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आखिरकार दारोगाओं का इंस्पेक्टर बनने का ख्वाब हो गया पूरा

उत्तराखंड के 88 दारोगाओं का इंस्पेक्टर बनने का ख्वाब आखिरकार पूरा हो गया। अब उनके कंधे पर भी जल्द ही दो की जगह तीन सितारे नजर आएंगे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2020 01:31 PM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2020 01:31 PM (IST)
आखिरकार दारोगाओं का इंस्पेक्टर बनने का ख्वाब हो गया पूरा
आखिरकार दारोगाओं का इंस्पेक्टर बनने का ख्वाब हो गया पूरा

देहरादून, संतोष तिवारी। उत्तराखंड के 88 दारोगाओं का इंस्पेक्टर बनने का ख्वाब आखिरकार पूरा हो गया। अब उनके कंधे पर भी जल्द ही दो की जगह तीन सितारे नजर आएंगे। हालांकि, इन दारोगाओं को यह मौका तीन से चार साल पहले ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन सिस्टम की खामियों और अधिकारियों की सुस्त कार्यप्रणाली के कारण उन्हें इंतजार करना पड़ा। तमाम ऐसे होनहार और कर्तव्यनिष्ठ दारोगा भी हैं, जिन्हें तय समय पर पदोन्नति मिल गई होती तो वह इंस्पेक्टर बनकर निश्चित तौर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते और पुलिस महकमे के लिए मिसाल बनते। बाकी के होनहार दारोगाओं के साथ ऐसा न हो, इसके लिए पुलिस मुख्यालय को अभी से गौर करना होगा कि आने वाले वर्षों में निचले स्तर पर पदोन्नति की प्रक्रिया बाधित न हो। इसके लिए विभाग को अब एक सुदृढ़ व्यवस्था बनानी होगी और पदोन्नति में आड़े आने वाली बाधाओं को चिह्नित कर उनसे पार पाना होगा।

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अब सब आपके हाथ में 

कोरोना वायरस का संक्रमण अब गली-मोहल्लों से निकलकर शहर की पॉश कालोनियों व अति सुरक्षित अधिकारियों और नेताओं के घर तक पहुंच गया है। अब दून में रोजाना संक्रमण के 125 या उससे ज्यादा नए मामले आ रहे हैं। डेढ़-दो महीने पहले तक यह संख्या 20 से 25 तक सिमटी हुई थी। वर्तमान स्थिति संक्रमण के बढ़ते खतरे का अहसास कराने के लिए काफी है। इन हालात में यह सोचना जरूरी हो गया है कि इस खतरे से कैसे बचा जाए। अब तक पुलिस ने मास्क न पहनने पर चालान काटने समेत तमाम कानूनी कार्रवाई करके स्थिति को नियंत्रण में रखा, लेकिन अब कानून के शिकंजे के साथ आम नागरिकों की जागरूकता भी बेहद जरूरी है। जिससे लोग स्वयं संक्रमण के खतरे से बचे रहें और समाज को भी सुरक्षित रखने में मददगार बनें। सभी को यह बात समझनी होगी कि स्थिति को संभालना अब केवल हमारे हाथ में है।

समझानी होगी खाकी की मर्यादा

कोरोनाकाल में पुलिस ने जो मिसाल पेश की वह काबिलेतारीफ है। इस दौरान पुलिस बेसहारा और गरीबों के घर खाना पहुंचाने से लेकर बीमार व्यक्तियों तक दवा और इलाज पहुंचाने में जुटी रही। इतना ही नहीं खुद कोरोना संक्रमित होने के बाद जब ठीक हुए तो प्लाज्मा दान करने की पहल कर नई इबारत लिखी। लेकिन, इस सबके बीच कुछ ऐसा भी हुआ, जिसने खाकी की मर्यादा को न सिर्फ चोट पहुंचाई, बल्कि अधिकारियों के सामने मुश्किलें भी खड़ी कर दीं। पिछले दिनों देहरादून में एक पुलिसकर्मी द्वारा नाबालिग से दुष्कर्म करने का मामला हो या फिर ऊधम सिंह नगर में ढाबे पर हुई मारपीट में सीबीआइ की ओर से मुकदमा दर्ज करना। ऐसी घटनाओं को पुलिस अधिकारियों को गंभीरता से लेना होगा। उन्हें पुलिसकर्मियों को खाकी की मर्यादा का पालन करने के साथ कानून के दायरे में रहकर काम करने के लिए समझाना होगा, जिससे जनता का भरोसा बना रहे।

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असरदार रही पुलिस की सख्ती

देहरादून प्रदेश के उन जिलों में शुमार है। जहां हर रोज धरना, प्रदर्शन, रैली और जुलूस देखने को मिलते हैं। यह राजधानी होने की वजह से है। इसके चलते देहरादून के निवासियों को अक्सर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कोरोनाकाल में इसमें कमी जरूर आई, लेकिन अनलॉक के साथ राजनीतिक दलों की धरना-प्रदर्शन को लेकर छटपटाहट एक बार फिर नजर आने लगी है। बीते दिनों ऐसे कई आयोजन भी हुए, जिनमें शारीरिक दूरी के नियमों का उल्लंघन तो हुआ ही, संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ा। हालांकि, पुलिस ने भी नेताओं पर मुकदमा दर्ज कर संदेश दिया कि समाज के लिए खतरा बनने वालों पर हर हाल में कानून का शिकंजा कसा जाएगा। पुलिस का सख्त रवैया काफी असरदार रहा। यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों में धरना-प्रदर्शन और रैली में कमी आई है। संक्रमण फैलने की वजह बनने वालों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए।

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