यानी किसी भी प्रदेश का सबसे अहम शहर, जो अन्य शहरों के लिए आइने का काम करे। अफसोस, देहरादून के हालात कुछ उलट हैं। सरकार और पूरी नौकरशाही के राजधानी में होने के बावजूद शहर की सूरत नहीं संवर पाई। सबसे बुरी स्थिति यातायात की है। पर्यटन सीजन में बाहर से आने वाले पर्यटकों को इससे दो चार होना पड़ता है। इससे निजात दिलाने के लिए 10 साल पहले लोकनिर्माण विभाग ने देहरादून में रिंग रोड बनाने का प्रस्ताव बनाया था। जब प्रयास परवान नहीं चढ़े तो यह जिम्मा एनएचएआइ ने उठाया। सपना दिखाया गया शहर के चारों ओर फोर लेन सड़क बनाने का। यह सपना जल्द टूट गया। वर्ष 2018 में लोनिवि ने 114 किमी लंबी रिंग रोड बनाने को डीपीआर तैयार की। शासन को भू अधिग्रहण और अन्य कार्यों के लिए बजट की फाइल भेजी गई, लेकिन इस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है।

ऑनलाइन कार्य ने अटकाई योजना

मकसद था बिना टैक्स चुकाए वाहनों पर नकेल कसना। इसके लिए प्रदेश में आने वाले सभी मार्गों पर चेकपोस्ट बनाने का खाका तैयार किया गया। कुछ बैठकें भी हुई लेकिन अब यह योजना हवा हो चुकी है। स्थिति यह है कि अब चेकपोस्ट की संख्या बढ़ाने की बजाय घटाने पर काम चल रहा है। यहां तक कि इनमें तैनात परिवहन कर अधिकारियों को भी हटाया जा रहा है।

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इसके पीछे कारण मौजूदा चेकपोस्ट को ऑनलाइन किए जाने की तैयारी है। कसरत यह की जा रही है कि बाहर से आने वाले व्यावसायिक वाहन चालक ऑनलाइन ही टैक्स जमा करा दें। प्रदेश की सीमा में वाहनों का औचक निरीक्षण किया जाए। जिनके पास टैक्स की रसीद नहीं मिलेगी, उनका चालान किया जाए लेकिन इसके परीक्षण में ही विभाग चारों खाने चित हो गया। कारण यह कि फर्जी रसीदें पकड़ी जाने लगी। बावजूद इसके विभाग चेकपोस्ट बढ़ाने के पक्ष में नहीं है।

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